बुलन्दशहर: Difference between revisions

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==इतिहास==
==इतिहास==
गंगा और यमुना नदी के मध्य स्थित बुलन्दशहर का इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है। बुलन्दशहर की स्थापना राजा अहिबरन ने की थी। बुलन्दशहर पर उन्होंने बरान टॉवर की नींव रखी थी। [[हस्तिनापुर]] के पतन के पश्चात् अहर जो कि बुलन्दशहर के उत्तर-पूर्व पर स्थित है [[पाण्डव|पाण्डवों]] के लिए महत्त्वपूर्ण जगह रही है। कुछ समय बिताने के बाद राजा परम ने इस क्षेत्र में एक क़िले का निर्माण किया था।  
गंगा और यमुना नदी के मध्य स्थित बुलन्दशहर का इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है। बुलन्दशहर की स्थापना राजा अहिबरन ने की थी। बुलन्दशहर पर उन्होंने बरान टॉवर की नींव रखी थी। [[हस्तिनापुर]] के पतन के पश्चात् अहर जो कि बुलन्दशहर के उत्तर-पूर्व पर स्थित है [[पाण्डव|पाण्डवों]] के लिए महत्त्वपूर्ण जगह रही है। कुछ समय बिताने के बाद राजा परम ने इस क्षेत्र में एक क़िले का निर्माण किया था।
 
अन्य ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह प्रमाण भी मिलता है कि 'अहार' के [[तोमर]] सरदार परमाल ने बुलन्दशहर को बसाया था। पहले यह स्थान 'वनछटी' कहलाता था। कालांतर में नागों के राज्यकाल में इसका नाम 'अहिवरण' भी रहा। पीछे इस नगर को 'ऊँचनगर' कहा जाने लगा, क्योंकि यह एक ऊँचे टीले पर बसा था। मुसलमानों के शासन काल में इसी का पर्याय बुलन्दशहर नाम प्रचलित कर दिया गया। यहाँ [[यवन]] राजा 'अलक्षेंद्र' ([[सिकन्दर]]) के सिक्के भी मिले थे। 400 से 800 ई० तक बुलन्दशहर के क्षेत्र में कई [[बौद्ध]] बस्तियाँ थीं। 1018 ई० में [[महमूद ग़ज़नवी]] ने यहाँ आक्रमण किया था। उस समय यहाँ का राजा 'हरदत्त' था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=640|url=}}</ref>
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बुलन्दशहर का प्राचीन नाम 'बरन' था। यह भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के ठीक पश्चिम में स्थित है। पूर्व में गंगा नदी व पश्चिम में यमुना नदी इसकी सीमा बनाती है। बुलन्दशहर के उत्तर में मेरठ तथा दक्षिण में अलीगढ़ ज़िले हैं। पश्चिम में राजस्थान राज्य पड़ता है। इसका क्षेत्रफल 1,887 वर्ग मील है। यहाँ की भूमि उर्वर एवं समतल है। गंगा की नहर से सिंचाई और यातायात दोनों का काम लिया जाता है। निम्न गंगा नहर का प्रधान कार्यालय 'नरौरा' स्थान पर है। वर्षा का वार्षिक औसत 26 इंच रहता है। पूर्व की ओर पश्चिम से अधिक वर्षा होती है। अनूपशहर और खुर्जा आदि बुलन्दशहर के प्रमुख नगर हैं।

इतिहास

गंगा और यमुना नदी के मध्य स्थित बुलन्दशहर का इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है। बुलन्दशहर की स्थापना राजा अहिबरन ने की थी। बुलन्दशहर पर उन्होंने बरान टॉवर की नींव रखी थी। हस्तिनापुर के पतन के पश्चात् अहर जो कि बुलन्दशहर के उत्तर-पूर्व पर स्थित है पाण्डवों के लिए महत्त्वपूर्ण जगह रही है। कुछ समय बिताने के बाद राजा परम ने इस क्षेत्र में एक क़िले का निर्माण किया था।

अन्य ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह प्रमाण भी मिलता है कि 'अहार' के तोमर सरदार परमाल ने बुलन्दशहर को बसाया था। पहले यह स्थान 'वनछटी' कहलाता था। कालांतर में नागों के राज्यकाल में इसका नाम 'अहिवरण' भी रहा। पीछे इस नगर को 'ऊँचनगर' कहा जाने लगा, क्योंकि यह एक ऊँचे टीले पर बसा था। मुसलमानों के शासन काल में इसी का पर्याय बुलन्दशहर नाम प्रचलित कर दिया गया। यहाँ यवन राजा 'अलक्षेंद्र' (सिकन्दर) के सिक्के भी मिले थे। 400 से 800 ई० तक बुलन्दशहर के क्षेत्र में कई बौद्ध बस्तियाँ थीं। 1018 ई० में महमूद ग़ज़नवी ने यहाँ आक्रमण किया था। उस समय यहाँ का राजा 'हरदत्त' था।[1]

यातायात और परिवहन

वायु मार्ग

सबसे निकटतम हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। बुलन्दशहर से दिल्ली 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग

भारत के कई प्रमुख शहरों से रेलमार्ग द्वारा बुलन्दशहर पहुँचा जा सकता है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हापुड़ है।

सड़क मार्ग

बुलन्दशहर सड़क मार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, आगरा, अलीगढ़ और जयपुर आदि शहरों से सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा है।

उद्योग और व्यापार

कुछ स्थानों पर अहीर तथा जाटों के परिश्रम से भूमि कृषि योग्य कर ली गई है। यहाँ की मुख्य उपजें गेहूँ, चना, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा, कपास एव गन्ना आदि हैं। सूत कातने, कपड़े बनाने का काम जहाँगीराबाद में, बरतनों का काम खुर्जा, लकड़ी का काम बुलंदशहर व शिकारपुर में होता है। कांच से चूड़ियाँ, बोतलें आदि भी बनती हैं। करघे से कपड़ा बुना जाता है।

पर्यटन

कुछेसर, अनूपशहर, राजघाट, करणवास और सिकंदराबाद आदि बुलन्दशहर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 640 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख