हबीब तनवीर: Difference between revisions

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दिल्ली में तनवीर की मुलाकात [[अभिनेत्री]] मोनिका मिश्रा से हुई जो बाद में उनकी जीवनसंगिनी बनीं। यहीं उन्होंने अपना पहला महत्वपूर्ण नाटक 'आगरा बाजार' किया। 1955 में तनवीर इग्लैंड गए और रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक्स आर्ट्स (राडा) में प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब उन्होंने [[यूरोप]] का दौरा करने के साथ वहाँ के थिएटर को क़रीब से देखा और समझा।
दिल्ली में तनवीर की मुलाकात [[अभिनेत्री]] मोनिका मिश्रा से हुई जो बाद में उनकी जीवनसंगिनी बनीं। यहीं उन्होंने अपना पहला महत्वपूर्ण नाटक 'आगरा बाजार' किया। 1955 में तनवीर इग्लैंड गए और रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक्स आर्ट्स (राडा) में प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब उन्होंने [[यूरोप]] का दौरा करने के साथ वहाँ के थिएटर को क़रीब से देखा और समझा।
==कार्यक्षेत्र==
50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब जी ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन व सर्जन किया। उनका कला जीवन बहुआयामी था। वे जितने अच्छे अभिनेता, निर्देशक व नाट्य लेखक थे उतने ही श्रेष्ठ गीतकार, कवि, गायक व संगीतकार भी थे। फिल्मों व नाटकों की बहुत अच्छी समीक्षायें भी की। उनकी नाट्य प्रस्तुतियों में लोकगीतों, लोक धुनों, लोक संगीत व नृत्य का सुन्दर प्रयोग सर्वत्र मिलता है। उन्होंने कई वर्षों तक देश भर ग्रामीण अंचलों में घूम-घूमकर लोक संस्कृति व लोक नाट्य शैलियों का गहन अध्ययन किया और लोक गीतों का संकलन भी किया।
====नया थियेटर की स्थापना====
छठवें दशक की शुरुआत में [[नई दिल्ली]] में हबीब तनवीर की नाट्य संस्था ‘नया थियेटर’ और [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]] की स्थापना लगभग एक समय ही हुई। यह उल्लेखनीय है कि देश के सर्वश्रेष्ठ नाट्य संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पास आज जितने अच्छे लोकप्रिय व मधुर गीतों का संकलन है उससे कहीं ज्यादा संकलन ‘नया थियेटर’ के पास मौजूद हैं। एच.एम.वी. जैसी बड़ी संगीत कंपनियों ने हबीब तनवीर के नाटकों के गीतों के कई आडियो कैसेट भी तैयार किये जो बहुत लोकप्रिय हुए।
====हिन्दी रंगमंच का विकास====
आजादी से पहले [[हिन्दी]] रंगकर्म पर पारसी थियेटर की पारम्परिक शैली का गहरा प्रभाव था। साथ ही हिन्दुस्तान के नगरों और महानगरों में पाश्चात्य [[रंग]] विधान के अनुसार नाटक खेले जाते थे। आजादी के बाद भी [[अंग्रेज़ी]] और दूसरे यूरोपीय भाषाओं के अनुदित नाटक और पाश्चात्य शैली हिन्दी रंगकर्म को जकड़े हुए थी। उच्च और मध्य वर्ग के अभिजात्यपन ने पाश्चात्य प्रभावित रुढिय़ों से हिन्दी [[रंगमंच]] के स्वाभाविक विकास को अवरुद्ध कर रखा था और हिन्दी का समकालीन रंगमंच नाट्य प्रेमियों की इच्छाओं को संतुष्ट करने में अक्षम था। हबीब तनवीर ने इन्हीं रंग परिदृश्य को परिवर्तित करने एक नए और क्रांतिकारी रंग आंदोलन का विकास किया।<ref>{{cite web |url=http://shodhprakalpresearch.com/?p=9 |title=समकालीन रंग विमर्श और हबीब तनवीर |accessmonthday=15 अक्टूबर |accessyear=2012 |last=तिवारी |first=डॉ. राकेश  |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=शोध प्रकल्प |language=हिन्दी }}</ref>
==प्रमुख कृतियाँ==
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==कार्यक्षेत्र==
50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब जी ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन व सर्जन किया। उनका कला जीवन बहुआयामी था। वे जितने अच्छे अभिनेता, निर्देशक व नाट्य लेखक थे उतने ही श्रेष्ठ गीतकार, कवि, गायक व संगीतकार भी थे। फिल्मों व नाटकों की बहुत अच्छी समीक्षायें भी की। उनकी नाट्य प्रस्तुतियों में लोकगीतों, लोक धुनों, लोक संगीत व नृत्य का सुन्दर प्रयोग सर्वत्र मिलता है। उन्होंने कई वर्षों तक देश भर ग्रामीण अंचलों में घूम-घूमकर लोक संस्कृति व लोक नाट्य शैलियों का गहन अध्ययन किया और लोक गीतों का संकलन भी किया।
====नया थियेटर की स्थापना====
छठवें दशक की शुरुआत में [[नई दिल्ली]] में हबीब तनवीर की नाट्य संस्था ‘नया थियेटर’ और [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]] की स्थापना लगभग एक समय ही हुई। यह उल्लेखनीय है कि देश के सर्वश्रेष्ठ नाट्य संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पास आज जितने अच्छे लोकप्रिय व मधुर गीतों का संकलन है उससे कहीं ज्यादा संकलन ‘नया थियेटर’ के पास मौजूद हैं। एच.एम.वी. जैसी बड़ी संगीत कंपनियों ने हबीब तनवीर के नाटकों के गीतों के कई आडियो कैसेट भी तैयार किये जो बहुत लोकप्रिय हुए।
====हिन्दी रंगमंच का विकास====
आजादी से पहले [[हिन्दी]] रंगकर्म पर पारसी थियेटर की पारम्परिक शैली का गहरा प्रभाव था। साथ ही हिन्दुस्तान के नगरों और महानगरों में पाश्चात्य [[रंग]] विधान के अनुसार नाटक खेले जाते थे। आजादी के बाद भी [[अंग्रेज़ी]] और दूसरे यूरोपीय भाषाओं के अनुदित नाटक और पाश्चात्य शैली हिन्दी रंगकर्म को जकड़े हुए थी। उच्च और मध्य वर्ग के अभिजात्यपन ने पाश्चात्य प्रभावित रुढिय़ों से हिन्दी [[रंगमंच]] के स्वाभाविक विकास को अवरुद्ध कर रखा था और हिन्दी का समकालीन रंगमंच नाट्य प्रेमियों की इच्छाओं को संतुष्ट करने में अक्षम था। हबीब तनवीर ने इन्हीं रंग परिदृश्य को परिवर्तित करने एक नए और क्रांतिकारी रंग आंदोलन का विकास किया।<ref>{{cite web |url=http://shodhprakalpresearch.com/?p=9 |title=समकालीन रंग विमर्श और हबीब तनवीर |accessmonthday=15 अक्टूबर |accessyear=2012 |last=तिवारी |first=डॉ. राकेश  |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=शोध प्रकल्प |language=हिन्दी }}</ref>
==सम्मान और पुरस्कार==  
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* [[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] (1969)
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==निधन==
==निधन==
हबीब तनवीर का निधन [[8 जून]], [[2009]] को [[भोपाल]], [[मध्य प्रदेश]] में हो गया। हबीब साहब का जाना विश्व रंगकर्म के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अवसान है। थिएटर के विश्वकोष कहे जाने वाले तनवीर का निधन ऐसी अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई असंभव है।
हबीब तनवीर का निधन [[8 जून]], [[2009]] को [[भोपाल]], [[मध्य प्रदेश]] में हो गया। थिएटर के विश्वकोष कहे जाने वाले तनवीर का निधन ऐसी अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई असंभव है।


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Revision as of 13:15, 15 October 2012

हबीब तनवीर
पूरा नाम हबीब तनवीर
जन्म 1 सितंबर, 1923
जन्म भूमि रायपुर, छत्तीसगढ़
मृत्यु 8 जून, 2009
मृत्यु स्थान भोपाल, मध्य प्रदेश
संतान मोनिका मिश्रा
कर्म-क्षेत्र पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता
मुख्य रचनाएँ आगरा बाजार, मिट्टी की गाड़ी, चरणदास चोर, शतरंज के मोहरे
मुख्य फ़िल्में चरणदास चोर, गाँधी (1982), द राइज़िंग: मंगल पांडे, ब्लैक & व्हाइट (2008)
शिक्षा एम.ए.
पुरस्कार-उपाधि संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, पद्म भूषण
नागरिकता भारतीय

हबीब तनवीर (अंग्रेज़ी: Habib Tanvir, जन्म: 1 सितंबर 1923 – मृत्यु: 8 जून 2009) भारत के सबसे मशहूर पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता थे। हबीब तनवीर हिन्दुस्तानी रंगमंच के शलाका पुरुष थे। उन्होंने लोकधर्मी रंगकर्म को पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित किया और भारतीय रंगमंच को एक नया मुहावरा दिया।

जीवन परिचय

हबीब तनवीर का जन्म 1 सितंबर, 1923 को छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था। उनके पिता हफ़ीज अहमद खान पेशावर (पाकिस्तान) के रहने वाले थे। स्कूली शिक्षा रायपुर और बी.ए. नागपुर के मौरिस कॉलेज से करने के बाद वे एम.ए. करने अलीगढ़ गए। युवा अवस्था में ही उन्होंने कविताएँ लिखना आरंभ कर दिया था और उसी दौरान उपनाम 'तनवीर' उनके साथ जुडा। 1945 में वे मुंबई गए और ऑल इंडिया रेडियो से बतौर निर्माता जुड़ गए। उसी दौरान उन्होंने कुछ फिल्मों में गीत लिखने के साथ अभिनय भी किया।

इप्टा से संबंध

मुंबई में तनवीर प्रगतिशील लेखक संघ और बाद में इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) से जुड़े। ब्रिटिशकाल में जब एक समय इप्टा से जुड़े तब अधिकांश वरिष्ठ रंगकर्मी जेल में थे। उनसे इस संस्थान को संभालने के लिए भी कहा गया था। 1954 में उन्होंने दिल्ली का रुख किया और वहाँ कुदेसिया जैदी के हिंदुस्तान थिएटर के साथ काम किया। इसी दौरान उन्होंने बच्चों के लिए भी कुछ नाटक किए।[1]

विवाह

दिल्ली में तनवीर की मुलाकात अभिनेत्री मोनिका मिश्रा से हुई जो बाद में उनकी जीवनसंगिनी बनीं। यहीं उन्होंने अपना पहला महत्वपूर्ण नाटक 'आगरा बाजार' किया। 1955 में तनवीर इग्लैंड गए और रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक्स आर्ट्स (राडा) में प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब उन्होंने यूरोप का दौरा करने के साथ वहाँ के थिएटर को क़रीब से देखा और समझा।

कार्यक्षेत्र

50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब जी ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन व सर्जन किया। उनका कला जीवन बहुआयामी था। वे जितने अच्छे अभिनेता, निर्देशक व नाट्य लेखक थे उतने ही श्रेष्ठ गीतकार, कवि, गायक व संगीतकार भी थे। फिल्मों व नाटकों की बहुत अच्छी समीक्षायें भी की। उनकी नाट्य प्रस्तुतियों में लोकगीतों, लोक धुनों, लोक संगीत व नृत्य का सुन्दर प्रयोग सर्वत्र मिलता है। उन्होंने कई वर्षों तक देश भर ग्रामीण अंचलों में घूम-घूमकर लोक संस्कृति व लोक नाट्य शैलियों का गहन अध्ययन किया और लोक गीतों का संकलन भी किया।

नया थियेटर की स्थापना

छठवें दशक की शुरुआत में नई दिल्ली में हबीब तनवीर की नाट्य संस्था ‘नया थियेटर’ और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्थापना लगभग एक समय ही हुई। यह उल्लेखनीय है कि देश के सर्वश्रेष्ठ नाट्य संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पास आज जितने अच्छे लोकप्रिय व मधुर गीतों का संकलन है उससे कहीं ज्यादा संकलन ‘नया थियेटर’ के पास मौजूद हैं। एच.एम.वी. जैसी बड़ी संगीत कंपनियों ने हबीब तनवीर के नाटकों के गीतों के कई आडियो कैसेट भी तैयार किये जो बहुत लोकप्रिय हुए।

हिन्दी रंगमंच का विकास

आजादी से पहले हिन्दी रंगकर्म पर पारसी थियेटर की पारम्परिक शैली का गहरा प्रभाव था। साथ ही हिन्दुस्तान के नगरों और महानगरों में पाश्चात्य रंग विधान के अनुसार नाटक खेले जाते थे। आजादी के बाद भी अंग्रेज़ी और दूसरे यूरोपीय भाषाओं के अनुदित नाटक और पाश्चात्य शैली हिन्दी रंगकर्म को जकड़े हुए थी। उच्च और मध्य वर्ग के अभिजात्यपन ने पाश्चात्य प्रभावित रुढिय़ों से हिन्दी रंगमंच के स्वाभाविक विकास को अवरुद्ध कर रखा था और हिन्दी का समकालीन रंगमंच नाट्य प्रेमियों की इच्छाओं को संतुष्ट करने में अक्षम था। हबीब तनवीर ने इन्हीं रंग परिदृश्य को परिवर्तित करने एक नए और क्रांतिकारी रंग आंदोलन का विकास किया।[2]

प्रमुख कृतियाँ

नाटक
  1. आगरा बाजार (1954)
  2. शतरंज के मोहरे (1954)
  3. लाला शोहरत राय (1954)
  4. मिट्टी की गाड़ी (1958)
  5. गाँव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद (1973)
  6. चरणदास चोर (1975)
  7. पोंगा पण्डित
  8. द ब्रोकन ब्रिज (1995)
  9. ज़हरीली हवा (2002)
  10. राज रक्त (2006)
फ़िल्म
  1. फ़ुट पाथ (1953)
  2. राही (1953)
  3. चरणदास चोर (1975)[3]
  4. गाँधी (1982)
  5. ये वो मंज़िल तो नहीं (1987)
  6. हीरो हीरालाल (1988)
  7. प्रहार (1991)
  8. द बर्निंग सीजन (1993)
  9. द राइज़िंग: मंगल पांडे (2005)
  10. ब्लैक & व्हाइट (2008)

सम्मान और पुरस्कार

निधन

हबीब तनवीर का निधन 8 जून, 2009 को भोपाल, मध्य प्रदेश में हो गया। थिएटर के विश्वकोष कहे जाने वाले तनवीर का निधन ऐसी अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई असंभव है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. थिएटर के विश्वकोष हबीब तनवीर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2012।
  2. तिवारी, डॉ. राकेश। समकालीन रंग विमर्श और हबीब तनवीर (हिन्दी) (पी.एच.पी) शोध प्रकल्प। अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2012।
  3. गीत और पटकथा लिखी

बाहरी कड़ियाँ

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