कपोत: Difference between revisions
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इनमें तीन प्रकार के कपोत बहुत प्रसिद्ध हैं- | इनमें तीन प्रकार के कपोत बहुत प्रसिद्ध हैं- |
Latest revision as of 12:24, 25 October 2017
thumb|250px|कपोत कपोत कोलंबिडी गण के प्रसिद्ध पक्षी हैं। इनकी दो जंगली जातियों- नील शैलकपोत[1] तथा शैल कपोतक[2] से मनुष्यों ने बहुत-सी पालतू जातियाँ निकाली हैं, जो चार श्रेणियों में विभक्त की जा सकती हैं-
बुद्बुदक कपोत
इनकी ग्रासनली[7] बड़ी और अन्नगृह[8] से अलग रहती है। अन्नगृह को फुलाकर ये बड़ा कर सकते हैं।[9]
वाहक कपोत
इनमें तीन प्रकार के कपोत बहुत प्रसिद्ध हैं-
- साधारण वाहक, जिनकी चोंच लंबी और आँख का घेरा नंगा रहता है।
- विराट, जिनका कद बड़ा और चोंच लंबी तथा भारी होती है।
- कंटक[10], जिनकी चोंच छोटी और आँख का घेरा नंगा रहता है। इसकी बहुतेरी उपजातियाँ फैली हुई हैं।
त्यजनपुच्छ
इनमें चार तरह के कपोत प्रसिद्ध हैं-
- टरबिट और उलूक[11], जिनकी चोंच छोटी और मोटी तथा गले के पंख तिरछे रहते हैं।
- गिरहबाज[12], जो उड़ते-उड़ते उलटकर कलैया खाते रहते हैं।
- झल्लरीपृष्ठ[13], जो अपनी पूँछ के पंख ऊपर की ओर छत्राकार उठा सकते हैं। साधारण बोलचाल में इन्हें 'लक्का' कहते हैं।
- जैकोबिन, जिनके गले में पंख कंठेनुमा उभरे रहते हैं।
श्रृंगवाकु
इनके गले के नीचे के पंख आगे की ओर घूमे रहते हैं। इनकी बोली बहुत कर्कश होती है।
मनुष्य द्वारा पालन
लगभग 3,000 ई. पू. से मनुष्यों द्वारा कबूतरों के पालने का पता[14] चलता है। उसके बाद ईरान, बग़दाद तथा अरब के अन्य देशों में भी कबूतर पालने का प्रचलन था। सन् 1848 की फ़्राँस की क्रांति में कबूतरों का उपयोग संदेश वाहक के रूप में किया गया था। विज्ञान के इस युग में भी इनकी उपयोगिता कम नहीं हुई है और इनकी टाँगों अथवा पीठ पर एक पोली नली में पत्र रखकर आज भी लड़ाई में इनका उपयोग होता है। शांतिदूत के रूप में भी सफ़ेद रंग के कबूतर उड़ाए जाते हैं। संसार भर में बेल्जियम कबूतरों का सबसे अधिक शौकीन देश है। वहाँ इनकी उड़ान पर घोड़ों के समान बाजी लगती है। लगभग सभी गाँवों में कबूतरों के क्लब स्थापित हैं। भारत में भी गिरहबाज, लक्का, मुक्खीलोटन, अंबरसरे, चीना, शिराजी, गोला आदि अनेक जातियों के कबूतरों को शौकीन लोग पालते हैं।[9]
नीलशैल कबूतर
जंगली कबूतरों में नीलशैल जाति संसार के प्राय: सभी देशों में फैली हुई है। यह लगभग 15 इंच लंबा सिलेटी रंग का पक्षी है, जिसके नर तथा मादा एक जैसे होते हैं। ये दाना और बीज चुगने वाले पक्षी हैं, जो झुंडों में रहते हैं। मादा साल में दो बार भूमि पर या किसी छेद में घोंसले के नाम पर दो चार तिनके रखकर दो सफ़ेद अंडे देती है। बच्चे कुछ दिनों तक बिना पंख के असहाय रहते हैं। उनके मुँह में अपनी चोंच डालकर माँ-बाप एक प्रकार का रस भर देते हैं, जो उसके शरीर के भीतर की अन्नगृह थैली में एकत्र हो जाता है और सुगमता से पचता है।
अन्य प्रजातियाँ
thumb|250px|कपोत|left इनके अतिरिक्त न्यूगिनी के विशाल किरीटधारी कबूतर[15] भी कम प्रसिद्ध नहीं हैं। ये कद में सबसे बड़े होते हैं और इनके सिर पर पंखीनुमा कलँगी सी रहती है। एक अन्य जाति, निकोबार कबूतर भी बहुत प्रसिद्ध है। यह अपने गले की लंबे पंखों की हँसली के कारण बड़ी आसानी से पहचाना जाता है। इसके शरीर के भीतर की पेषणी[16] भी विचित्र होती है।
एक अन्य जाति के कबूतर सन् 1914 ई. तक पाए जाते थे, परंतु अब वे पृथ्वी से लुप्त हो गए हैं। ये यात्री कबूतर[17] कहलाते थे। जब ये हजारों के बड़े-बड़े समूहों में उड़ते थे, तो आकाश काला हो जाता था। ये फाख्ता[18] के बराबर होते थे और इनका रंग गाढ़ा सिलेटी तथा पूँछ लंबी होती थी। कबूतरों के ही वर्ग के 'हारिल' भी चिरपरिचित पक्षी हैं, जो हरे और धानी रंग के तथा बहुत सुंदर होते हैं। इनकी कई जातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें 'कोकला' सबसे प्रसिद्ध है। ये सब अपने स्वादिष्ट मांस के लिए भी प्रसिद्ध हैं।[9]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ब्लू रॉक पिजन, Blue rock pigeon
- ↑ रॉक डव, कोलंबिडस पालंबस
- ↑ पाउटर
- ↑ कैरियर
- ↑ फैनटेल
- ↑ ट्रंपेटर
- ↑ गलेट
- ↑ (क्रॉप)
- ↑ 9.0 9.1 9.2 कपोत (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 04 सितम्बर, 2014।
- ↑ बार्ब्स
- ↑ आउल
- ↑ टंबलर
- ↑ फ्ऱलबैक
- ↑ मिस्र देश की भित्तिचित्रों से
- ↑ जायंट क्राउंड पिजन
- ↑ गिज़र्ड
- ↑ पैसेंजर पिजन
- ↑ पंडुक
संबंधित लेख
- REDIRECT साँचा:जीव जन्तु