सियार

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सियार अथवा शियार लोमड़ी की तरह दिखने वाला एक जानवर है। यह भारत के जंगलों और गन्ने आदि के खेतों में आमतौर से पाया जाने वाला मध्यम आकार का पशु है। सियार श्वान वंश कैनिस की भेड़िया जैसी विभिन्न मांसाहारी प्रजातियों में से एक, कैनिडी कुल का लकड़बग्घे के समान, डरपोक जानवर के रूप में प्रसिद्ध है।

प्रजाति

सामान्यत: इसकी तीन प्रजातियों की पहचान की गई है-

  1. सुनहरा या इशियाई सियार (सी. ओरियस), जो पूर्वी यूरोप और पूर्वोत्तर अफ़्रीका से दक्षिण-पूर्वी एशिया तक पाया जाता है।
  2. काला पीठ वाला (सी. मेसोमेलस)
  3. बग़लों में धारी वाला (सी.एडजस्टस) सियार, जो दक्षिणी तथा पूर्वी अफ़्रीका में पाए जाते हैं।

आकार एवं रंग-रूप

सियार लगभग 85 से 95 सेमी की लंबाई तक बढते हैं, जिसमें उनकी 30-35 सेमी लंबी पूंछ शामिल है। इनका वज़न लगभग 7-11 किग्रा होता है। सुनहरा सियार पीतवर्णी होता है। काली पीठ वाले सियार का रंग धूसर लाल और पीठ काली होती है। बगलों में धारी वाले सियार का रंग स्लेटी होता है और इसकी पूंछ की छोर सफ़ेद होती है तथा दोनों तरफ़ अस्पष्ट धारी होती है।

आवास एवं भोजन

सियार खुले इलाक़ों में निवास करते हैं। ये निशाचर प्राणी दिन के समय सामान्यत: घनी झाड़ियों में छिपे रहते हैं और सूर्य के डूबने के बाद शिकार के लिए निकलते हैं। ये अकेले, जोड़ों में या झंडों में रहते हैं और जो भी छोटा जानवर, वनस्पति या सड़ा-गला मांस इन्हें मिलता है, ये उसी पर गुज़ारा कर लेते हैं। ये सिंहों और अन्य बड़े विडालों का पीछा करते हैं तथा उनके द्वारा शिकार के भोजन के बाद बचे हुए मांस को खाते हैं। जब से झुंडों में शिकार करते हैं, तो हिरन, बारहसिंगा या भेड़ जैसे बड़े जंतु को भी मार गिराते हैं।

प्रजनन

अपने वंश के अन्य सदस्यों की तरह सियार शाम के समय आवाज़ें निकालते हैं। लकड़बग्घे के मुक़ाबले इनकी चीख़ मनुष्यों को कम परेशान करती है। इनकी पूंछ के आधार के पास स्थित एक ग्रंथि से निकलने वाले स्त्राव के कारण इनसे एक दुर्गंध आती है। यह ज़मीन में बने हुए बिलों या खोहों में बच्चे देते हैं और एक बार में इनके दो से सात शावक जन्म लेते हैं। गर्भावधि 57 से 70 दिनों की होती है। भेडियों और काइयोट (उत्तर अमेरिकी भेड़िया) के समान सियार भी पालतू कुत्तों के साथ अंतर- प्रजनन करते हैं। हाइनेनिडी कुल के भू-वृक को कभी-कभी मेड़ या धूसर सियार कहा जाता है। दक्षिण अमेरिकी लोमड़ी को भी कभी-कभी सियार की संज्ञा दी जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक- भारत ज्ञानकोश खंड-6, पृष्ठ संख्या- 70

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