बौद्ध संगीति चतुर्थ

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चतुर्थ बौद्ध संगीति, जिसे अंतिम बौद्ध संगीति माना जाता है, का आयोजन कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल (लगभग 120-144 ई.) में हुई। यह संगीति कश्मीर के 'कुण्डलवन' में आयोजित की गई थी। इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे। अश्वघोष कनिष्क का राजकवि था। इसी संगीति में बौद्ध धर्म दो शाखाओं- हीनयान और महायान में विभाजित हो गया। हुएनसांग के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और 'त्रिपिटक' का पुन: संकलन व संस्करण हुआ।

संगीति का आयोजन

कनिष्क ने जब बौद्ध धर्म का अध्ययन शुरू किया, तो उसने अनुभव किया कि उसके विविध सम्प्रदायों में बहुत मतभेद है। धर्म के सिद्धांतों के स्पष्टीकरण के लिए यह आवश्यक है, कि प्रमुख विद्वान् एक स्थान पर एकत्र हों, और सत्य सिद्धांतों का निर्णय करें। इसलिए कनिष्क ने कश्मीर के कुण्डलवन विहार में एक महासभा का आयोजन किया, जिसमें 500 प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् सम्मिलित हुए। अश्वघोष के गुरु आचार्य वसुमित्र और पार्श्व इनके प्रधान थे। वसुमित्र को महासभा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

विशाल ग्रंथ की रचना

महासभा में एकत्र विद्वानों ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को स्पष्ट करने और विविध सम्प्रदायों के विरोध को दूर करने के लिए 'महाविभाषा' नाम का एक विशाल ग्रंथ तैयार किया। यह ग्रंथ 'त्रिपिटक' के भाष्य के रूप में था। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में था और इसे ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण कराया गया था। ये ताम्रपत्र एक विशाल स्तूप में सुरक्षित करके रख दिए गए थे। ये स्तूप कहाँ स्थित था, इस विषय में अभी तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। यदि कभी इस स्तूप के विषय में ज्ञान हो जाये तो और उसके ताम्रपत्र उपलब्ध हो सकें, तो निःसन्देह कनिष्क के बौद्ध धर्म सम्बन्धी कार्य पर बहुत प्रकाश पड़ेगा। विशाल ग्रंथ 'महाविभाषा' का चीनी संस्करण वर्तमान समय में मौजूद है।


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