सुनीति कुमार चटर्जी

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सुनीति कुमार चटर्जी
पूरा नाम सुनीति कुमार चटर्जी
जन्म 25 नवम्बर, 1890
जन्म भूमि बंगाल, ब्रिटिश भारत
मृत्यु 29 मई, 1977
मृत्यु स्थान कोलकाता
अभिभावक हरिदास चट्टोपाध्याय
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भाषा विज्ञान
भाषा ग्रीक, इतालवी, लैटिन, फ़्रेंच, अंग्रेज़ी, जर्मन, फ़ारसी, संस्कृत तथा दर्जनों आधुनिक भारतीय भाषाएँ
विद्यालय 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज', कोलकाता; 'कोलकाता विश्वविद्यालय'
शिक्षा अंग्रेज़ी ऑनर्स (1911), एम.ए. (1913)
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मभूषण' (1955), 'पद्मविभूषण' (1963), 'जुबली शोध पुरस्कार'
प्रसिद्धि भाषा वैज्ञानिक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आप उन विद्वानों में से एक थे, जिन्होंने हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा मानने में प्रमुख योगदान दिया।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

सुनीति कुमार चटर्जी (अंग्रेज़ी: Suniti Kumar Chatterji; जन्म- 25 नवम्बर, 1890, बंगाल, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 29 मई, 1977, कोलकाता) को भारत के प्रसिद्ध भाषाविद, साहित्यकार तथा विद्याशास्त्री के रुप में जाना जाता है। वे एक लोकप्रिय कला प्रेमी भी थे। सुनीति कुमार की संस्कृत योग्यता को देखते हुए उन्हें 'जुबली शोध पुरस्कार' दिया गया था। उन्होंने विदेशों में भी भारतीय कला और संस्कृति पर अनेक व्याख्यान दिए थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर का सान्निध्य भी इन्हें प्राप्त था। सुनीति कुमार चटर्जी ग्रीक, इतालवी, लैटिन, फ़्रेंच, अंग्रेज़ी, जर्मन, फ़ारसी, संस्कृत तथा दर्जनों आधुनिक भारतीय भाषाओं के ज्ञाता थे।

जन्म तथा शिक्षा

देश के प्रमुख भाषा वैज्ञानिक डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी का जन्म 25 नवम्बर, 1890 ई. को हावड़ा (कोलकाता) के शिवपुर नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम हरिदास चट्टोपाध्याय था। सुनीति कुमार प्रारम्भ से ही एक मेधावी छात्र रहे थे। उन्होंने एक मुफ़्त चलने वाले स्कूल से एंट्रेस की परीक्षा सन 1907 ई. में उत्तीर्ण की थी। इसमें उन्हें छठा स्थान प्राप्त हुआ था। इसके बाद वर्ष 1911 में उन्होंने 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज', कोलकाता से अंग्रेज़ी ऑनर्स में प्रथम श्रेणी तथा तृतीय स्थान प्राप्त किया। 1913 में उन्होंने अंग्रेज़ी में ही 'कोलकाता विश्वविद्यालय' से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1919 में उनकी संस्कृत की योग्यता के कारण उन्हें 'प्रेमचन्द रायचन्द छात्रवृत्ति' तथा 'जुबली शोध पुरस्कार' दिया गया।

विदेश गमन

सुनीति कुमार ने भारत सरकार की छात्रवृत्ति पर 'लन्दन विश्वविद्यालय' से ध्वनिशास्त्र में डिप्लोमा प्राप्त किया था। इसके साथ ही भारोपीय भाषा-विज्ञान, प्राकृत, पारसी, प्राचीन आयरिश, गौथिक और अन्य भाषाओं का भी आपने अध्ययन किया। तदुपरांत वे पेरिस चले गए और वहाँ के ऐतिहासिक विश्वविद्यालय 'सरबोन' में भारतीय-आर्य, स्लाव और भारोपीय भाषा विज्ञान, ग्रीक व लैटिन पर शोधकार्य आदि किया। वर्ष 1921 में सुनीति कुमार ने 'लन्दन विश्वविद्यालय' से ही डी-लिट की उपाधि प्राप्त की।

महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य

भारत वापस लौट आने के बाद सुनीति कुमार चटर्जी ने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। इसके बाद वे कुछ दिनों तक 'कोलकाता विश्वविद्यालय' में अँग्रेज़ी के सहायक प्रोफ़ेसर रहे। बाद में उनको भारतीय भाषा-विज्ञान विभाग का प्रधान पद प्रदान कर दिया गया। इस पद पर उन्होंने सन 1921 से 1952 तक सफलतापूर्वक कार्य किया। सन 1961 में उन्होंने बंगीय साहित्य परिषद में अध्यक्ष पद पर भी कार्य किया। इसके अतिरिक्त भारत सरकार के द्वारा उन्हें संस्कृत कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया तथा 1969 से 1977 तक वे 'साहित्य अकादमी' के अध्यक्ष पद पर भी कार्य करते रहे। उनके भाषा के गंभीर अध्ययन तथा उससे सम्बन्धित प्रकाशित ग्रन्थों ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का साथ

जब रवीन्द्रनाथ टैगोर मलय, सुमात्रा, जावा और बाली की यात्रा पर गए, उस समय सुनीति कुमार उनके साथ ही रहे। उन्होंने कई बौद्धिक सम्मेलनों में भाग लिया और भारतीय कला तथा संस्कृति पर अनेक व्याख्यान दिए।

ग्रंथ रचना

डॉ. चटर्जी भारतीय भाषाओं की सामर्थ्य से भली-भाँति परिचित थे। हिन्दीतर विद्वानों में से हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा मानने वालों में वे प्रमुख व्यक्ति थे। उन्होंने अनेक उच्चस्तरीय ग्रंथों की रचना की थी। उनके प्रकाशित ग्रंथों की संख्या अंग्रेज़ी में 30, बंगला में 22 और हिन्दी में 7 है। उनके जो सैकड़ों निबंध प्रकाशित हुए, वे भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं।

पुरस्कार व सम्मान

अनेक विश्वविद्यालयों द्वारा सम्मानित डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी को भारत सरकार ने 1955 में 'पद्मभूषण' और 1963 में 'पद्मविभूषण' से अलंकृत किया था।

निधन

विश्व के कई देशों में भारत की कला और संस्कृति का प्रचार करने वाले इस महान् भाषाविद का 29 मई, 1977 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में देहांत हो गया।


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