सूर वंश: Difference between revisions
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सूर वंश एक अफ़ग़ान वंश था, जिसने उत्तरी [[भारत]] पर 1540 से 1555 तक शासन किया। इसके संस्थापक [[शेरशाह सूरी|शेरशाह सूर]] एक अफ़ग़ानी अभियानकर्ता के वंशज थे, जिन्हें [[दिल्ली]] के सुल्तान [[बहलोल लोदी]] ने [[जौनपुर]] के शर्की सुल्तानों के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई के दौरन अपनी सेना में शामिल किया था। सूर वंश जो केवल शेरशाह की चमक से आलोकित है। | |||
* | *शेरशाह का असली नाम फ़रीद था। युवावस्था में एक शेर मारने के बाद उन्हें ‘शेर’ की उपाधि दी गई थी। जब [[मुग़ल काल|मुग़ल वंश]] के संस्थापक [[बाबर]] ने लोदी शासकों को पराजित किया, तो शेरशाह ने अफ़ग़ान साम्राज्य के [[बिहार]] व [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया तथा बाद में मुग़ल बादशाह [[हुमायूँ]] को [[चौसा का युद्ध|चौसा]] (1539) और [[कन्नौज]] (1540) के युद्धों में पराजित किया। | ||
*शेरशाह ने पूरे उत्तरी भारत पर पांच वर्ष तक शासन किया, और [[मालवा]] को अपने राज्य में मिला लिया तथा राजपूतों के भी दांत खट्टे किए। | *शेरशाह ने पूरे उत्तरी भारत पर पांच वर्ष तक शासन किया, और [[मालवा]] को अपने राज्य में मिला लिया तथा [[राजपूत|राजपूतों]] के भी दांत खट्टे किए। उन्होंने प्रशासन को फिर से संगठित किया, जिनके बाद में मुग़ल बादशाह [[अकबर]] के लिए नींव का काम किया। | ||
*मध्य भारत में [[कालिंजर]] के दुर्ग पर अधिकार करते समय वह तोप का गोला फटने से शेरशाह की मृत्यु हुई। | |||
*मध्य भारत में कालिंजर के दुर्ग पर अधिकार करते समय वह तोप का गोला फटने से | *शेरशाह के पुत्र [[इसलाम शाह सूर|इसलाम शाह]] या 'सलीम शाह' सक्षम व्यक्ति थे और विरोधों के बावजूद उन्होंने अफ़ग़ान शासन को क़ायम रखा। उसकी मृत्यु (1553) के बाद सूर वंश आपस में संघर्षरत दावेदारों के बीच बंट गया। | ||
*शेरशाह के पुत्र | |||
*सिकंदर सूर को जून 1555 में हुमायूं ने पराजित करके जुलाई में दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया। | *सिकंदर सूर को जून 1555 में हुमायूं ने पराजित करके जुलाई में दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया। | ||
*मुहम्मद आदिल शाह के | *मुहम्मद आदिल शाह के [[हिन्दू]] सेनापति [[हेमू]] द्वारा पाला बदले जाने और [[पानीपत]] में पराजित (1556) होने के बाद सूर वंश का पतन हो गया। | ||
*मुग़ल | *मुग़ल शासनकाल के संक्षिप्त अंतराल में सूर वंश का शासन रहा। यह उत्तरी भारत का अंतिम अफ़ग़ान शासन वंश था। | ||
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[[चित्र:Shershah-Suri.jpg|thumb|शेरशाह सूरी]] सूर वंश एक अफ़ग़ान वंश था, जिसने उत्तरी भारत पर 1540 से 1555 तक शासन किया। इसके संस्थापक शेरशाह सूर एक अफ़ग़ानी अभियानकर्ता के वंशज थे, जिन्हें दिल्ली के सुल्तान बहलोल लोदी ने जौनपुर के शर्की सुल्तानों के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई के दौरन अपनी सेना में शामिल किया था। सूर वंश जो केवल शेरशाह की चमक से आलोकित है।
- शेरशाह का असली नाम फ़रीद था। युवावस्था में एक शेर मारने के बाद उन्हें ‘शेर’ की उपाधि दी गई थी। जब मुग़ल वंश के संस्थापक बाबर ने लोदी शासकों को पराजित किया, तो शेरशाह ने अफ़ग़ान साम्राज्य के बिहार व बंगाल क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया तथा बाद में मुग़ल बादशाह हुमायूँ को चौसा (1539) और कन्नौज (1540) के युद्धों में पराजित किया।
- शेरशाह ने पूरे उत्तरी भारत पर पांच वर्ष तक शासन किया, और मालवा को अपने राज्य में मिला लिया तथा राजपूतों के भी दांत खट्टे किए। उन्होंने प्रशासन को फिर से संगठित किया, जिनके बाद में मुग़ल बादशाह अकबर के लिए नींव का काम किया।
- मध्य भारत में कालिंजर के दुर्ग पर अधिकार करते समय वह तोप का गोला फटने से शेरशाह की मृत्यु हुई।
- शेरशाह के पुत्र इसलाम शाह या 'सलीम शाह' सक्षम व्यक्ति थे और विरोधों के बावजूद उन्होंने अफ़ग़ान शासन को क़ायम रखा। उसकी मृत्यु (1553) के बाद सूर वंश आपस में संघर्षरत दावेदारों के बीच बंट गया।
- सिकंदर सूर को जून 1555 में हुमायूं ने पराजित करके जुलाई में दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया।
- मुहम्मद आदिल शाह के हिन्दू सेनापति हेमू द्वारा पाला बदले जाने और पानीपत में पराजित (1556) होने के बाद सूर वंश का पतन हो गया।
- मुग़ल शासनकाल के संक्षिप्त अंतराल में सूर वंश का शासन रहा। यह उत्तरी भारत का अंतिम अफ़ग़ान शासन वंश था।