शिव: Difference between revisions
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'''शिव''' हिंदू धर्म ग्रंथ [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। | |||
*संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है- प्रलयकाल के | *संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है- प्रलयकाल के पश्चात् सृष्टि के आरम्भ में भगवान नारायण की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा जी अपने कारण का पता लगाने के लिये कमलनाल के सहारे नीचे उतरे। वहाँ उन्होंने शेषशायी भगवान नारायण को योगनिद्रा में लीन देखा। उन्होंने भगवान नारायण को जगाकर पूछा- 'आप कौन हैं?' नारायण ने कहा कि मैं लोकों का उत्पत्तिस्थल और लयस्थल पुरुषोत्तम हूँ। ब्रह्मा ने कहा- 'किन्तु सृष्टि की रचना करने वाला तो मैं हूँ।' ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने उन्हें अपने शरीर में व्याप्त सम्पूर्ण [[ब्रह्माण्ड]] का दर्शन कराया। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा- 'इसका तात्पर्य है कि इस संसार के स्त्रष्टा मैं और आप दोनों हैं।' | ||
*भगवान विष्णु ने कहा- 'ब्रह्माजी! आप भ्रम में हैं। सबके परम कारण परमेश्वर ईशान भगवान शिव को आप नहीं देख रहे हैं। आप अपनी योगदृष्टि से उन्हें देखने का प्रयत्न कीजिये। हम सबके आदि कारण भगवान सदाशिव आपको दिखायी देंगे। जब ब्रह्मा जी ने योगदृष्टि से देखा तो उन्हें त्रिशूल धारण किये परम तेजस्वी नीलवर्ण की एक मूर्ति दिखायी दी। उन्होंने नारायण से पूछा- 'ये कौन हैं? नारायण ने बताया ये ही देवाधिदेव भगवान [[महादेव]] हैं। ये ही सबको उत्पन्न करने के उपरान्त सबका भरण-पोषण करते हैं और अन्त में सब इन्हीं में लीन हो जाते हैं। इनका न कोई आदि है न अन्त। यही सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं।' इस प्रकार ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की कृपा से सदाशिव का दर्शन किया। | *भगवान विष्णु ने कहा- 'ब्रह्माजी! आप भ्रम में हैं। सबके परम कारण परमेश्वर ईशान भगवान शिव को आप नहीं देख रहे हैं। आप अपनी योगदृष्टि से उन्हें देखने का प्रयत्न कीजिये। हम सबके आदि कारण भगवान सदाशिव आपको दिखायी देंगे। जब ब्रह्मा जी ने योगदृष्टि से देखा तो उन्हें त्रिशूल धारण किये परम तेजस्वी नीलवर्ण की एक मूर्ति दिखायी दी। उन्होंने नारायण से पूछा- 'ये कौन हैं? नारायण ने बताया ये ही देवाधिदेव भगवान [[महादेव]] हैं। ये ही सबको उत्पन्न करने के उपरान्त सबका भरण-पोषण करते हैं और अन्त में सब इन्हीं में लीन हो जाते हैं। इनका न कोई आदि है न अन्त। यही सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं।' इस प्रकार ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की कृपा से सदाशिव का दर्शन किया। | ||
[[चित्र:Nataraja-Shiva.jpg|thumb|200px|left|नटराज शिव काँस्य प्रतिमा]] | [[चित्र:Nataraja-Shiva.jpg|thumb|200px|left|नटराज शिव काँस्य प्रतिमा]] | ||
*भगवान शिव का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रुद्राणियाँ, चौंसठ योगिनियाँ तथा भैरवादि इनके सहचर और सहचरी हैं। | *भगवान शिव का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रुद्राणियाँ, चौंसठ योगिनियाँ तथा भैरवादि इनके सहचर और सहचरी हैं। | ||
*माता [[पार्वती देवी|पार्वती]] की सखियों में विजया आदि प्रसिद्ध हैं। | *माता [[पार्वती देवी|पार्वती]] की सखियों में विजया आदि प्रसिद्ध हैं। | ||
*[[गणेश|गणपति]]-परिवार में उनकी सिद्धि, बुद्धि नामक दो पत्नियाँ तथा क्षेम और लाभ दो पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। | *[[गणेश|गणपति]]-परिवार में उनकी सिद्धि, बुद्धि नामक दो पत्नियाँ तथा क्षेम और लाभ दो पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। | ||
*भगवान [[कार्तिकेय]] की पत्नी देवसेना तथा वाहन मयूर है। | *भगवान [[कार्तिकेय]] की पत्नी देवसेना तथा वाहन मयूर है। | ||
*भगवती पार्वती का वाहन सिंह है तथा भगवान शिव स्वयं धर्मावतार [[नन्दी]] पर आरूढ़ होते हैं। | *भगवती पार्वती का वाहन सिंह है तथा भगवान शिव स्वयं धर्मावतार [[नन्दी]] पर आरूढ़ होते हैं। | ||
*यद्यपि भगवान शिव सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि [[काशी]] और कैलास- ये दो उनके मुख्य निवास स्थान कहे गये हैं। | *यद्यपि भगवान शिव सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि [[काशी]] और कैलास- ये दो उनके मुख्य निवास स्थान कहे गये हैं। | ||
*भगवान शिव देवताओं के उपास्य तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अनेक असुरों- अन्धक, दुन्दुभी, महिष, त्रिपुर, रावण, निवात-कवच आदि को भी अतुल ऐश्वर्य प्रदान किया। | *भगवान शिव देवताओं के उपास्य तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अनेक असुरों- अन्धक, दुन्दुभी, महिष, त्रिपुर, रावण, निवात-कवच आदि को भी अतुल ऐश्वर्य प्रदान किया। | ||
*[[कुबेर]] आदि लोकपालों को उनकी कृपा से यक्षों का स्वामित्व प्राप्त हुआ। सभी देवगणों तथा ऋषि-मुनियों को दु:खी देखकर उन्होंने कालकूट विष का पान किया। इसी से वे [[नीलकण्ठ महादेव|नीलकण्ठ]] कहलाये। इस प्रकार भगवान शिव की महिमा और नाम अनन्त हैं। | *[[कुबेर]] आदि लोकपालों को उनकी कृपा से यक्षों का स्वामित्व प्राप्त हुआ। सभी देवगणों तथा ऋषि-मुनियों को दु:खी देखकर उन्होंने कालकूट विष का पान किया। इसी से वे [[नीलकण्ठ महादेव|नीलकण्ठ]] कहलाये। इस प्रकार भगवान शिव की महिमा और नाम अनन्त हैं। | ||
[[चित्र:Bhagwan-Shiv-1.jpg|thumb|शिव, [[पार्वती देवी|पार्वती]], [[गणेश]] और [[कार्तिकेय]]<br /> Shiv, Parvati, Ganesh and Kartik]] | [[चित्र:Bhagwan-Shiv-1.jpg|thumb|शिव, [[पार्वती देवी|पार्वती]], [[गणेश]] और [[कार्तिकेय]]<br /> Shiv, Parvati, Ganesh and Kartik]] | ||
*उनके अनेक रूपों में [[उमा-महेश्वर]], [[ | *उनके अनेक रूपों में [[उमा-महेश्वर]], [[अर्द्धनारीश्वर]], [[पशुपति]], [[कृत्तिवासा]], [[दक्षिणामूर्ति]] तथा [[योगीश्वर]] आदि अति प्रसिद्ध हैं। | ||
*[[महाभारत]], [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] के अनुसार [[पांचाल]] नरेश [[द्रुपद]] की पुत्री [[द्रौपदी]] पूर्वजन्म में एक [[ऋषि]] कन्या थी। उसने श्रेष्ठ पति पाने की कामना से भगवान शिव की तपस्या की थी। शंकर ने प्रसन्न होकर उसे वर देने की इच्छा की। उसने शंकर से पाँच बार कहा कि वह सर्वगुणसंपन्न पति चाहती है। शंकरजी ने कहा कि अगले जन्म में उसके पाँच भरतवंशी पति होंगे, क्योंकि उसने पति पाने की कामना पाँच बार दोहरायी थी।<ref>महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 166, 168. </ref> | |||
*भगवान शिव की ईशान, तत्पुरुष, वामदेव, अघोर तथा अद्योजात पाँच विशिष्ट मूर्तियाँ और शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव- ये अष्टमूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं। | *भगवान शिव की ईशान, तत्पुरुष, वामदेव, अघोर तथा अद्योजात पाँच विशिष्ट मूर्तियाँ और शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव- ये अष्टमूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं। | ||
*[[सोमनाथ ज्योतिर्लिंग|सोमनाथ]], [[मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग|मल्लिकार्जुन]], [[महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|महाकालेश्वर]], [[ | *[[सोमनाथ ज्योतिर्लिंग|सोमनाथ]], [[मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग|मल्लिकार्जुन]], [[महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|महाकालेश्वर]], [[ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग|ओंकारेश्वर]], [[केदारनाथ ज्योतिर्लिंग|केदारेश्वर]], [[भीमशंकर ज्योतिर्लिंग|भीमशंकर]], [[विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग|विश्वेश्वर]], [[त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग|त्र्यंबक]], [[वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग|वैद्यनाथ]], [[नागेश ज्योतिर्लिंग|नागेश]], [[रामेश्वर ज्योतिर्लिंग|रामेश्वर]] तथा [[घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग|घुश्मेश्वर]]– ये प्रसिद्ध [[द्वादश ज्योतिर्लिंग|बारह ज्योतिर्लिंग]] हैं। | ||
*भगवान शिव के मन्त्र-उपासना में पंचाक्षर '''नम: शिवाय''' तथा '''महामृत्युंजय''' विशेष प्रसिद्ध है। | *भगवान शिव के मन्त्र-उपासना में पंचाक्षर '''नम: शिवाय''' तथा '''महामृत्युंजय''' विशेष प्रसिद्ध है। | ||
*इसके अतिरिक्त भगवान शिव की पार्थिव-पूजा का भी विशेष महत्त्व है। | *इसके अतिरिक्त भगवान शिव की पार्थिव-पूजा का भी विशेष महत्त्व है। | ||
*शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं । [[वेद]] में इनका नाम [[रुद्र]] है। यह व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । इनकी | *शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं । [[वेद]] में इनका नाम [[रुद्र]] है। यह व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । इनकी अर्द्धांगिनी (शक्ति) का नाम [[पार्वती देवी|पार्वती]] और इनके पुत्र [[कार्तिकेय|स्कन्द]] और [[गणेश]] हैं। | ||
*शिव योगी के रूप में माने जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में होती है । | *शिव योगी के रूप में माने जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में होती है । | ||
*भगवान शिव सौम्य एवं रौद्ररूप दोनों के लिए जाने जाते हैं । | *भगवान शिव सौम्य एवं रौद्ररूप दोनों के लिए जाने जाते हैं । | ||
*सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति | *सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के [[देवता]] माने जाते हैं । शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे उनका लय और प्रलय दोनों पर समान अधिकार है। | ||
*भक्त पूजन में [[शिव जी की आरती]] की जाती है। | *भक्त पूजन में [[शिव जी की आरती]] की जाती है। | ||
*शिव जी के अन्य भक्तों में [[त्रिहारिणी]] भी थे और शिव जी त्रिहारिणी को अपने पुत्रों से भी अधिक प्यार करते थे। | |||
==शिवताण्डवस्तोत्रम्== | ==शिवताण्डवस्तोत्रम्== | ||
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चित्र:Bhuteshwar-Mahadev-Temple-2.jpg|[[भूतेश्वर महादेव मथुरा|भूतेश्वर महादेव मन्दिर]], [[मथुरा]] | चित्र:Bhuteshwar-Mahadev-Temple-2.jpg|[[भूतेश्वर महादेव मथुरा|भूतेश्वर महादेव मन्दिर]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:Shiva-1.jpg| शिव की काँस्य प्रतिमा, ग्युमित संग्रहालय, पेरिस, फ़्रान्स | चित्र:Shiva-1.jpg|शिव की काँस्य प्रतिमा, <br />ग्युमित संग्रहालय, पेरिस, फ़्रान्स | ||
चित्र: | चित्र:Natraj.jpg|नटराज शिव | ||
चित्र: | चित्र:Neelkantheshwar-Temple-Mathura-3.jpg|शिवलिंग, नीलकन्ठेश्वर महादेव मन्दिर, [[मथुरा]] | ||
चित्र:Galteshwar-Mahadeva-Temple-2.jpg|[[गर्तेश्वर महादेव मथुरा|गर्तेश्वर महादेव]], [[मथुरा]] | चित्र:Shiva-2.jpg|शिव के मंदिर पर नक़्क़ाशी | ||
चित्र:Mathura-Museum-81.jpg|शिव मूर्ति<br />[[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | चित्र:Nageshwar-Mahadev-Gujarat-1.jpg|नंगेश्वर महादेव, [[द्वारका]] | ||
चित्र:Rangeshwar-1.jpg| [[रंगेश्वर महादेव मथुरा|रंगेश्वर महादेव मन्दिर]], [[मथुरा]] | चित्र:Galteshwar-Mahadeva-Temple-2.jpg|[[गर्तेश्वर महादेव मथुरा|गर्तेश्वर महादेव]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:Chinta-Haran-Ashram-1.jpg|शिवलिंग, चिन्ता हरण आश्रम, [[महावन]] | चित्र:Statue-Shiva-Bangalore.jpg|भगवान शिव की मूर्ति, [[बेंगळूरू]] | ||
चित्र:Shiv Barat Mathura 10.jpg|शिव बारात, [[मथुरा]] | चित्र:Mathura-Museum-81.jpg|शिव मूर्ति<br />[[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]] | ||
चित्र:Shiv Barat Mathura 5.jpg|शिव बारात, [[मथुरा]] | चित्र:Rangeshwar-1.jpg| [[रंगेश्वर महादेव मथुरा|रंगेश्वर महादेव मन्दिर]], [[मथुरा]] | ||
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== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
{{हिन्दू देवी देवता और अवतार}} | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | |||
{{द्वादश ज्योतिर्लिंग}} | *[http://www.scribd.com/doc/133662684/Lord-Shiva-and-Shai प्रोफेसर महावीर सरन जैन - भगवान शिव एवं शैव दर्शन] | ||
{{शिव}} | {{शिव मंदिर}}{{शिव2}}{{हिन्दू देवी देवता और अवतार}}{{द्वादश ज्योतिर्लिंग}}{{शिव}} | ||
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Latest revision as of 07:38, 7 November 2017
चित्र:Disamb2.jpg शिव | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- शिव (बहुविकल्पी) |
thumb|शिव
Shiva
शिव हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं।
- संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है- प्रलयकाल के पश्चात् सृष्टि के आरम्भ में भगवान नारायण की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा जी अपने कारण का पता लगाने के लिये कमलनाल के सहारे नीचे उतरे। वहाँ उन्होंने शेषशायी भगवान नारायण को योगनिद्रा में लीन देखा। उन्होंने भगवान नारायण को जगाकर पूछा- 'आप कौन हैं?' नारायण ने कहा कि मैं लोकों का उत्पत्तिस्थल और लयस्थल पुरुषोत्तम हूँ। ब्रह्मा ने कहा- 'किन्तु सृष्टि की रचना करने वाला तो मैं हूँ।' ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने उन्हें अपने शरीर में व्याप्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का दर्शन कराया। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा- 'इसका तात्पर्य है कि इस संसार के स्त्रष्टा मैं और आप दोनों हैं।'
- भगवान विष्णु ने कहा- 'ब्रह्माजी! आप भ्रम में हैं। सबके परम कारण परमेश्वर ईशान भगवान शिव को आप नहीं देख रहे हैं। आप अपनी योगदृष्टि से उन्हें देखने का प्रयत्न कीजिये। हम सबके आदि कारण भगवान सदाशिव आपको दिखायी देंगे। जब ब्रह्मा जी ने योगदृष्टि से देखा तो उन्हें त्रिशूल धारण किये परम तेजस्वी नीलवर्ण की एक मूर्ति दिखायी दी। उन्होंने नारायण से पूछा- 'ये कौन हैं? नारायण ने बताया ये ही देवाधिदेव भगवान महादेव हैं। ये ही सबको उत्पन्न करने के उपरान्त सबका भरण-पोषण करते हैं और अन्त में सब इन्हीं में लीन हो जाते हैं। इनका न कोई आदि है न अन्त। यही सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं।' इस प्रकार ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की कृपा से सदाशिव का दर्शन किया।
thumb|200px|left|नटराज शिव काँस्य प्रतिमा
- भगवान शिव का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रुद्राणियाँ, चौंसठ योगिनियाँ तथा भैरवादि इनके सहचर और सहचरी हैं।
- माता पार्वती की सखियों में विजया आदि प्रसिद्ध हैं।
- गणपति-परिवार में उनकी सिद्धि, बुद्धि नामक दो पत्नियाँ तथा क्षेम और लाभ दो पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है।
- भगवान कार्तिकेय की पत्नी देवसेना तथा वाहन मयूर है।
- भगवती पार्वती का वाहन सिंह है तथा भगवान शिव स्वयं धर्मावतार नन्दी पर आरूढ़ होते हैं।
- यद्यपि भगवान शिव सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि काशी और कैलास- ये दो उनके मुख्य निवास स्थान कहे गये हैं।
- भगवान शिव देवताओं के उपास्य तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अनेक असुरों- अन्धक, दुन्दुभी, महिष, त्रिपुर, रावण, निवात-कवच आदि को भी अतुल ऐश्वर्य प्रदान किया।
- कुबेर आदि लोकपालों को उनकी कृपा से यक्षों का स्वामित्व प्राप्त हुआ। सभी देवगणों तथा ऋषि-मुनियों को दु:खी देखकर उन्होंने कालकूट विष का पान किया। इसी से वे नीलकण्ठ कहलाये। इस प्रकार भगवान शिव की महिमा और नाम अनन्त हैं।
[[चित्र:Bhagwan-Shiv-1.jpg|thumb|शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय
Shiv, Parvati, Ganesh and Kartik]]
- उनके अनेक रूपों में उमा-महेश्वर, अर्द्धनारीश्वर, पशुपति, कृत्तिवासा, दक्षिणामूर्ति तथा योगीश्वर आदि अति प्रसिद्ध हैं।
- महाभारत, आदिपर्व के अनुसार पांचाल नरेश द्रुपद की पुत्री द्रौपदी पूर्वजन्म में एक ऋषि कन्या थी। उसने श्रेष्ठ पति पाने की कामना से भगवान शिव की तपस्या की थी। शंकर ने प्रसन्न होकर उसे वर देने की इच्छा की। उसने शंकर से पाँच बार कहा कि वह सर्वगुणसंपन्न पति चाहती है। शंकरजी ने कहा कि अगले जन्म में उसके पाँच भरतवंशी पति होंगे, क्योंकि उसने पति पाने की कामना पाँच बार दोहरायी थी।[1]
- भगवान शिव की ईशान, तत्पुरुष, वामदेव, अघोर तथा अद्योजात पाँच विशिष्ट मूर्तियाँ और शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव- ये अष्टमूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं।
- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमशंकर, विश्वेश्वर, त्र्यंबक, वैद्यनाथ, नागेश, रामेश्वर तथा घुश्मेश्वर– ये प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंग हैं।
- भगवान शिव के मन्त्र-उपासना में पंचाक्षर नम: शिवाय तथा महामृत्युंजय विशेष प्रसिद्ध है।
- इसके अतिरिक्त भगवान शिव की पार्थिव-पूजा का भी विशेष महत्त्व है।
- शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं । वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । इनकी अर्द्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती और इनके पुत्र स्कन्द और गणेश हैं।
- शिव योगी के रूप में माने जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में होती है ।
- भगवान शिव सौम्य एवं रौद्ररूप दोनों के लिए जाने जाते हैं ।
- सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने जाते हैं । शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे उनका लय और प्रलय दोनों पर समान अधिकार है।
- भक्त पूजन में शिव जी की आरती की जाती है।
- शिव जी के अन्य भक्तों में त्रिहारिणी भी थे और शिव जी त्रिहारिणी को अपने पुत्रों से भी अधिक प्यार करते थे।
शिवताण्डवस्तोत्रम्
[[चित्र:ardhnarishwar.jpg|अर्द्धनारीश्वर
Ardhnarishwar|thumb|200px]]
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा- कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत् प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा- अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस- दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर् कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन् इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः |
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
वीथिका
-
शिव की काँस्य प्रतिमा,
ग्युमित संग्रहालय, पेरिस, फ़्रान्स -
नटराज शिव
-
शिवलिंग, नीलकन्ठेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा
-
शिव के मंदिर पर नक़्क़ाशी
-
नंगेश्वर महादेव, द्वारका
-
भगवान शिव की मूर्ति, बेंगळूरू
-
शिव मूर्ति
राजकीय संग्रहालय, मथुरा -
शिवलिंग, चिन्ता हरण आश्रम, महावन
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शिव बारात, मथुरा
-
शिव बारात, मथुरा
-
भगवान शिव की मूर्ति, ऋषिकेश
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नटराज शिव काँस्य प्रतिमा
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भगवान शिव की मूर्ति, हरिद्वार
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शिव और पार्वती
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 166, 168.