बिम्बिसार: Difference between revisions
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'''बिम्बिसार''' (544 ई. पू. से 493 ई. पू.) एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने [[हर्यक वंश]] की स्थापना की थी। बिम्बिसार को [[मगध साम्राज्य]] का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने ने '[[गिरिव्रज]]' (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया था। [[कौशल महाजनपद|कौशल]], [[वैशाली]] एवं [[पंजाब]] आदि से वैवाहिक सम्बंधों की नीति अपनाकर बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया। बिम्बिसार [[गौतम बुद्ध]] के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे। | '''बिम्बिसार''' (544 ई. पू. से 493 ई. पू.) एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने [[हर्यक वंश]] की स्थापना की थी। बिम्बिसार को [[मगध साम्राज्य]] का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने ने '[[गिरिव्रज]]' (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया था। [[कौशल महाजनपद|कौशल]], [[वैशाली]] एवं [[पंजाब]] आदि से वैवाहिक सम्बंधों की नीति अपनाकर बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया। बिम्बिसार [[गौतम बुद्ध]] के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे। | ||
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बिम्बिसार का जन्म 558 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था। [[मगध]] के राजा बिम्बिसार की राजधानी राजगीर थी। वे पन्द्रह [[वर्ष]] की आयु में ही राजा बने और अपने पुत्र 'अजातसत्तु' (संस्कृत- [[अजातशत्रु]]) के लिए राज-पाट त्यागने से पूर्व बावन वर्ष इन्होंने राज्य किया। [[प्रसेनजित]] की बहन और [[कोसल]] की राजकुमारी 'महाकोशला' इनकी पत्नी और अजातशत्रु की माँ थी। '[[चेल्लना]]', 'खेमा' अथवा 'क्षेमा', 'सीलव' और 'जयसेना' नामक इनकी अन्य पत्नियाँ भी थीं। विख्यात वीरांगना अम्बापालि से इनका विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था। बिम्बिसार [[बुद्ध]] के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे। इनकी पत्नी भिक्षुणी बन गई थीं।<ref>{{cite book | last = | first =चंद्रमौली मणि त्रिपाठी | title =दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ | edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिंदी | pages =87 | chapter =}}</ref> | बिम्बिसार का जन्म 558 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था। [[मगध]] के राजा बिम्बिसार की राजधानी राजगीर थी। वे पन्द्रह [[वर्ष]] की आयु में ही राजा बने और अपने पुत्र 'अजातसत्तु' (संस्कृत- [[अजातशत्रु]]) के लिए राज-पाट त्यागने से पूर्व बावन वर्ष इन्होंने राज्य किया। [[प्रसेनजित]] की बहन और [[कोसल]] की राजकुमारी 'महाकोशला' इनकी पत्नी और अजातशत्रु की माँ थी। '[[चेल्लना]]', '[[खेमा]]' अथवा 'क्षेमा', 'सीलव' और 'जयसेना' नामक इनकी अन्य पत्नियाँ भी थीं। विख्यात वीरांगना अम्बापालि से इनका विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था। बिम्बिसार [[बुद्ध]] के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे। इनकी पत्नी भिक्षुणी बन गई थीं।<ref>{{cite book | last = | first =चंद्रमौली मणि त्रिपाठी | title =दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ | edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिंदी | pages =87 | chapter =}}</ref> | ||
====महावग्ग का उल्लेख==== | ====महावग्ग का उल्लेख==== | ||
'महावग्ग' के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियाँ थीं। उसने [[अवंति]] के शक्तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। [[सिन्ध]] के शासक रूद्रायन तथा [[गांधार]] के मुक्कु रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था। वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्त किया। | 'महावग्ग' के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियाँ थीं। उसने [[अवंति]] के शक्तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। [[सिन्ध]] के शासक रूद्रायन तथा [[गांधार]] के मुक्कु रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था। वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्त किया। | ||
==साम्राज्य विस्तार की नीति== | ==साम्राज्य विस्तार की नीति== | ||
बिम्बिसार ने [[हर्यक वंश]] की स्थापना 544 ई. पू. में की थी। इसके साथ ही राजनीतिक शक्ति के रूप में [[बिहार]] का सर्वप्रथम उदय हुआ। बिम्बिसार को [[मगध साम्राज्य]] का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने [[गिरिव्रज]] (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया। इसके वैवाहिक सम्बन्धों ([[कौशल]], [[वैशाली]] एवं [[पंजाब]]) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया। | बिम्बिसार ने [[हर्यक वंश]] की स्थापना 544 ई. पू. में की थी। इसके साथ ही राजनीतिक शक्ति के रूप में [[बिहार]] का सर्वप्रथम उदय हुआ। बिम्बिसार को [[मगध साम्राज्य]] का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने [[गिरिव्रज]] (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया। इसके वैवाहिक सम्बन्धों ([[कौशल]], [[वैशाली]] एवं [[पंजाब]]) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया। | ||
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'सुत्तनिपात' की [[अट्ठकथा]] के पब्बज सुत्त के अनुसार बिम्बिसार ने | 'सुत्तनिपात' की [[अट्ठकथा]] के पब्बज सुत्त के अनुसार बिम्बिसार ने संन्यासी [[बुद्ध|गौतम]] का प्रथम दर्शन पाण्डव पर्वत के नीचे अपने राजभवन के गवाक्ष से किया और उनके पीछे जाकर उन्हें अपने राजभवन में आमन्त्रित किया था। गौतम ने इनका निमन्त्रण अस्वीकार किया तो इन्होंने गौतम को उनकी उद्देश्य-पूर्ति हेतु शुभकामनाएँ दी और बुद्धत्व-प्राप्ति के उपरान्त उन्हें फिर से [[राजगृह|राजगीर]] आने का निमन्त्रण दिया। तेभतिक जटिल के परिवर्तन के बाद [[बुद्ध]] ने राजगीर में पदार्पण करके अपना वचन पूरा किया। बुद्ध और उनके अनुयायी राजकीय अतिथियों की भाँति राजगीर आए थे। बुद्ध और उनके अनुयायियों के लिए वेलुवन उद्यान दान में देने के अपने प्रण की पूर्ति दर्शाने के लिए बिम्बिसार ने बुद्ध के हाथ स्वर्ण कलश के पानी से धुलवाए। आगामी तीस वर्षों तक बिम्बिसार [[बौद्ध धर्म]] के विकास में सहायक बने।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.ignca.nic.in/coilnet/jatak092.htm |title=बिम्बिसार |accessmonthday=08 नवम्बर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिंदी}}</ref> | ||
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बिम्बिसार का अन्त बड़ा दारुण हुआ। ज्योतिषियों की इस भविष्यवाणी के बाद भी कि उनका पुत्र [[अजातशत्रु]] उनके लिए अशुभ सिद्ध होगा, उन्होंने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला। [[बुद्ध]] को बिम्बिसार द्वारा दिए गए प्रश्रय से देवदत्त बहुत द्वेष करता था और उसी के दुष्प्रभाव में आकर अजातशत्रु ने अपने [[पिता]] की हत्या का षड्यन्त्र रचा, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और धूमिल हो गई। षड्यन्त्र का पता चलने और पुत्र की राज्य लिप्सा की तीव्रता को देखकर बिम्बिसार ने स्वयं ही राज्य-त्याग कर दिया और अजातशत्रु राजा बन गया। परन्तु देवदत्त द्वारा पुन: उकसाए जाने पर नए राजा ने बिम्बिसार को बन्दी बना लिया। | बिम्बिसार का अन्त बड़ा दारुण हुआ। ज्योतिषियों की इस भविष्यवाणी के बाद भी कि उनका पुत्र [[अजातशत्रु]] उनके लिए अशुभ सिद्ध होगा, उन्होंने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला। [[बुद्ध]] को बिम्बिसार द्वारा दिए गए प्रश्रय से देवदत्त बहुत द्वेष करता था और उसी के दुष्प्रभाव में आकर अजातशत्रु ने अपने [[पिता]] की हत्या का षड्यन्त्र रचा, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और धूमिल हो गई। षड्यन्त्र का पता चलने और पुत्र की राज्य लिप्सा की तीव्रता को देखकर बिम्बिसार ने स्वयं ही राज्य-त्याग कर दिया और अजातशत्रु राजा बन गया। परन्तु देवदत्त द्वारा पुन: उकसाए जाने पर नए राजा ने बिम्बिसार को बन्दी बना लिया। | ||
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Latest revision as of 13:02, 10 April 2018
बिम्बिसार
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जन्म | 559 ई. पू. |
मृत्यु तिथि | 493 ई. पू. |
संतान | अजातशत्रु |
शासन काल | 544 ई. पू. से 493 ई. पू. |
धार्मिक मान्यता | बौद्ध धर्म |
राजधानी | 'गिरिव्रज' (राजगीर) |
उत्तराधिकारी | अजातशत्रु |
वंश | हर्यक वंश |
संबंधित लेख | गौतम बुद्ध, अजातशत्रु |
विशेष | बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना 544 ई. पू. में की थी। इसके साथ ही राजनीतिक शक्ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ। |
अन्य जानकारी | 'सुत्तनिपात' की अट्ठकथा के पब्बज सुत्त के अनुसार बिम्बिसार ने संन्यासी गौतम का प्रथम दर्शन पाण्डव पर्वत के नीचे अपने राजभवन के गवाक्ष से किया और उनके पीछे जाकर उन्हें अपने राजभवन में आमन्त्रित किया था। |
बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.) एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने हर्यक वंश की स्थापना की थी। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने ने 'गिरिव्रज' (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया था। कौशल, वैशाली एवं पंजाब आदि से वैवाहिक सम्बंधों की नीति अपनाकर बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया। बिम्बिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे।
परिचय
बिम्बिसार का जन्म 558 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था। मगध के राजा बिम्बिसार की राजधानी राजगीर थी। वे पन्द्रह वर्ष की आयु में ही राजा बने और अपने पुत्र 'अजातसत्तु' (संस्कृत- अजातशत्रु) के लिए राज-पाट त्यागने से पूर्व बावन वर्ष इन्होंने राज्य किया। प्रसेनजित की बहन और कोसल की राजकुमारी 'महाकोशला' इनकी पत्नी और अजातशत्रु की माँ थी। 'चेल्लना', 'खेमा' अथवा 'क्षेमा', 'सीलव' और 'जयसेना' नामक इनकी अन्य पत्नियाँ भी थीं। विख्यात वीरांगना अम्बापालि से इनका विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था। बिम्बिसार बुद्ध के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे। इनकी पत्नी भिक्षुणी बन गई थीं।[1]
महावग्ग का उल्लेख
'महावग्ग' के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियाँ थीं। उसने अवंति के शक्तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। सिन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार के मुक्कु रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था। वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्त किया।
साम्राज्य विस्तार की नीति
बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना 544 ई. पू. में की थी। इसके साथ ही राजनीतिक शक्ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने गिरिव्रज (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया। इसके वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली एवं पंजाब) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया।
बौद्ध धर्म के विकास में सहायक
'सुत्तनिपात' की अट्ठकथा के पब्बज सुत्त के अनुसार बिम्बिसार ने संन्यासी गौतम का प्रथम दर्शन पाण्डव पर्वत के नीचे अपने राजभवन के गवाक्ष से किया और उनके पीछे जाकर उन्हें अपने राजभवन में आमन्त्रित किया था। गौतम ने इनका निमन्त्रण अस्वीकार किया तो इन्होंने गौतम को उनकी उद्देश्य-पूर्ति हेतु शुभकामनाएँ दी और बुद्धत्व-प्राप्ति के उपरान्त उन्हें फिर से राजगीर आने का निमन्त्रण दिया। तेभतिक जटिल के परिवर्तन के बाद बुद्ध ने राजगीर में पदार्पण करके अपना वचन पूरा किया। बुद्ध और उनके अनुयायी राजकीय अतिथियों की भाँति राजगीर आए थे। बुद्ध और उनके अनुयायियों के लिए वेलुवन उद्यान दान में देने के अपने प्रण की पूर्ति दर्शाने के लिए बिम्बिसार ने बुद्ध के हाथ स्वर्ण कलश के पानी से धुलवाए। आगामी तीस वर्षों तक बिम्बिसार बौद्ध धर्म के विकास में सहायक बने।[2]
अंत समय
बिम्बिसार का अन्त बड़ा दारुण हुआ। ज्योतिषियों की इस भविष्यवाणी के बाद भी कि उनका पुत्र अजातशत्रु उनके लिए अशुभ सिद्ध होगा, उन्होंने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला। बुद्ध को बिम्बिसार द्वारा दिए गए प्रश्रय से देवदत्त बहुत द्वेष करता था और उसी के दुष्प्रभाव में आकर अजातशत्रु ने अपने पिता की हत्या का षड्यन्त्र रचा, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और धूमिल हो गई। षड्यन्त्र का पता चलने और पुत्र की राज्य लिप्सा की तीव्रता को देखकर बिम्बिसार ने स्वयं ही राज्य-त्याग कर दिया और अजातशत्रु राजा बन गया। परन्तु देवदत्त द्वारा पुन: उकसाए जाने पर नए राजा ने बिम्बिसार को बन्दी बना लिया।
पुत्र का अत्याचार
बिम्बिसार को केवल भूखा रखकर ही मारा जा सकता था। उन्हें एक गरम कारागार में भूखा रखा गया। 'महाकोशला' (अजातशत्रु की माँ) के अतिरिक्त किसी को उनसे मिलने की अनुमति नहीं थी। पहले महाकोशला अपने परिधान में एक सुवर्ण-पात्र में भोजन छिपाकर ले गई। उसका पता चलने पर वे अपने पाद-त्राण में भोजन छिपाकर ले गई। उसका भी पता चल गया तो उन्होंने अपने शिरो-वस्र (मोलि) में भोजन छिपाकर ले जाना चाहा। उसका भी पता चल गया तो वे सुगंधित जल में स्नान करके, अपनी देह को मधु (शहद) से लेपकर गई, जिससे वृद्ध राजा उसे चाट ले और बच जाएँ। लेकिन अन्तत: इसका भी पता चल गया और उनका भी प्रवेश निषेध कर दिया गया।
मृत्यु
इतना सब कुछ सह कर भी चल-ध्यान योग से बिम्बिसार जीवित रहे। जब पुत्र को पता चला कि पिता यूँ सरलता से प्राण-त्याग नहीं करेंगें तो उसने कारागार में कुछ नाइयों को भेजा। बिम्बिसार ने सोचा कि अंतत: पुत्र को अपनी भूल का अनुभव हुआ और वह पश्चाताप कर रहा है। अत: उन्होंने नाइयों से अपनी दाढ़ी और बाल काटने को कहा ताकि वे भिक्षुवत जीवन-यापन कर पाऐं। किंतु नाइयों को इसलिए भेजा गया था ताकि वे बिम्बिसार के पैरों को काटकर उनके घावों में नमक और सिरका डाल दें और तत्पश्चात् उन घावों को कोयलों से जला दें। इस प्रकार बिम्बिसार का चल-ध्यान रोक दिया गया और वे दु:खद मृत्यु को प्राप्त हुए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख