गणेश: Difference between revisions

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==गणेश / Ganesha==
{{पात्र परिचय
[[चित्र:Ganesha.jpg|thumb|250px|गणेश<br /> Ganesha]]
|चित्र=Ganesha.jpg
*श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। ये देव समाज में सर्वोपरि स्थान रखते हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। ये [[शिव]] और [[पार्वती]] के दूसरे पुत्र हैं।
|चित्र का नाम=गणेश
*भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं।  
|अन्य नाम=[[गजानन]], [[लम्बोदर]],  [[एकदन्त]], [[विनायक (गणेश)|विनायक]] आदि
*वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिकरूप तथा प्रणवस्वरूप हैं।  
|अवतार=
*उनके अनन्त नामों में  
|वंश-गोत्र=
#सुमुख,
|कुल=
#एकदन्त,
|पिता=[[शिव]]
#कपिल,
|माता=[[पार्वती]]
#गजकर्णक,
|धर्म पिता=
#लम्बोदर,
|धर्म माता=
#विकट,
|पालक पिता=
#विघ्ननाशक,
|पालक माता=
#विनायक,
|जन्म विवरण=[[भाद्रपद]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[चतुर्थी]] को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था।
#धूम्रकेतु,
|समय-काल=
#गणाध्यक्ष,
|धर्म-संप्रदाय=[[हिन्दू धर्म]]
#भालचन्द्र तथा
|परिजन=
#गजानन {{गणेश}}
|गुरु=
*ये बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह-नगरों में प्रवेश तथा गृह-नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।
|विवाह=[[ऋद्धि सिद्धि]]
*भगवान गणपति के प्राकट्य उनकी लीलाओं तथा उनके मनोरम विग्रह के विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है। कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं। उनके सभी चरित्र अनन्त हैं।  
|संतान=
*[[पद्म पुराण]] के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने [[गंगा]] में डाल दिया। गंगाज में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें '''गांगेय''' कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।  
|विद्या पारंगत=
|रचनाएँ=
|महाजनपद=
|शासन-राज्य=
|मंत्र=ॐ गं गणपतये नमः
|वाहन=शास्त्रों और [[पुराण|पुराणों]] में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है।
|प्रसाद=बेसन के लड्डू
|प्रसिद्ध मंदिर=
|व्रत-वार=
|पर्व-त्योहार=[[गणेश चतुर्थी]], [[गणेशोत्सव]]
|श्रृंगार=
|अस्त्र-शस्त्र=
|निवास=
|ध्वज=
|रंग-रूप=
|पूजन सामग्री=
|वाद्य=
|सिंहासन=
|प्राकृतिक स्वरूप=वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
|प्रिय सहचर=
|अनुचर=
|शत्रु-संहार=
|संदर्भ ग्रंथ=
|प्रसिद्ध घटनाएँ=
|अन्य विवरण=
|मृत्यु=
|यशकीर्ति=
|अपकीर्ति=
|संबंधित लेख=[[गणेश स्तुति]], [[गणेश चालीसा]], [[गणेश जी की आरती]], [[श्री गणेश सहस्त्रनामावली]]
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=धार्मिक मान्यतानुसार [[हिन्दू धर्म]] में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी [[देवता|देवताओं]] में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''गणेश''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ganesha'') [[भारत]] के अति प्राचीन देवता हैं। [[ऋग्वेद]] में गणपति शब्द आया है। [[यजुर्वेद]] में भी ये उल्लेख है। अनेक [[पुराण|पुराणों]] में गणेश की विरुदावली वर्णित है। पौराणिक [[हिन्दू धर्म]] में [[शिव]] परिवार के देवता के रूप में गणेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक शुभ कार्य से पहले गणेशजी की पूजा होती है। गणेश को यह स्थान कब से प्राप्त हुआ, इस संबंध में अनेक मत प्रचलित है।
==कथा==
पुराणों में गणेश के संबंध में अनेक आख्यान वर्णित है। एक के अनुसार [[शनि देव|शनि]] की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जल कर भस्म हो गया। इस पर दुःखी [[पार्वती]] से [[ब्रह्मा]] ने कहा- जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो। पहला सिर [[हाथी]] के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश ‘गजानन’ बन गए। दूसरी कथा के अनुसार गणेश को द्वार पर बिठा कर पार्वती स्नान करने लगीं। इतने में शिव आए और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेश ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उसका सिर काट दिया। एक दंत होने के संबंध में कथा मिलती है कि शिव-पार्वती अपने शयन कक्ष में थे और गणेश द्वार पर बैठे थे। इतने में [[परशुराम]] आए और उसी क्षण शिवजी से मिलने का आग्रह करने लगे। जब गणेश ने रोका तो परशुराम ने अपने फरसे से उनका एक दांत तोड़ दिया। एक के अनुसार आदिम काल में कोई यक्ष राक्षस लोगों को दुःखी करता था। कार्यों को निर्विघ्न संपन्न करने के लिए उसे अनुकूल करना आवश्यक था। इसलिए उसकी पूजा होने लगी और कालांतर में यही विघ्नेशवर या विघ्न विनायक कहलाए। जो विद्वान् गणेश को आर्येतर देवता मानते हुए उनके आर्य देव परिवार में बाद में प्रविष्ट होने की बात कहते हैं, उनके अनुसार आर्येतर गण में हाथी की पूजा प्रचलित थी। इसी से गजबदन गणेश की कल्पना और पूजा का आरंभ हुआ। यह भी कहा जाता है कि आर्येतर जातियों में ग्राम देवता के रूप में गणेश का रक्त से [[अभिषेक]] होता था। आर्य देवमंडल में सम्मिलित होने के बाद [[सिन्दूर]] चढ़ाना इसी का प्रतीक है। प्रारंभिक गणराज्यों में गणपति के प्रति जो भावना थी उसके आधार पर देवमंडल में गणपति की कल्पना को भी एक कारण माना जाता है।
==मान्यतानुसार==
धार्मिक मान्यतानुसार [[हिन्दू धर्म]] में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी [[देवता|देवताओं]] में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। [[भाद्रपद]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[चतुर्थी]] को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। ये [[शिव]] और [[पार्वती देवी|पार्वती]] के दूसरे पुत्र हैं। भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिकरूप तथा प्रणवस्वरूप हैं।  
==अनन्त नाम==
निम्नलिखित बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह-नगरों में प्रवेश तथा गृह-नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।
[[चित्र:Vellore-Tamil-Nadu-2.jpg|thumb|गणेश जी, [[वेल्लोर]], [[तमिलनाडु]]]]
#[[सुमुख (गणेश)|सुमुख]]
#[[एकदन्त]]
#[[कपिल (गणेश)|कपिल]]
#[[गजकर्णक]]
#[[लम्बोदर]]
#[[विकट]]
#[[विघ्ननाशक]]
#[[विनायक (गणेश)|विनायक]]
#[[धूम्रकेतु]]
#[[गणाध्यक्ष]]
#[[भालचन्द्र]]
#[[विघ्नराज]]
#[[द्वैमातुर]]
#[[गणाधिप]]
#[[हेरम्ब]]
#[[गजानन]]
==पुराणों में वर्णन==
{{गणेश}}
*भगवान गणपति के प्राकट्य उनकी लीलाओं तथा उनके मनोरम विग्रह के विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है। कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं। उनके सभी चरित्र अनन्त हैं। *[[पद्म पुराण]] के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने [[गंगा नदी|गंगा]] में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें '''गांगेय''' कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।  
*[[लिंग पुराण]] के अनुसार एक बार [[देवता|देवताओं]] ने भगवान [[शिव]] की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिये वर माँगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने सुमन-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया। इसी तरह से [[ब्रह्म वैवर्त पुराण]], [[स्कन्द पुराण]] तथा [[शिव पुराण]] में भी भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएँ मिलती हैं प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि-बुद्धि नामक दो कन्याएँ गणेश जी की पत्नियाँ हैं। सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नाम के शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए।  
*[[लिंग पुराण]] के अनुसार एक बार [[देवता|देवताओं]] ने भगवान [[शिव]] की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिये वर माँगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने सुमन-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया। इसी तरह से [[ब्रह्म वैवर्त पुराण]], [[स्कन्द पुराण]] तथा [[शिव पुराण]] में भी भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएँ मिलती हैं प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि-बुद्धि नामक दो कन्याएँ गणेश जी की पत्नियाँ हैं। सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नाम के शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए।  
[[चित्र:Ganesa-Mathura-Museum-35.jpg|thumb|250px|गणेश<br /> Ganesha<br /> [[संग्रहालय मथुरा|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]|left]]
[[चित्र:Ganesa-Mathura-Museum-35.jpg|thumb|250px|गणेश<br /> Ganesha<br /> [[मथुरा संग्रहालय|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]|left]]
*शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है। गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड <ref>गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड(1।18-21)</ref>- में उल्लेख है कि *[[सत युग]] में गणेशजी का वाहन सिंह है। वे दस भुजाओं वाले, तेजस्वरूप तथा सबको वर देने वाले हैं और उनका नाम विनायक है।  
*शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है। गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड <ref>गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड(1।18-21</ref>- में उल्लेख है कि:-
*[[सत युग]] में गणेशजी का वाहन सिंह है। वे दस भुजाओं वाले, तेजस्वरूप तथा सबको वर देने वाले हैं और उनका नाम विनायक है।  
*[[त्रेता युग]] में उनका वाहन मयूर है, वर्णन श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर-नाम से विख्यात हैं और छ: भुजाओं वाले हैं।  
*[[त्रेता युग]] में उनका वाहन मयूर है, वर्णन श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर-नाम से विख्यात हैं और छ: भुजाओं वाले हैं।  
*[[द्वापर युग]] में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले और मूषक वाहनवाले हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं।  
*[[द्वापर युग]] में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले और मूषक वाहनवाले हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं।  
*[[कलि युग]] में उनका धूम्रवर्ण है। वे घोड़े पर आरूढ़ रहते हैं, उनके दो हाथ है तथा उनका नाम धूम्रकेतु है।  
*[[कलि युग]] में उनका धूम्रवर्ण है। वे घोड़े पर आरूढ़ रहते हैं, उनके दो हाथ है तथा उनका नाम धूम्रकेतु है।  
*मोदकप्रिय श्रीगणेश जी विद्या-बुद्धि और समस्त सिद्धियों के दाता तथा थोड़ी उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं। उनके जप का मन्त्र '''ॐ गं गणपतये नम:''' है।
*मोदकप्रिय श्रीगणेश जी विद्या-बुद्धि और समस्त सिद्धियों के दाता तथा थोड़ी उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं। उनके जप का मन्त्र '''ॐ गं गणपतये नम:''' है।
*गणपति नित्य देवता हैं; परंतु विभिन्न समयों में विभिन्न प्रकार से उनका लीलाप्राकट्य होता है। जगदम्बिका लीलामयी हैं। कैलास पर अपने अन्त:पुर में वे विराजमान थीं। सेविकाएँ उबटन लगा रही थीं। शरीर से गिरे उबटन को उन आदिशक्ति ने एकत्र किया और एकमूर्ति बना डाली। उन चेतनामयी का वह शिशु अचेतन तो होता नहीं। उसने माता को प्रणाम किया और आज्ञा माँगी। उसे कहा गया कि बिना आज्ञा कोई द्वार से अंदर न आने पाये। बालक डंडा लेकर द्वार पर खड़ा हो गया। भगवान [[शंकर]] अन्त:पुर में जाने लगे तो उसने रोक दिया। भगवान भूतनाथ कम विनोदी नहीं हैं। उन्होंने देवताओं को आज्ञा दी। बालक को द्वार से हटा देने की। [[इन्द्र]], [[वरूण]], [[कुबेर]], [[यमराज|यम]] आदि सब उसके डंडे से आहत होकर भाग खड़े हुए- वह महाशक्ति का पुत्र जो था। इतना औद्धत्य उचित नहीं। भगवान शंकर ने त्रिशूल उठाया और बालक का मस्तक काट दिया।
*गणपति नित्य देवता हैं; परंतु विभिन्न समयों में विभिन्न प्रकार से उनका लीलाप्राकट्य होता है। जगदम्बिका लीलामयी हैं। कैलास पर अपने अन्त:पुर में वे विराजमान थीं। सेविकाएँ उबटन लगा रही थीं। शरीर से गिरे उबटन को उन आदिशक्ति ने एकत्र किया और एकमूर्ति बना डाली। उन चेतनामयी का वह शिशु अचेतन तो होता नहीं। उसने माता को प्रणाम किया और आज्ञा माँगी। उसे कहा गया कि बिना आज्ञा कोई द्वार से अंदर न आने पाये। बालक डंडा लेकर द्वार पर खड़ा हो गया। भगवान [[शंकर]] अन्त:पुर में जाने लगे तो उसने रोक दिया। भगवान भूतनाथ कम विनोदी नहीं हैं। उन्होंने देवताओं को आज्ञा दी। बालक को द्वार से हटा देने की। [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]], [[कुबेर]], [[यमराज|यम]] आदि सब उसके डंडे से आहत होकर भाग खड़े हुए- वह महाशक्ति का पुत्र जो था। इतना औद्धत्य उचित नहीं। भगवान शंकर ने त्रिशूल उठाया और बालक का मस्तक काट दिया।
[[चित्र:Ganesh-Mahabalipuram-2.jpg|thumb|250px|गणेश, [[महाबलीपुरम]]<br />Ganesh, Mahabalipuram]]
*'मेरा पुत्र!' जगदम्बा का स्नेह रोष में परिणत हो गया। देवताओं ने उनके बच्चे का वध करा दिया था। पुत्र का शव देखकर माता कैसे शान्त रहे। देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की।  
*'मेरा पुत्र!' जगदम्बा का स्नेह रोष में परिणत हो गया। देवताओं ने उनके बच्चे का वध करा दिया था। पुत्र का शव देखकर माता कैसे शान्त रहे। देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की।  
*'किसी नवजात शिशु का मस्तक उसके धड़ से लगा दो।' एक गजराज का नवजात शिशु मिला उस समय। उसी का मस्तक पाकर वह बालक गजानन हो गया। अपने अग्रज [[कार्तिकेय]] के साथ संग्राम में उसका एक दाँत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदन्त हैं।  
*'किसी नवजात शिशु का मस्तक उसके धड़ से लगा दो।' एक गजराज का नवजात शिशु मिला उस समय। उसी का मस्तक पाकर वह बालक गजानन हो गया। अपने अग्रज [[कार्तिकेय]] के साथ संग्राम में उसका एक दाँत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदन्त हैं।  
*अरुणवर्ण, एकदन्त, गजमुख, लम्बोदर, अरण-वस्त्र, त्रिपुण्ड्र-तिलक, मूषकवाहन। ये देवता माता-पिता दोनों को प्रिय हैं। ऋद्धि-सिद्धि इनकी पत्नियाँ हैं। [[ब्रह्मा]] जी जब 'देवताओं में कौन प्रथम पूज्य हो' इसका निर्णय करने लगे, तब पृथ्वी-प्रदक्षिणा ही शक्ति का निदर्शन मानी गयी। गणेश जी का मूषक कैसे सबसे आगे दौड़े। उन्होंने [[नारद|देवर्षि]] के उपदेश से भूमि पर 'राम' नाम लिखा और उसकी प्रदक्षिणा कर ली; पुराणान्तर के अनुसार भगवान [[शंकर]] और [[पार्वती]] जी की प्रदक्षिणा की। वे दोनों प्रकार सम्पूर्ण भुवनों की प्रदक्षिणा कर चुके थे। सबसे पहले पहुँचे थे। भगवान ब्रह्मा ने उन्हें प्रथम पूज्य बनाया। प्रत्येक कर्म में उनकी प्रथम पूजा होती है। वे भगवान शंकर के गणों के मुख्य अधिपति हैं। उन गणाधिप की प्रथम पूजा न हो तो कर्म के निर्विघ्न पूर्ण होने की आशा कम ही रहती है।  
*अरुणवर्ण, एकदन्त, गजमुख, लम्बोदर, अरण-वस्त्र, [[त्रिपुण्ड्र]]-[[तिलक]], मूषकवाहन। ये देवता माता-पिता दोनों को प्रिय हैं। ऋद्धि-सिद्धि इनकी पत्नियाँ हैं। [[ब्रह्मा]] जी जब 'देवताओं में कौन प्रथम पूज्य हो' इसका निर्णय करने लगे, तब पृथ्वी-प्रदक्षिणा ही शक्ति का निदर्शन मानी गयी। गणेश जी का मूषक कैसे सबसे आगे दौड़े। उन्होंने [[नारद|देवर्षि]] के उपदेश से भूमि पर 'राम' नाम लिखा और उसकी प्रदक्षिणा कर ली; पुराणान्तर के अनुसार भगवान [[शंकर]] और [[पार्वती देवी|पार्वती]] जी की प्रदक्षिणा की। वे दोनों प्रकार सम्पूर्ण भुवनों की प्रदक्षिणा कर चुके थे। सबसे पहले पहुँचे थे। भगवान ब्रह्मा ने उन्हें प्रथम पूज्य बनाया। प्रत्येक कर्म में उनकी प्रथम पूजा होती है। वे भगवान शंकर के गणों के मुख्य अधिपति हैं। उन गणाधिप की प्रथम पूजा न हो तो कर्म के निर्विघ्न पूर्ण होने की आशा कम ही रहती है।  
*पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं। प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ 'श्रीगणेश' अर्थात उनके स्मरण-वन्दन से ही होता है। उनकी नैष्ठिक उपासना करने वाला सम्प्रदाय भी था। दक्षिण भारत में भगवान गणपति की उपासना बहुत धूम-धाम से होती है। 'कलौ चण्डीविनायकौ।' जिन लोगों को कोई भौतिक सिद्धि चाहिये, वे इस युग में गणेश जी को शीघ्र प्रसन्न कर पाते हैं। वे मंगलमूर्ति सिद्धिसदन बहुत अल्प श्रम से द्रवित होते हैं।  
*पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं। प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ 'श्रीगणेश' अर्थात् उनके स्मरण-वन्दन से ही होता है। उनकी नैष्ठिक उपासना करने वाला सम्प्रदाय भी था। दक्षिण [[भारत]] में भगवान गणपति की उपासना बहुत धूम-धाम से होती है। 'कलौ चण्डीविनायकौ।' जिन लोगों को कोई भौतिक सिद्धि चाहिये, वे इस युग में गणेश जी को शीघ्र प्रसन्न कर पाते हैं। वे मंगलमूर्ति सिद्धिसदन बहुत अल्प श्रम से द्रवित होते हैं।  
*भगवान गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता हैं। वे साक्षात प्रणवरूप हैं। उनके श्रीविग्रह का ध्यान, उनके मंगलमय नाम का जप और उनकी आराधना मेधा-शक्ति को तीव्र करती है। [[महाभारत]] के यदि वे लेखक न बनते तो भगवान [[व्यास]] के इस पंचम वेद से जगती वंचित ही रह जाती।  
*भगवान गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता हैं। वे साक्षात प्रणवरूप हैं। उनके श्रीविग्रह का ध्यान, उनके मंगलमय नाम का जप और उनकी आराधना मेधा-शक्ति को तीव्र करती है। [[महाभारत]] के यदि वे लेखक न बनते तो भगवान [[व्यास]] के इस पंचम वेद से जगती वंचित ही रह जाती।  
*गणेश और [[हनुमान]] ही [[कलि युग]] के ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्तों से कभी रुठते नहीं, अत: इनकी आराधना करने वालों से गलतियां भी होती हैं, तो वह क्षम्य होती हैं। साधना चाहे सात्विक हो या तामसिक, मारण, मोहन, उच्चटन, वशीकरण या फिर मोक्ष की साधना हो अग्रपूजा गणेश जी की ही होती है। गणेश जी ही ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा घास-फूस अपितु पेड़-पौधों की पत्तियों से भी करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। इनकी पूजा के लिए इनके प्रधान 21 नामों से 21 पत्ते अर्पण करने का विधान मिलता है।
*गणेश और [[हनुमान]] ही [[कलि युग]] के ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्तों से कभी रुठते नहीं, अत: इनकी आराधना करने वालों से ग़लतियां भी होती हैं, तो वह क्षम्य होती हैं। साधना चाहे सात्विक हो या तामसिक, मारण, मोहन, [[उच्चाटन]], वशीकरण या फिर मोक्ष की साधना हो अग्रपूजा गणेश जी की ही होती है। भगवान गणेश संगीत के स्वर 'धैवत' से भी मुख्य रूप से जुड़े हुए हैं। गणेश जी ही ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा घास-फूस अपितु पेड़-पौधों की पत्तियों से भी करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। इनकी पूजा के लिए इनके प्रधान 21 नामों से 21 पत्ते अर्पण करने का विधान मिलता है।
 
==विनायक की पूजा==
==विनायक की पूजा==
इनको प्रसन्न करने के लिए इन पर निम्नलिखित पत्तों को अर्पण करें और उनके इन नामों को याद कर साथ ही बोलते भी रहें:-
इनको प्रसन्न करने के लिए इन पर निम्नलिखित पत्तों को अर्पण करें और उनके इन नामों को याद कर साथ ही बोलते भी रहें:-
[[चित्र:Ganesha 2.jpg|thumb|बच्चों की पहली पसंद बाल गणेश एनिमेशन फिल्म<br /> Animation Movie 'Bal Ganesh'|250px]]
[[चित्र:Ganesha 2.jpg|thumb|बच्चों की पहली पसंद बाल गणेश एनिमेशन फ़िल्म<br /> Animation Movie 'Bal Ganesh'|250px]]
*सुमुखायनम: स्वाहा कहते हुए शमी पत्र चढ़ाएं,  
*सुमुखायनम: स्वाहा कहते हुए [[शमी वृक्ष|शमी पत्र]] चढ़ाएं,  
*गणाधीशायनम: स्वाहा भंगरैया का पत्ता चढ़ाएं,  
*गणाधीशायनम: स्वाहा भंगरैया का पत्ता चढ़ाएं,  
*साथ ही उमापुत्राय नम: बिल्वपत्र,  
*साथ ही उमापुत्राय नम: बिल्वपत्र,  
Line 44: Line 108:
*लम्बोदराय नम: बेर के पत्ते से,  
*लम्बोदराय नम: बेर के पत्ते से,  
*हरसूनवे नम: धतूरे के पत्ते से,  
*हरसूनवे नम: धतूरे के पत्ते से,  
*शूर्पकर्णाय नम: तुलसी दल से,  
*शूर्पकर्णाय नम: [[तुलसी]] दल से,  
*वक्रतुण्डाय नम: सेम के पत्ते से,  
*वक्रतुण्डाय नम: सेम के पत्ते से,  
*गुहाग्रजाय नम: अपामार्ग के पत्तो से,  
*गुहाग्रजाय नम: अपामार्ग के पत्तो से,  
Line 58: Line 122:
*भालचंद्राय नम: मरुआ के पत्ते से,  
*भालचंद्राय नम: मरुआ के पत्ते से,  
*सुराग्रजाय नम: गांधारी के पत्ते से और  
*सुराग्रजाय नम: गांधारी के पत्ते से और  
*सिद्धि विनायकाय नम: केतकी के पत्ते से अर्पण करें।<br />  
*सिद्धि विनायकाय नम: [[केतकी]] के पत्ते से अर्पण करें।<br />  
गणेशजी की आराधना बाज़ार के महंगे सामान के बजाए इन औषधियों से भी होती है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यों मे भक्त्या प्रच्छति अर्थात पत्र, पुष्प, फल और जल के द्वारा भक्ति भाव से की गई पूजा लाभदायी रहती है। षोड़षोपचार विधि से इनकी पूजा की जाती है। गणेश की पूजा अगर विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है।
[[चित्र:Ganesh.jpg|thumb|left|गणेश, [[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]], [[दिल्ली]]]]
गणेशजी की आराधना बाज़ार के महंगे सामान के बजाए इन औषधियों से भी होती है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यों मे भक्त्या प्रच्छति अर्थात् पत्र, पुष्प, फल और जल के द्वारा भक्ति भाव से की गई पूजा लाभदायी रहती है। षोड़षोपचार विधि से इनकी पूजा की जाती है। गणेश की पूजा अगर विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है।
 
==गणेश पूजा की शास्त्रीय विधि==
==गणेश पूजा की शास्त्रीय विधि==
भगवान गणेश की शास्त्रीय विधि भी इस प्रकार है। इनके क्रमों की संख्या 16 है। आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि। गणेश गायत्री मन्त्र से ही इनकी आराधना कर सकते हैं। भगवान गणेश की पूजा के लिए [[ॠग्वेद]] के गणेश अथर्व सूत्र में कहा गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात लाल फूल से विनायक की पूजा का विशेष महत्व है। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मन्त्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और  दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मन्त्र न आता हो, तो  'गं गणपतये नम:' मन्त्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी। [[गणेश जी की आरती]] और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।
भगवान गणेश की शास्त्रीय विधि भी इस प्रकार है। इनके क्रमों की संख्या 16 है। आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि। गणेश गायत्री मन्त्र से ही इनकी आराधना कर सकते हैं। भगवान गणेश की पूजा के लिए [[ऋग्वेद]] के गणेश अथर्व सूत्र में कहा गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात् [[लाल रंग|लाल]] [[फूल]] से विनायक की पूजा का विशेष महत्त्व है। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मन्त्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और  दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मन्त्र न आता हो, तो  'गं गणपतये नम:' मन्त्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी। [[गणेश जी की आरती]] और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।
 
==गणेश की मूर्तिकला==
[[शैव]], [[वैष्णव]] सभी के बीच गणेश आज एक सर्वमान्य देवता है। शिव मंदिर में तो गणेश की मूर्ति होना अनिवार्य है। [[भारतीय मूर्तिकला]] और चित्रकला में गणेश के पांच सिर और तीन दाँत भी चित्रित मिलते हैं। आरंभ में दो भुजाओं की मूर्तियां बनीं, पर बाद में सोलह भुजाओं तक की मूर्तियों का निर्माण हुआ। [[उत्तर भारत]] में अकेले गणेश के मंदिर विरले ही मिलेंगे, किन्तु [[महाराष्ट्र]] और [[दक्षिण भारत]] में उनका बाहुल्य है। ‘तिलक’ के समय से [[महाराष्ट्र]] के [[गणेशोत्सव|गणेश उत्सव]] ने धार्मिक के साथ राजनीतिक महत्त्व भी प्राप्त कर लिया।
 


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==वीथिका==
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चित्र:Ganesh-1.jpg|गणेश, [[राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]], [[दिल्ली]]
चित्र:Ganesh-Chaturthi.jpg|[[गणेश चतुर्थी]], त्रिवेंद्रम
चित्र:Ganesh-Chaturthi-1.jpg|[[गणेश चतुर्थी]], [[हैदराबाद]]
चित्र:Ganesh-Chaturthi-2.jpg|[[गणेश चतुर्थी]]
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 07:51, 7 November 2017

संक्षिप्त परिचय
गणेश
अन्य नाम गजानन, लम्बोदर, एकदन्त, विनायक आदि
पिता शिव
माता पार्वती
जन्म विवरण भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था।
धर्म-संप्रदाय हिन्दू धर्म
विवाह ऋद्धि सिद्धि
मंत्र ॐ गं गणपतये नमः
वाहन शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है।
प्रसाद बेसन के लड्डू
पर्व-त्योहार गणेश चतुर्थी, गणेशोत्सव
प्राकृतिक स्वरूप वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
संबंधित लेख गणेश स्तुति, गणेश चालीसा, गणेश जी की आरती, श्री गणेश सहस्त्रनामावली
अन्य जानकारी धार्मिक मान्यतानुसार हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है।

गणेश (अंग्रेज़ी: Ganesha) भारत के अति प्राचीन देवता हैं। ऋग्वेद में गणपति शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है। अनेक पुराणों में गणेश की विरुदावली वर्णित है। पौराणिक हिन्दू धर्म में शिव परिवार के देवता के रूप में गणेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक शुभ कार्य से पहले गणेशजी की पूजा होती है। गणेश को यह स्थान कब से प्राप्त हुआ, इस संबंध में अनेक मत प्रचलित है।

कथा

पुराणों में गणेश के संबंध में अनेक आख्यान वर्णित है। एक के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जल कर भस्म हो गया। इस पर दुःखी पार्वती से ब्रह्मा ने कहा- जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो। पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश ‘गजानन’ बन गए। दूसरी कथा के अनुसार गणेश को द्वार पर बिठा कर पार्वती स्नान करने लगीं। इतने में शिव आए और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेश ने जब उन्हें रोका तो क्रुद्ध शिव ने उसका सिर काट दिया। एक दंत होने के संबंध में कथा मिलती है कि शिव-पार्वती अपने शयन कक्ष में थे और गणेश द्वार पर बैठे थे। इतने में परशुराम आए और उसी क्षण शिवजी से मिलने का आग्रह करने लगे। जब गणेश ने रोका तो परशुराम ने अपने फरसे से उनका एक दांत तोड़ दिया। एक के अनुसार आदिम काल में कोई यक्ष राक्षस लोगों को दुःखी करता था। कार्यों को निर्विघ्न संपन्न करने के लिए उसे अनुकूल करना आवश्यक था। इसलिए उसकी पूजा होने लगी और कालांतर में यही विघ्नेशवर या विघ्न विनायक कहलाए। जो विद्वान् गणेश को आर्येतर देवता मानते हुए उनके आर्य देव परिवार में बाद में प्रविष्ट होने की बात कहते हैं, उनके अनुसार आर्येतर गण में हाथी की पूजा प्रचलित थी। इसी से गजबदन गणेश की कल्पना और पूजा का आरंभ हुआ। यह भी कहा जाता है कि आर्येतर जातियों में ग्राम देवता के रूप में गणेश का रक्त से अभिषेक होता था। आर्य देवमंडल में सम्मिलित होने के बाद सिन्दूर चढ़ाना इसी का प्रतीक है। प्रारंभिक गणराज्यों में गणपति के प्रति जो भावना थी उसके आधार पर देवमंडल में गणपति की कल्पना को भी एक कारण माना जाता है।

मान्यतानुसार

धार्मिक मान्यतानुसार हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। ये शिव और पार्वती के दूसरे पुत्र हैं। भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिकरूप तथा प्रणवस्वरूप हैं।

अनन्त नाम

निम्नलिखित बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह-नगरों में प्रवेश तथा गृह-नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है। [[चित्र:Vellore-Tamil-Nadu-2.jpg|thumb|गणेश जी, वेल्लोर, तमिलनाडु]]

  1. सुमुख
  2. एकदन्त
  3. कपिल
  4. गजकर्णक
  5. लम्बोदर
  6. विकट
  7. विघ्ननाशक
  8. विनायक
  9. धूम्रकेतु
  10. गणाध्यक्ष
  11. भालचन्द्र
  12. विघ्नराज
  13. द्वैमातुर
  14. गणाधिप
  15. हेरम्ब
  16. गजानन

पुराणों में वर्णन

अन्य सम्बंधित लेख


  • भगवान गणपति के प्राकट्य उनकी लीलाओं तथा उनके मनोरम विग्रह के विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है। कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं। उनके सभी चरित्र अनन्त हैं। *पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।
  • लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिये वर माँगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने सुमन-वृष्टि करते हुए गजानन के चरणों में बार-बार प्रणाम किया। भगवान शिव ने गणेश जी को दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करके देवताओं और ब्राह्मणों का उपकार करने का आदेश दिया। इसी तरह से ब्रह्म वैवर्त पुराण, स्कन्द पुराण तथा शिव पुराण में भी भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएँ मिलती हैं प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि-बुद्धि नामक दो कन्याएँ गणेश जी की पत्नियाँ हैं। सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नाम के शोभा सम्पन्न दो पुत्र हुए।

[[चित्र:Ganesa-Mathura-Museum-35.jpg|thumb|250px|गणेश
Ganesha
राजकीय संग्रहालय, मथुरा|left]]

  • शास्त्रों और पुराणों में सिंह, मयूर और मूषक को गणेश जी का वाहन बताया गया है। गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड [1]- में उल्लेख है कि:-
  • सत युग में गणेशजी का वाहन सिंह है। वे दस भुजाओं वाले, तेजस्वरूप तथा सबको वर देने वाले हैं और उनका नाम विनायक है।
  • त्रेता युग में उनका वाहन मयूर है, वर्णन श्वेत है तथा तीनों लोकों में वे मयूरेश्वर-नाम से विख्यात हैं और छ: भुजाओं वाले हैं।
  • द्वापर युग में उनका वर्ण लाल है। वे चार भुजाओं वाले और मूषक वाहनवाले हैं तथा गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं।
  • कलि युग में उनका धूम्रवर्ण है। वे घोड़े पर आरूढ़ रहते हैं, उनके दो हाथ है तथा उनका नाम धूम्रकेतु है।
  • मोदकप्रिय श्रीगणेश जी विद्या-बुद्धि और समस्त सिद्धियों के दाता तथा थोड़ी उपासना से प्रसन्न हो जाते हैं। उनके जप का मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: है।
  • गणपति नित्य देवता हैं; परंतु विभिन्न समयों में विभिन्न प्रकार से उनका लीलाप्राकट्य होता है। जगदम्बिका लीलामयी हैं। कैलास पर अपने अन्त:पुर में वे विराजमान थीं। सेविकाएँ उबटन लगा रही थीं। शरीर से गिरे उबटन को उन आदिशक्ति ने एकत्र किया और एकमूर्ति बना डाली। उन चेतनामयी का वह शिशु अचेतन तो होता नहीं। उसने माता को प्रणाम किया और आज्ञा माँगी। उसे कहा गया कि बिना आज्ञा कोई द्वार से अंदर न आने पाये। बालक डंडा लेकर द्वार पर खड़ा हो गया। भगवान शंकर अन्त:पुर में जाने लगे तो उसने रोक दिया। भगवान भूतनाथ कम विनोदी नहीं हैं। उन्होंने देवताओं को आज्ञा दी। बालक को द्वार से हटा देने की। इन्द्र, वरुण, कुबेर, यम आदि सब उसके डंडे से आहत होकर भाग खड़े हुए- वह महाशक्ति का पुत्र जो था। इतना औद्धत्य उचित नहीं। भगवान शंकर ने त्रिशूल उठाया और बालक का मस्तक काट दिया।

[[चित्र:Ganesh-Mahabalipuram-2.jpg|thumb|250px|गणेश, महाबलीपुरम
Ganesh, Mahabalipuram]]

  • 'मेरा पुत्र!' जगदम्बा का स्नेह रोष में परिणत हो गया। देवताओं ने उनके बच्चे का वध करा दिया था। पुत्र का शव देखकर माता कैसे शान्त रहे। देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की।
  • 'किसी नवजात शिशु का मस्तक उसके धड़ से लगा दो।' एक गजराज का नवजात शिशु मिला उस समय। उसी का मस्तक पाकर वह बालक गजानन हो गया। अपने अग्रज कार्तिकेय के साथ संग्राम में उसका एक दाँत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदन्त हैं।
  • अरुणवर्ण, एकदन्त, गजमुख, लम्बोदर, अरण-वस्त्र, त्रिपुण्ड्र-तिलक, मूषकवाहन। ये देवता माता-पिता दोनों को प्रिय हैं। ऋद्धि-सिद्धि इनकी पत्नियाँ हैं। ब्रह्मा जी जब 'देवताओं में कौन प्रथम पूज्य हो' इसका निर्णय करने लगे, तब पृथ्वी-प्रदक्षिणा ही शक्ति का निदर्शन मानी गयी। गणेश जी का मूषक कैसे सबसे आगे दौड़े। उन्होंने देवर्षि के उपदेश से भूमि पर 'राम' नाम लिखा और उसकी प्रदक्षिणा कर ली; पुराणान्तर के अनुसार भगवान शंकर और पार्वती जी की प्रदक्षिणा की। वे दोनों प्रकार सम्पूर्ण भुवनों की प्रदक्षिणा कर चुके थे। सबसे पहले पहुँचे थे। भगवान ब्रह्मा ने उन्हें प्रथम पूज्य बनाया। प्रत्येक कर्म में उनकी प्रथम पूजा होती है। वे भगवान शंकर के गणों के मुख्य अधिपति हैं। उन गणाधिप की प्रथम पूजा न हो तो कर्म के निर्विघ्न पूर्ण होने की आशा कम ही रहती है।
  • पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं। प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ 'श्रीगणेश' अर्थात् उनके स्मरण-वन्दन से ही होता है। उनकी नैष्ठिक उपासना करने वाला सम्प्रदाय भी था। दक्षिण भारत में भगवान गणपति की उपासना बहुत धूम-धाम से होती है। 'कलौ चण्डीविनायकौ।' जिन लोगों को कोई भौतिक सिद्धि चाहिये, वे इस युग में गणेश जी को शीघ्र प्रसन्न कर पाते हैं। वे मंगलमूर्ति सिद्धिसदन बहुत अल्प श्रम से द्रवित होते हैं।
  • भगवान गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता हैं। वे साक्षात प्रणवरूप हैं। उनके श्रीविग्रह का ध्यान, उनके मंगलमय नाम का जप और उनकी आराधना मेधा-शक्ति को तीव्र करती है। महाभारत के यदि वे लेखक न बनते तो भगवान व्यास के इस पंचम वेद से जगती वंचित ही रह जाती।
  • गणेश और हनुमान ही कलि युग के ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्तों से कभी रुठते नहीं, अत: इनकी आराधना करने वालों से ग़लतियां भी होती हैं, तो वह क्षम्य होती हैं। साधना चाहे सात्विक हो या तामसिक, मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण या फिर मोक्ष की साधना हो अग्रपूजा गणेश जी की ही होती है। भगवान गणेश संगीत के स्वर 'धैवत' से भी मुख्य रूप से जुड़े हुए हैं। गणेश जी ही ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा घास-फूस अपितु पेड़-पौधों की पत्तियों से भी करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। इनकी पूजा के लिए इनके प्रधान 21 नामों से 21 पत्ते अर्पण करने का विधान मिलता है।

विनायक की पूजा

इनको प्रसन्न करने के लिए इन पर निम्नलिखित पत्तों को अर्पण करें और उनके इन नामों को याद कर साथ ही बोलते भी रहें:- thumb|बच्चों की पहली पसंद बाल गणेश एनिमेशन फ़िल्म
Animation Movie 'Bal Ganesh'|250px

  • सुमुखायनम: स्वाहा कहते हुए शमी पत्र चढ़ाएं,
  • गणाधीशायनम: स्वाहा भंगरैया का पत्ता चढ़ाएं,
  • साथ ही उमापुत्राय नम: बिल्वपत्र,
  • गज मुखायनम: दूर्वादल,
  • लम्बोदराय नम: बेर के पत्ते से,
  • हरसूनवे नम: धतूरे के पत्ते से,
  • शूर्पकर्णाय नम: तुलसी दल से,
  • वक्रतुण्डाय नम: सेम के पत्ते से,
  • गुहाग्रजाय नम: अपामार्ग के पत्तो से,
  • एक दंतायनम: भटकटैया के पत्ते से,
  • हेरम्बाय नम: सिंदूर वृक्ष के पत्ते से,
  • चतुर्होत्रे नम: तेजपात के पत्ते से,
  • सर्वेश्वराय नम: अगस्त के पत्ते चढ़ावें।
  • विकराय नम: कनेर के पत्ते,
  • इभतुण्डाय नम: अश्मात के पत्ते से,
  • विनायकाय नम: मदार के पत्ते से,
  • कपिलाय नम: अर्जुन के पत्ते से,
  • बटवे नम: देवदारु के पत्ते से,
  • भालचंद्राय नम: मरुआ के पत्ते से,
  • सुराग्रजाय नम: गांधारी के पत्ते से और
  • सिद्धि विनायकाय नम: केतकी के पत्ते से अर्पण करें।

[[चित्र:Ganesh.jpg|thumb|left|गणेश, राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली]] गणेशजी की आराधना बाज़ार के महंगे सामान के बजाए इन औषधियों से भी होती है। पत्रं पुष्पं फलं तोयं यों मे भक्त्या प्रच्छति अर्थात् पत्र, पुष्प, फल और जल के द्वारा भक्ति भाव से की गई पूजा लाभदायी रहती है। षोड़षोपचार विधि से इनकी पूजा की जाती है। गणेश की पूजा अगर विधिवत की जाए, तो इनकी पतिव्रता पत्नियां रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतान को निर्मल विद्या-बुद्धि देती है।

गणेश पूजा की शास्त्रीय विधि

भगवान गणेश की शास्त्रीय विधि भी इस प्रकार है। इनके क्रमों की संख्या 16 है। आह्वान, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि। गणेश गायत्री मन्त्र से ही इनकी आराधना कर सकते हैं। भगवान गणेश की पूजा के लिए ऋग्वेद के गणेश अथर्व सूत्र में कहा गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात् लाल फूल से विनायक की पूजा का विशेष महत्त्व है। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मन्त्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मन्त्र न आता हो, तो 'गं गणपतये नम:' मन्त्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी। गणेश जी की आरती और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो।

गणेश की मूर्तिकला

शैव, वैष्णव सभी के बीच गणेश आज एक सर्वमान्य देवता है। शिव मंदिर में तो गणेश की मूर्ति होना अनिवार्य है। भारतीय मूर्तिकला और चित्रकला में गणेश के पांच सिर और तीन दाँत भी चित्रित मिलते हैं। आरंभ में दो भुजाओं की मूर्तियां बनीं, पर बाद में सोलह भुजाओं तक की मूर्तियों का निर्माण हुआ। उत्तर भारत में अकेले गणेश के मंदिर विरले ही मिलेंगे, किन्तु महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में उनका बाहुल्य है। ‘तिलक’ के समय से महाराष्ट्र के गणेश उत्सव ने धार्मिक के साथ राजनीतिक महत्त्व भी प्राप्त कर लिया।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड(1।18-21

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