अजातशत्रु: Difference between revisions
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अजातशत्रु ने [[अंग महाजनपद|अंग]], [[लिच्छवी]], [[वृज्जि|वज्जी]], [[कोसल]] तथा [[काशी]] जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विशाल साम्राज्य को स्थापित किया था। पालि ग्रंथों में अजातशत्रु का नाम अनेक स्थानों पर आया है, क्योंकि वह [[बुद्ध]] का समकालीन था और तत्कालीन राजनीति में उसका बड़ा हाथ था। [[गंगा नदी|गंगा]] और [[सोन नदी]] के संगम पर [[पाटलिपुत्र]] की स्थापना उसी ने की थी। उसका मन्त्री 'वस्सकार' एक कुशल राजनीतिज्ञ था, जिसने लिच्छवियों में फूट डालकर साम्राज्य को विस्तृत किया था। | अजातशत्रु ने [[अंग महाजनपद|अंग]], [[लिच्छवी]], [[वृज्जि|वज्जी]], [[कोसल]] तथा [[काशी]] जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विशाल साम्राज्य को स्थापित किया था। पालि ग्रंथों में अजातशत्रु का नाम अनेक स्थानों पर आया है, क्योंकि वह [[बुद्ध]] का समकालीन था और तत्कालीन राजनीति में उसका बड़ा हाथ था। [[गंगा नदी|गंगा]] और [[सोन नदी]] के संगम पर [[पाटलिपुत्र]] की स्थापना उसी ने की थी। उसका मन्त्री 'वस्सकार' एक कुशल राजनीतिज्ञ था, जिसने लिच्छवियों में फूट डालकर साम्राज्य को विस्तृत किया था। प्रसेनजित का राज्य कोसल के राजकुमार विडूडभ ने छीन लिया था। उसके राजत्वकाल में ही विडूडभ ने शाक्य प्रजातंत्र को समाप्त किया था। | ||
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Revision as of 09:59, 8 November 2013
अजातशत्रु (लगभग 495 ई.पू.) बिंबिसार का पुत्र था। उसके बचपन का नाम 'कुणिक' था। अजातशत्रु ने मगध की राजगद्दी अपने पिता की हत्या करके प्राप्त की थी। यद्यपि यह एक घृणित कृत्य था, तथापि एक वीर और प्रतापी राजा के रूप में उसने ख्याति प्राप्त की थी। अपने पिता के समान ही उसने भी साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाया और साम्राज्य की सीमाओं को चरमोत्कर्ष तक पहुँचा दिया। सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार अजातशत्रु ने लगभग 32 वर्षों तक शासन किया और 463 ई.पू. में अपने पुत्र उदयन द्वारा वह मारा गया।
साम्राज्य विस्तार
अजातशत्रु ने अंग, लिच्छवी, वज्जी, कोसल तथा काशी जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विशाल साम्राज्य को स्थापित किया था। पालि ग्रंथों में अजातशत्रु का नाम अनेक स्थानों पर आया है, क्योंकि वह बुद्ध का समकालीन था और तत्कालीन राजनीति में उसका बड़ा हाथ था। गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र की स्थापना उसी ने की थी। उसका मन्त्री 'वस्सकार' एक कुशल राजनीतिज्ञ था, जिसने लिच्छवियों में फूट डालकर साम्राज्य को विस्तृत किया था। प्रसेनजित का राज्य कोसल के राजकुमार विडूडभ ने छीन लिया था। उसके राजत्वकाल में ही विडूडभ ने शाक्य प्रजातंत्र को समाप्त किया था।
कोसल के राजा प्रसेनजित को हराकर अजातशत्रु ने राजकुमारी 'वजिरा' से विवाह किया था, जिससे काशी जनपद स्वतः ही उसे प्राप्त हो गया था। इस प्रकार उसकी इस नीति से मगध शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। परंतु पिता की हत्या करने और पितृघाती कहलाने के कारण इतिहास में वह सदा अभिशप्त रहा। पिता की हत्या करने के कारण इसका मन अशांत हो गया। यह अजीवक धर्म प्रचारक गोशाल और जैन धर्म प्रचारक महावीर स्वामी के निकट भी गया, किंतु इसे शांति नहीं मिली। फिर यह बुद्ध की शरण में गया, जहाँ उसे आत्मिक शांति मिली। इसके बाद यह बुद्ध का परम अनुयायी बन गया।[1]
प्रथम बौद्ध संगीति
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
अजातशत्रु के समय की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण (464 ई.पू.) थी। उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजातशत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने राजगृह की पहाड़ी पर स्तूप बनवाया था। आगे चलकर राजगृह में ही वैभार-पर्वत की 'सप्तपर्णी गुहा' से बौद्ध संघ की प्रथम बौद्ध संगीति हुई, जिसमें सुत्तपिटक और विनयपिटक का संपादन हुआ। यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ था।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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बाहरी कड़ियाँ
- अजातशत्रु
- मगध महाजनपद
- आत्म-विस्मृति
- राजगीर
- बुद्ध और नालागिरी हाथी
- बिहार एक सांस्कृतिक परिचय
- मुख्यत: ग्रामीण है नया बना पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र
- Entry on Ajatasattu in the Buddhist Dictionary of Pali Proper Names
संबंधित लेख
- ↑ दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ (हिंदी), 87।