कहानी: Difference between revisions

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Revision as of 10:07, 25 March 2013

[[चित्र:Sanskrit panchatantra 11.png|thumb|संस्कृत में रचित पंचतंत्र]] कहानी हिन्दी साहित्य में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य साहित्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं।

कहानी की परिभाषा

अमेरिका के कवि-आलोचक-कथाकार 'एडगर एलिन पो' के अनुसार कहानी की परिभाषा इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-

"कहानी वह छोटी आख्यानात्मक रचना है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सके, जो पाठक पर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न करने के लिये लिखी गई हो, जिसमें उस प्रभाव को उत्पन्न करने में सहायक तत्वों के अतिरिक्‍त और कुछ न हो और जो अपने आप में पूर्ण हो।"

भारत के उपन्यास सम्राट 'प्रेमचन्द' ने कहानी के प्रमुख लक्षणों को बताते हुए उसकी परिभाषा की है। उन्होंने लिखा है

"कहानी वह ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है, एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है, जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।"

[[चित्र:Mansarovar-Part-1.jpg|thumb|मानसरोवर, प्रेमचंद की कहानियों का संकलन]] हिन्दी के लेखकों में प्रेमचंद पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने तीन लेखों में कहानी के सम्बंध में अपने विचार व्यक्त किए हैं – ‘कहानी (गल्प) एक रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास, सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। उपन्यास की भाँति उसमें मानव-जीवन का संपूर्ण तथा बृहत रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता। वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।’ कहानी की और भी परिभाषाएँ उद्धृत की जा सकती हैं। पर किसी भी साहित्यिक विधा को वैज्ञानिक परिभाषा में नहीं बाँधा जा सकता, क्योंकि साहित्य में विज्ञान की सुनिश्चितता नहीं होती। इसलिए उसकी जो भी परिभाषा दी जाएगी वह अधूरी होगी।

उपन्यास और कहानी

कहानी आकार में उपन्यास से छोटी होती है, लेकिन आकार में छोटा होना भर कहानी को कहानी नहीं बना सकता। उपन्यास का कोई अध्याय कहानी नहीं हो सकता और न कहानी उपन्यास का कोई अध्याय। अत: कहानी उपन्यास की जाति की होते हुए भी स्वतंत्र विधा है। उसके छोटे होने के कारण लेखक की प्रेरणा और ग्रहण की गई जीवन की सामग्री में निहित संभावना होती है। उपन्यास में जहाँ जीवन की सम्पूर्णता लेखक का सरोकार है वहाँ कहानी में कोई एक भाव, घटना या चरित्र का कोई एक मार्मिक प्रसंग का वर्णन होता है। उपन्यास की तरह जीवन के विभिन्न प्रसंगों को खोलते-गूँथते हुए विस्तार करने की स्वतंत्रता कहानी में नहीं होती। कहानी की मूलभूत विशेषता को प्रेमचंद ने बताया है। उनका कहना है कि-

जब तक वे किसी घटना या चरित्र में कोई ड्रामाई पहलू नहीं पहचान लेते तब तक कहानी नहीं लिखते।[1]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उपन्यास और कहानी (हिंदी) साहित्यालोचन। अभिगमन तिथि: 25 फ़रवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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