अंबपाली: Difference between revisions
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<blockquote>अंबपाली [[बौद्ध धर्म]] के समय प्रचलित [[पाली भाषा]] का शब्द है। यह [[वैशाली]] की अति रूपवती एक गणिका थी जिसको [[गौतम बुद्ध]] ने दीक्षा देकर उसका उद्धार किया था। [[हिंदी भाषा]] में इसको [[आम्रपाली]] माना जाता है।<ref>पुस्तक- पौराणिक कोश | पृष्ठ संख्या- 559</ref></blockquote> | |||
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*महात्मा बुद्ध '[[राजगृह]]' जाते या लौटते समय [[वैशाली]] में अवश्य रुकते थे। यहीं पर एक बार उन्होंने अंबपाली का भी आतिथ्य ग्रहण किया था। | |||
*[[बौद्ध]] ग्रंथों में बुद्ध के जीवन चरित पर प्रकाश डालने वाली घटनाओं का जो वर्णन मिलता है, उन्हीं में से अंबपाली के संबंध की एक प्रसिद्ध और रुचिकर घटना है- | |||
<blockquote>कहा जाता है कि जब 'तथागत' ([[बुद्ध]]) एक बार वैशाली में ठहरे, तब जहाँ उन्होंने [[देवता|देवताओं]] की तरह दीप्यमान [[लिच्छवी वंश|लिच्छवी]] राजपूत्रों की भोजन के लिए प्रार्थना अस्वीकार कर दी, वहीं उन्होंने गणिका अंबपाली की निष्ठा से प्रसन्न होकर उसका आतिथ्य स्वीकार किया। इससे गर्विणी अंबपाली ने उन राजपूत्रों को लज्जित करते हुए अपने रथ को उनके रथ के बराबर हाँका। उसने संघ को [[आम|आमों]] का अपना बगीचा भी दान कर दिया, जिससे वह अपना चौमासा वहाँ बिता सके।</blockquote> | |||
*इसमें संदेह नहीं कि अंबपाली ऐतिहासिक महिला थी, यद्यपि कथा के चमत्कारों ने उसे असाधारण बना दिया है। संभवत वह अभिजातकुलीना थी और इतनी सुंदरी थी कि लिच्छवियों की परंपरा के अनुसार उसके [[पिता]] को उसे सर्वभोग्या बनाना पड़ा। | |||
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अंबपाली महात्मा बुद्ध के समकालीन वैशाली की 'लिच्छवी' गणिका थी। वह भगवान बुद्ध के प्रभाव से उनकी शिष्या बन गई थी। अंबपाली ने बौद्ध संघ का अनेक प्रकार के दानों से महत उपकार किया। वह बुद्ध और उनके संघ की अनन्य उपासिका हो गई थी। उसने अपने पाप के जीवन से मुख मोड़कर अर्हत् का जीवन बिताना स्वीकार किया था।
अंबपाली बौद्ध धर्म के समय प्रचलित पाली भाषा का शब्द है। यह वैशाली की अति रूपवती एक गणिका थी जिसको गौतम बुद्ध ने दीक्षा देकर उसका उद्धार किया था। हिंदी भाषा में इसको आम्रपाली माना जाता है।[1]
संक्षिप्त परिचय
- महात्मा बुद्ध 'राजगृह' जाते या लौटते समय वैशाली में अवश्य रुकते थे। यहीं पर एक बार उन्होंने अंबपाली का भी आतिथ्य ग्रहण किया था।
- बौद्ध ग्रंथों में बुद्ध के जीवन चरित पर प्रकाश डालने वाली घटनाओं का जो वर्णन मिलता है, उन्हीं में से अंबपाली के संबंध की एक प्रसिद्ध और रुचिकर घटना है-
कहा जाता है कि जब 'तथागत' (बुद्ध) एक बार वैशाली में ठहरे, तब जहाँ उन्होंने देवताओं की तरह दीप्यमान लिच्छवी राजपूत्रों की भोजन के लिए प्रार्थना अस्वीकार कर दी, वहीं उन्होंने गणिका अंबपाली की निष्ठा से प्रसन्न होकर उसका आतिथ्य स्वीकार किया। इससे गर्विणी अंबपाली ने उन राजपूत्रों को लज्जित करते हुए अपने रथ को उनके रथ के बराबर हाँका। उसने संघ को आमों का अपना बगीचा भी दान कर दिया, जिससे वह अपना चौमासा वहाँ बिता सके।
- इसमें संदेह नहीं कि अंबपाली ऐतिहासिक महिला थी, यद्यपि कथा के चमत्कारों ने उसे असाधारण बना दिया है। संभवत वह अभिजातकुलीना थी और इतनी सुंदरी थी कि लिच्छवियों की परंपरा के अनुसार उसके पिता को उसे सर्वभोग्या बनाना पड़ा।
- संभवत उसने गणिका जीवन भी बिताया था। उसके कृपापात्रों में शायद मगध का राजा बिंबिसार भी था।
- बिंबिसार का अंबपाली से एक पुत्र होना भी बताया जाता है। जो भी हो, बाद में अंबपाली बुद्ध और उनके संघ की अनन्य उपासिका हो गई थी और उसने पाप के जीवन से मुख मोड़ लिया था।[2]
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
बौद्ध धर्म शब्दावली |
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