महाबोधि मंदिर: Difference between revisions
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[[चित्र:Mahabodhi-Temple | '''महाबोधि मंदिर''' [[बोधगया]] में स्थित संकुल [[भारत]] के पूर्वोत्तर भाग में [[बिहार]] राज्य का मध्य हिस्सा है। महाबोधि मंदिर [[गंगा नदी]] के मैदानी भाग में स्थित है। महाबोधि मंदिर [[बुद्ध|भुगवान बुद्ध]] की ज्ञान प्राप्ति के स्थान पर स्थित है। [[बिहार]] महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र स्थानों से एक है और यह विशेष रूप से उनके ज्ञान बोध की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है। | ||
महाबोधि मंदिर | ==इतिहास== | ||
प्रथम मंदिर तीसरी शताब्दी ई. पू. में [[अशोक|सम्राट अशोक]] द्वारा निर्मित कराया गया था और वर्तमान मंदिर पांचवीं या छठवीं शताब्दी में बनाए गए। यह ईंटों से पूरी तरह निर्मित सबसे प्रारंभिक बौद्ध मंदिरों में से एक है जो भारत में गुप्त अवधि से अब तक खड़े हुए हैं। महाबोधि मंदिर का स्थल महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं और उनकी पूजा से संबंधित तथ्यों के असाधारण [[अभिलेख]] प्रदान करते हैं, विशेष रूप से जब सम्राट अशोक ने प्रथम मंदिर का निर्माण कराया और साथ ही कटघरा और स्मारक स्तंभ बनवाया। शिल्पकारी से बनाया गया पत्थर का कटघरा पत्थर में शिल्पकारी की प्रथा का एक असाधारण शुरुआती उदाहरण है। | |||
==बुद्ध की मूर्त्ति== | ==बुद्ध की मूर्त्ति== | ||
महाबोधि मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूप के समान है। महाबोधि मंदिर में बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्थापित है। यह मूर्त्ति पदमासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचलित है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्थापित है जहाँ बुद्ध को निर्वाण (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। मंदिर के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। इस मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध एक पार्क है जहाँ बौद्ध भिक्षु ध्यान साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में मंदिर प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं। | महाबोधि मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूप के समान है। महाबोधि मंदिर में बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्थापित है। यह मूर्त्ति पदमासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचलित है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्थापित है जहाँ बुद्ध को निर्वाण (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। मंदिर के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना [[अवशेष]] है। इस मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध एक पार्क है जहाँ बौद्ध भिक्षु ध्यान साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में मंदिर प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं।<ref name="यात्रा">{{cite web |url=http://yatrasalah.com/touristPlaces.aspx?id=13 |title=महाबोधि महावीर मंदिर |accessmonthday=15 सितम्बर |accessyear=2011 |last=मुकेश |first= |authorlink= |format= |publisher=यात्रा सलाह |language=हिन्दी }}</ref> | ||
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[[चित्र:Mahabodhi-Temple.jpg|thumb|महाबोधि मंदिर, बोधगया, बिहार]] महाबोधि मंदिर बोधगया में स्थित संकुल भारत के पूर्वोत्तर भाग में बिहार राज्य का मध्य हिस्सा है। महाबोधि मंदिर गंगा नदी के मैदानी भाग में स्थित है। महाबोधि मंदिर भुगवान बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के स्थान पर स्थित है। बिहार महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र स्थानों से एक है और यह विशेष रूप से उनके ज्ञान बोध की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है।
इतिहास
प्रथम मंदिर तीसरी शताब्दी ई. पू. में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित कराया गया था और वर्तमान मंदिर पांचवीं या छठवीं शताब्दी में बनाए गए। यह ईंटों से पूरी तरह निर्मित सबसे प्रारंभिक बौद्ध मंदिरों में से एक है जो भारत में गुप्त अवधि से अब तक खड़े हुए हैं। महाबोधि मंदिर का स्थल महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं और उनकी पूजा से संबंधित तथ्यों के असाधारण अभिलेख प्रदान करते हैं, विशेष रूप से जब सम्राट अशोक ने प्रथम मंदिर का निर्माण कराया और साथ ही कटघरा और स्मारक स्तंभ बनवाया। शिल्पकारी से बनाया गया पत्थर का कटघरा पत्थर में शिल्पकारी की प्रथा का एक असाधारण शुरुआती उदाहरण है।
बुद्ध की मूर्त्ति
महाबोधि मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूप के समान है। महाबोधि मंदिर में बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्थापित है। यह मूर्त्ति पदमासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचलित है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्थापित है जहाँ बुद्ध को निर्वाण (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। मंदिर के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। इस मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राकृतिक दृश्यों से समृद्ध एक पार्क है जहाँ बौद्ध भिक्षु ध्यान साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में मंदिर प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं।[1]
रत्नाघारा
महाबोधि मंदिर के उत्तर पश्चिम भाग में एक छतविहीन भग्नावशेष है जो रत्नाघारा के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद चौथा सप्ताह व्यतीत किया था। दन्तकथाओं के अनुसार बुद्ध यहाँ गहन ध्यान में लीन थे तब उनके शरीर से प्रकाश की एक किरण निकली थी। प्रकाश की इन्हीं रंगों का उपयोग विभिन्न देशों द्वारा यहाँ लगे अपने पताके में किया गया है।[1]
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वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 मुकेश। महाबोधि महावीर मंदिर (हिन्दी) यात्रा सलाह। अभिगमन तिथि: 15 सितम्बर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख