पुण्णव माणवक: Difference between revisions

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एक दिन बावरी प्रसेनजित को एक पाखण्डी [[ब्राह्मण]] शाप दे गया, कि सातवें दिन उसका शिरोच्छेदन हो जायेगा, क्योंकि उसे धन नहीं दिया गया था। उसको इस प्रकार उदास देखकर हिताकांक्षी एक [[देवता]] ने बावरी को बताया, कि वह अभिसंस्कार, [[मंत्र]] बोलकर अपशब्द कहने वाले पाखंडी का विश्वास न करे। वह धन लोभी मूर्धापात (शाप विधि) नहीं जानता होगा। वह संबुद्ध, सर्वधर्म पारंगत, अभिज्ञाओं के बल को प्राप्त भगवान बुद्ध के पास जाएँ, जो [[बस्ती ज़िला|श्राबस्ती]] में विहार करते हैं। तो बावरी अपने सोलह मृगचर्म, जटाधारी शिष्यों को लेकर भगवान बुद्ध के पास गए।
एक दिन बावरी प्रसेनजित को एक पाखण्डी [[ब्राह्मण]] शाप दे गया, कि सातवें दिन उसका शिरोच्छेदन हो जायेगा, क्योंकि उसे धन नहीं दिया गया था। उसको इस प्रकार उदास देखकर हिताकांक्षी एक [[देवता]] ने बावरी को बताया, कि वह अभिसंस्कार, [[मंत्र]] बोलकर अपशब्द कहने वाले पाखंडी का विश्वास न करे। वह धन लोभी मूर्धापात (शाप विधि) नहीं जानता होगा। वह संबुद्ध, सर्वधर्म पारंगत, अभिज्ञाओं के बल को प्राप्त भगवान बुद्ध के पास जाएँ, जो [[बस्ती ज़िला|श्राबस्ती]] में विहार करते हैं। तो बावरी अपने सोलह मृगचर्म, जटाधारी शिष्यों को लेकर भगवान बुद्ध के पास गए।
;बुद्ध से प्रश्न
;बुद्ध से प्रश्न
बावरी के शिष्यों में पुण्णव माणवक वेद विद्या पारंगत, मेधावी शिष्य भी था। उसने भगवान बुद्ध से प्रश्न किया कि, किस कारण [[ऋषि|ऋषियों]], मनुष्यों, [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]], ब्राह्मणों ने लोक देवताओं को पृथक-पृथक यज्ञ कल्पित किया। भगवान ने उत्तर दिया कि, उन्होंने इस जन्म की चाह रखते हुए ही जरा (बुढ़ापा/मृत्यु) आदि से अमुक्त होने की कल्पना कर [[यज्ञ]] किए। पुण्णव ने फिर पूछा कि, क्या वे यज्ञ पथ में अप्रमादी थे, क्या वे जन्म जरा को पार हुए? इस पर भगवान [[बुद्ध]] ने उत्तर दिया कि आशंसन, स्तोम, अमिजल्प, हवन लाभ के लिए यज्ञ करते थे। पर वे यज्ञ के योग से, भुवन के रोग से जन्म-जरा पार नहीं कर पाए। पुण्णव ने आगे पूछा तो कौन पार हुए भगवान बताएं? भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया, लोक में तृष्णा रहित, शान्त, रागविरत, आशा रहित जन्म जरा को पार हुआ। पुण्णव अत्यन्त प्रसन्न हुआ, कि अद्भुत हैं भगवान के वचन और तुरन्त प्रव्रज्या के लिए प्रस्तुत हुआ तथा [[बौद्ध धर्म]] स्वीकार कर लिया।<ref>[[बुद्धचरित]], पृष्ठ 35-35</ref>
बावरी के शिष्यों में पुण्णव माणवक वेद विद्या पारंगत, मेधावी शिष्य भी था। उसने भगवान बुद्ध से प्रश्न किया कि, किस कारण [[ऋषि|ऋषियों]], मनुष्यों, [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]], ब्राह्मणों ने लोक देवताओं को पृथक-पृथक् यज्ञ कल्पित किया। भगवान ने उत्तर दिया कि, उन्होंने इस जन्म की चाह रखते हुए ही जरा (बुढ़ापा/मृत्यु) आदि से अमुक्त होने की कल्पना कर [[यज्ञ]] किए। पुण्णव ने फिर पूछा कि, क्या वे यज्ञ पथ में अप्रमादी थे, क्या वे जन्म जरा को पार हुए? इस पर भगवान [[बुद्ध]] ने उत्तर दिया कि आशंसन, स्तोम, अमिजल्प, हवन लाभ के लिए यज्ञ करते थे। पर वे यज्ञ के योग से, भुवन के रोग से जन्म-जरा पार नहीं कर पाए। पुण्णव ने आगे पूछा तो कौन पार हुए भगवान बताएं? भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया, लोक में तृष्णा रहित, शान्त, रागविरत, आशा रहित जन्म जरा को पार हुआ। पुण्णव अत्यन्त प्रसन्न हुआ, कि अद्भुत हैं भगवान के वचन और तुरन्त प्रव्रज्या के लिए प्रस्तुत हुआ तथा [[बौद्ध धर्म]] स्वीकार कर लिया।<ref>[[बुद्धचरित]], पृष्ठ 35-35</ref>


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Latest revision as of 13:32, 1 August 2017

पुण्णव माणवक तीन वेदों के ज्ञाता 'बावरी प्रसेनजित' के सोलह शिष्यों में से एक थे। इनका जन्म बावरी प्रसेनजित के पिता के पुरोहित के घर हुआ था। पुण्णव माणवक अत्यन्त ही मेधावी युवक था। महात्मा बुद्ध से उसने अनेकों प्रश्न किए थे, और बुद्ध ने उसके सभी प्रश्नों का जवाब दिया।

देवता की सलाह

एक दिन बावरी प्रसेनजित को एक पाखण्डी ब्राह्मण शाप दे गया, कि सातवें दिन उसका शिरोच्छेदन हो जायेगा, क्योंकि उसे धन नहीं दिया गया था। उसको इस प्रकार उदास देखकर हिताकांक्षी एक देवता ने बावरी को बताया, कि वह अभिसंस्कार, मंत्र बोलकर अपशब्द कहने वाले पाखंडी का विश्वास न करे। वह धन लोभी मूर्धापात (शाप विधि) नहीं जानता होगा। वह संबुद्ध, सर्वधर्म पारंगत, अभिज्ञाओं के बल को प्राप्त भगवान बुद्ध के पास जाएँ, जो श्राबस्ती में विहार करते हैं। तो बावरी अपने सोलह मृगचर्म, जटाधारी शिष्यों को लेकर भगवान बुद्ध के पास गए।

बुद्ध से प्रश्न

बावरी के शिष्यों में पुण्णव माणवक वेद विद्या पारंगत, मेधावी शिष्य भी था। उसने भगवान बुद्ध से प्रश्न किया कि, किस कारण ऋषियों, मनुष्यों, क्षत्रियों, ब्राह्मणों ने लोक देवताओं को पृथक-पृथक् यज्ञ कल्पित किया। भगवान ने उत्तर दिया कि, उन्होंने इस जन्म की चाह रखते हुए ही जरा (बुढ़ापा/मृत्यु) आदि से अमुक्त होने की कल्पना कर यज्ञ किए। पुण्णव ने फिर पूछा कि, क्या वे यज्ञ पथ में अप्रमादी थे, क्या वे जन्म जरा को पार हुए? इस पर भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया कि आशंसन, स्तोम, अमिजल्प, हवन लाभ के लिए यज्ञ करते थे। पर वे यज्ञ के योग से, भुवन के रोग से जन्म-जरा पार नहीं कर पाए। पुण्णव ने आगे पूछा तो कौन पार हुए भगवान बताएं? भगवान बुद्ध ने उत्तर दिया, लोक में तृष्णा रहित, शान्त, रागविरत, आशा रहित जन्म जरा को पार हुआ। पुण्णव अत्यन्त प्रसन्न हुआ, कि अद्भुत हैं भगवान के वचन और तुरन्त प्रव्रज्या के लिए प्रस्तुत हुआ तथा बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 495 |

  1. बुद्धचरित, पृष्ठ 35-35

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