तपन सिन्हा: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
आरुष परिहार (talk | contribs) No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "बाजार" to "बाज़ार") |
||
Line 46: | Line 46: | ||
* निरंजन सैकेते (1963) | * निरंजन सैकेते (1963) | ||
* आरोही (1965) | * आरोही (1965) | ||
* हाटे | * हाटे बाज़ारे (1967) | ||
* सगीना महतो (1970) | * सगीना महतो (1970) | ||
* जिन्दगी-जिन्दगी (1972) | * जिन्दगी-जिन्दगी (1972) |
Revision as of 10:16, 14 May 2013
तपन सिन्हा
| |
पूरा नाम | तपन सिन्हा |
जन्म | 2 अक्तूबर, 1924 |
जन्म भूमि | कलकत्ता, बंगाल |
मृत्यु | 15 जनवरी, 2009 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
पति/पत्नी | अरुंधति देवी |
कर्म-क्षेत्र | निर्माता-निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | अंकुश, उपहार, काबुलीवाला, जिन्दगी-जिन्दगी, सफेद हाथी आदि |
शिक्षा | स्नातकोत्तर (भौतिकी) |
विद्यालय | कलकत्ता विश्वविद्यालय |
पुरस्कार-उपाधि | दादा साहब फाल्के पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | भारत का पहला लाईफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार तपन सिन्हा को दिया गया था। |
तपन सिन्हा (अंग्रेज़ी: Tapan Sinha, जन्म: 2 अक्तूबर, 1924 – मृत्यु: 15 जनवरी, 2009) बांग्ला एवं हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध निर्देशक थे। इन्हें 2006 का दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिला था। तपन सिन्हा की फिल्में भारत के अलावा बर्लिन, वेनिस, लंदन, मास्को जैसे अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी सराही गईं।
जीवन परिचय
2 अक्टूबर 1924 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्मे तपन सिन्हा की शिक्षा बिहार में हुई थी। वहाँ उनके परिवार के पास विशाल जमीन-जायदाद थी। 1945 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक तपन सिन्हा ने अपना करियर 'न्यू थिएटर' में साउंड इंजीनियर के रूप में शुरू किया। वहाँ रहते उन्होंने बिमल राय और नितिन बोस की कार्यशैली को गंभीरता से देखा और सीखा। फिल्मकार सत्येन बोस की फिल्म ‘परिबर्तन’ का साउंड डिजाइन करने के बाद तपन दा सिन्हा लंदन के पाइनवुड स्टूडियो ने आमंत्रित किया।[1]
फ़िल्म निर्देशन
तपन सिन्हा ने हमेशा कम बजट की फिल्में बनाईं। सामाजिक सरोकार के साथ उनकी फिल्में दर्शकों का स्वस्थ मनोरंजन करने में हमेशा कामयाब रहीं। यही वजह है कि उन्हें उन्नीस बार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए। सामाजिक, कॉमेडी, बाल फिल्मों के अलावा साहित्य आधारित फिल्में बनाने पर उन्होंने अधिक ध्यान दिया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचनाओं पर ‘काबुलीवाला’ तथा ‘क्षुधित पाषाण’ उनकी चर्चित फिल्में हैं। नारायण गांगुली कथा सैनिक पर उन्होंने ‘अंकुश’ फिल्म बनाई थी। शैलजानंद मुखर्जी की रचना कृष्णा पर उनकी फिल्म ‘उपहार’ लोकप्रिय फिल्म रही है। तपन सिन्हा की साहित्य आधारित फिल्में बोझिल न होकर सिनमैटिक गुणवत्ता से दर्शकों को लुभाने में कामयाब रहीं। बांग्ला के अलावा उन्होंने हिंदी में भी सफल फिल्में दीं। कभी-कभार तपन दा ने बंगाल के सबसे महँगे सितारे उत्तम कुमार या हिंदी में अशोक कुमार को अपनी फिल्मों का नायक बनाया। बंगाल में जन्मे नक्सलवाद और महिला उत्पीड़न को अधिक गहराई से उन्होंने रेखांकित किया। अमोल पालेकर को लेकर ‘आदमी और औरत’ बहुत चर्चित हुई थी।[1]
प्रमुख फिल्में
- अंकुश (1954)
- उपहार (1955)
- काबुलीवाला (1956)
- लौह कपाट (1957)
- अतिथि (1959)
- क्षुधित पाषाण (1960)
- निरंजन सैकेते (1963)
- आरोही (1965)
- हाटे बाज़ारे (1967)
- सगीना महतो (1970)
- जिन्दगी-जिन्दगी (1972)
- हारमोनियम (1975)
- सफेद हाथी (1977)
- आदमी और औरत (1984)
- आज का रॉबिनहुड (1987)
- एक डॉक्टर की मौत (1990)
- अंतर्ध्यान (1991)
सम्मान और पुरस्कार
अमेरिकी निर्देशकों विलियम वाइलेर और जान फोर्ड के दीवाने तपन सिन्हा ने फिल्मी दुनिया में एक तकनीशियन के तौर पर प्रवेश किया। उनके फिल्मी सफर में कुल 41 फिल्में दर्ज हैं जिनमें से 19 ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीते और लंदन, वेनिस, मास्को तथा बर्लिन में हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में खूब सराहना भी बटोरी। भारत का पहला लाईफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार तपन सिन्हा को दिया गया। 20 जून, 2008 को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी न्यू अलीपुर के उनके मकान पर जाकर उन्हें ये पुरस्कार दिया। लाईफ टाईम अचीवमेंट श्रेणी को पहली बार राष्ट्रीय पुरस्करों में शामिल किया गया। और भारत की आजा़दी की साठवीं सालगिरह (2008) पर इसे शुरु किया गया। इसके अतिरिक्त तपन सिन्हा को सन 2006 में भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फालके पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
निधन
भारतीय फ़िल्म जगत के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहेब फ़ाल्के से सम्मानित तपन सिन्हा का 15 जनवरी 2009 में कोलकाता में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। 84 साल के तपन सिन्हा निमोनिया से पीड़ित थे। उन्हें 2008 में दिसंबर को सीएमआरआई में भर्ती कराया गया था। उनकी अभिनेत्री पत्नी अरुंधति देवी का 1990 में ही निधन हो गया था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 तपन सिन्हा : रे और घटक की परंपरा के निर्देशक (हिन्दी) प्रेसनोट। अभिगमन तिथि: 3 अक्टूबर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
- निर्देशक तपन सिन्हा का निधन
- तपन सिन्हा को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड
- काम से समझौता नही करते थे तपन सिन्हा
संबंधित लेख