संकिसा: Difference between revisions
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Revision as of 13:01, 4 March 2011
संकिसा उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद के निकट स्थित आधुनिक संकिस ग्राम से समीकृत किया जाता है। कनिंघम ने अपनी कृति 'द एनशॅंट जिऑग्राफी ऑफ़ इण्डिया' में संकिसा का विस्तार से वर्णन किया है। संकिसा का उल्लेख महाभारत में किया गया है।
इतिहास
उस समय यह नगर पांचाल की राजधानी कांपिल्य से अधिक दूर नहीं था। महाजनपद युग में संकिसा पांचाल जनपद का प्रसिद्ध नगर था। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ बुद्ध इन्द्र एवं ब्रह्मा सहित स्वर्ण अथवा रत्न की सीढ़ियों से त्रयस्तृन्सा स्वर्ग से पृथ्वी पर आये थे। इस प्रकार गौतम बुद्ध के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था।
महात्मा बुद्ध का आगमन
इसी नगर में महात्मा बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर यहाँ आये व संघ में स्त्रियों की प्रवृज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था और भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिया गया था। बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गणना उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की गयी है। प्राचीनकाल में यह नगर निश्चय ही काफ़ी बड़ा रहा होगा, क्योंकि इसकी नगर भित्ति के अवशेष, जो आज भी हैं, लगभग चार मील की परिधि में हैं। चीनी यात्री फ़ाह्यान पाँचवीं शताब्दी के पहले दशक में यहाँ मथुरा से चलकर आया था और यहाँ से कान्यकुब्ज, श्रावस्ती आदि स्थानों पर गया था। उसने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी नाम से किया है। उसने यहाँ हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हजार भिक्षुओं को देखा था। कनिंघम को यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक चाँदी का सिक्का मिला था।
विशाल सिंह प्रतिमा
सातवीं शताब्दी में युवानच्वांग ने यहाँ 70 फुट ऊँचाई स्तम्भ देखा था, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था। उस समय भी इतना चमकदार था कि जल से भीगा-सा जान पड़ता था। स्तम्भ के शीर्ष पर विशाल सिंह प्रतिमा थी। उसने अपने विवरण में इस विचित्र तथ्य का उल्लेख किया है कि यहाँ के विशाल मठ के समीप निवास करने वाले ब्राह्मणों की संख्या कई हज़ार थी।
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