अवध: Difference between revisions
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[[अवध]] शब्द [[अयोध्या]] से निकला है। [[उत्तर प्रदेश]] का यह भाग [[कोशल]] कहलाता था। [[दशरथ]] यहाँ के राजा थे और अयोध्या उनकी राजधानी थी। [[इतिहास]] में उत्तर [[भारत]] के जिन [[सोलह महाजनपद|सोलह जनपदों]] का उल्लेख है, उनमें यह भी एक था, और [[श्रावस्ती]] इसकी राजधानी थी। बाद में इसको जीतकर [[नंद वंश|नंदों]] और [[मौर्य वंश|मौर्यों]] ने [[मगध]] राज्य का अंग बना लिया। चौथी शताब्दी में अवध [[गुप्त साम्राज्य]] का और सातवीं में [[हर्षवर्धन]] के साम्राज्य का अंग था। नवीं शताब्दी में [[गुर्जर प्रतिहार वंश|गुर्जर-प्रतिहारों]] ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया। सन् 1192 में [[मुहम्मद ग़ोरी|शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] के एक सहायक ने अवध को जीता, तो उसके बाद [[मुसलमान]] अमीरों का यहाँ बसना आरंभ हो गया। | |||
अवध शब्द [[अयोध्या]] से निकला | ==स्थापना== | ||
'सआदत ख़ाँ बुरहानुलमुल्क' अवध के स्वतन्त्र राज्य का संस्थापक था। 1720 से 1722 ई. तक उसने [[आगरा]] के सूबेदार के पद पर कार्य किया। 1722 ई. में सम्राट [[मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर|मुहम्मदशाह]] ने उसे अवध का सूबेदार नियुक्त किया, जहाँ बाद में इसने [[मुग़ल]] साम्राज्य से अलग स्वतन्त्र अवध राज्य की स्थापना की। | |||
==साअदत ख़ाँ द्वारा आत्महत्या== | |||
1723 ई. में सआदत ख़ाँ ने नयी ‘राजस्व बन्दोबस्त’ व्यवस्था को लागू किया। 1739 ई. में सआदत ख़ाँ को [[नादिरशाह]] के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए सम्राट मुहम्मदशाह ने दिल्ली बुलाया। कालान्तर में सआदत ख़ाँ ने ही नादिरशाह को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया था। किन्तु उसने आक्रमणकारी को 20 करोड़ की आशा दिलायी थी, परन्तु नादिरशाह से किये गये वादे को न पूरा कर पाने के कारण ही सआदत ख़ाँ ने 1739 में ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली। | |||
सआदत ख़ाँ की मुत्यु के बाद सम्राट मुहम्मदशाह ने सआदत ख़ाँ के भतीजे एवं दामाद 'सफ़दरजंग' को [[अवध]] की नवाबी प्रदान की। 1748 ई. में मुग़ल सम्राट ने उसे अपना वज़ीर बनाया और इसके साथ ही उसे [[इलाहाबाद]] का भी प्रांत दे दिया गया। उसने [[मराठा|मराठों]] के विरुद्ध एक लड़ाई लड़ी तथा [[हिन्दू]] एवं मुसलमानों में कोई भेद न करते हुए दोनों को बराबर महत्व दिया। उसने अपनी सरकार में महाराज 'नवाबराय' को उच्च पद प्रदान किया। 1754 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। | |||
==अंग्रेज़ों का अधिकार== | |||
1754 ई. में [[शुजाउद्दौला]] अवध का नवाब एवं सम्राट का वज़ीर बना। उसने [[बक्सर का युद्ध|बक्सर के युद्ध]] मे भाग लिया तथा 1774 ई. में रुहेलों को परास्त कर [[रुहेलखंड]] पर अधिकार कर लिया। 1775 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। शुजाउद्दौला के बाद ‘[[आसफ़उद्दौला]]’ (1775-95 ई.) अवध का शासक बना। उसने अपनी राजधानी फैजाबाद से [[लखनऊ]] स्थानान्तरित की। 1819 ई. में इस वंश के सातवें शासक सआदत ख़ान ने अवध के राजा की उपाधि ग्रहण की। अवध के स्वतंत्र शासकों की अंतिम कड़ी व अन्तिम शासक 'वाजिद अलीशाह' था। 1856 ई. में [[लॉर्ड डलहौजी]] ने [[अवध]] को ब्रिटिश शासन के अधीन कर लिया। | |||
==उत्तर प्रदेश की स्थापना== | |||
[[1902]] ई. में [[आगरा]] और अवध को मिलाकर ‘संयुक्त प्रांत आगरा व अवध’ बनाया गया। [[भारत]] के स्वतंत्र होने पर इस प्रांत का नाम [[उत्तर प्रदेश]] पड़ा। अवध के नवाबों के शासनकाल में यहाँ मुस्लिम [[संस्कृति]] का पर्याप्त प्रसार हुआ। उन्होंने अनेक मस्जिदों और भवनों का निर्माण किया, जो आज भी राजधानी लखनऊ तथा अन्य निकटवर्ती नगरों का आकर्षण है । | |||
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[[चित्र:Shuja-Ud-Daula.jpg|thumb|चित्रकार द्वारा चित्रित शुजाउद्दौला का चित्र]] अवध शब्द अयोध्या से निकला है। उत्तर प्रदेश का यह भाग कोशल कहलाता था। दशरथ यहाँ के राजा थे और अयोध्या उनकी राजधानी थी। इतिहास में उत्तर भारत के जिन सोलह जनपदों का उल्लेख है, उनमें यह भी एक था, और श्रावस्ती इसकी राजधानी थी। बाद में इसको जीतकर नंदों और मौर्यों ने मगध राज्य का अंग बना लिया। चौथी शताब्दी में अवध गुप्त साम्राज्य का और सातवीं में हर्षवर्धन के साम्राज्य का अंग था। नवीं शताब्दी में गुर्जर-प्रतिहारों ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया। सन् 1192 में शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी के एक सहायक ने अवध को जीता, तो उसके बाद मुसलमान अमीरों का यहाँ बसना आरंभ हो गया।
स्थापना
'सआदत ख़ाँ बुरहानुलमुल्क' अवध के स्वतन्त्र राज्य का संस्थापक था। 1720 से 1722 ई. तक उसने आगरा के सूबेदार के पद पर कार्य किया। 1722 ई. में सम्राट मुहम्मदशाह ने उसे अवध का सूबेदार नियुक्त किया, जहाँ बाद में इसने मुग़ल साम्राज्य से अलग स्वतन्त्र अवध राज्य की स्थापना की।
साअदत ख़ाँ द्वारा आत्महत्या
1723 ई. में सआदत ख़ाँ ने नयी ‘राजस्व बन्दोबस्त’ व्यवस्था को लागू किया। 1739 ई. में सआदत ख़ाँ को नादिरशाह के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए सम्राट मुहम्मदशाह ने दिल्ली बुलाया। कालान्तर में सआदत ख़ाँ ने ही नादिरशाह को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया था। किन्तु उसने आक्रमणकारी को 20 करोड़ की आशा दिलायी थी, परन्तु नादिरशाह से किये गये वादे को न पूरा कर पाने के कारण ही सआदत ख़ाँ ने 1739 में ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली।
सआदत ख़ाँ की मुत्यु के बाद सम्राट मुहम्मदशाह ने सआदत ख़ाँ के भतीजे एवं दामाद 'सफ़दरजंग' को अवध की नवाबी प्रदान की। 1748 ई. में मुग़ल सम्राट ने उसे अपना वज़ीर बनाया और इसके साथ ही उसे इलाहाबाद का भी प्रांत दे दिया गया। उसने मराठों के विरुद्ध एक लड़ाई लड़ी तथा हिन्दू एवं मुसलमानों में कोई भेद न करते हुए दोनों को बराबर महत्व दिया। उसने अपनी सरकार में महाराज 'नवाबराय' को उच्च पद प्रदान किया। 1754 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
अंग्रेज़ों का अधिकार
1754 ई. में शुजाउद्दौला अवध का नवाब एवं सम्राट का वज़ीर बना। उसने बक्सर के युद्ध मे भाग लिया तथा 1774 ई. में रुहेलों को परास्त कर रुहेलखंड पर अधिकार कर लिया। 1775 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। शुजाउद्दौला के बाद ‘आसफ़उद्दौला’ (1775-95 ई.) अवध का शासक बना। उसने अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानान्तरित की। 1819 ई. में इस वंश के सातवें शासक सआदत ख़ान ने अवध के राजा की उपाधि ग्रहण की। अवध के स्वतंत्र शासकों की अंतिम कड़ी व अन्तिम शासक 'वाजिद अलीशाह' था। 1856 ई. में लॉर्ड डलहौजी ने अवध को ब्रिटिश शासन के अधीन कर लिया।
उत्तर प्रदेश की स्थापना
1902 ई. में आगरा और अवध को मिलाकर ‘संयुक्त प्रांत आगरा व अवध’ बनाया गया। भारत के स्वतंत्र होने पर इस प्रांत का नाम उत्तर प्रदेश पड़ा। अवध के नवाबों के शासनकाल में यहाँ मुस्लिम संस्कृति का पर्याप्त प्रसार हुआ। उन्होंने अनेक मस्जिदों और भवनों का निर्माण किया, जो आज भी राजधानी लखनऊ तथा अन्य निकटवर्ती नगरों का आकर्षण है ।
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