कनखल: Difference between revisions

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==पौराणिक कथा==
==पौराणिक कथा==

Revision as of 12:29, 25 October 2017

चित्र:Disamb2.jpg कनखल एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कनखल (बहुविकल्पी)

कनखल हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जो हरिद्वार से लगभग एक मील की दूरी पर दक्षिण में तथा ज्वालापुर से दो मील पश्चिम गंगा के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। यहाँ नगर के दक्षिण में दक्ष प्रजापति का भव्य मंदिर है, जिसके निकट 'सतीघाट' के नाम से वह भूमि है, जहाँ पुराणों[1] के अनुसार भगवान शिव ने सती के प्राणोत्सर्ग के पश्चात्‌ दक्ष के यज्ञ का ध्वंस किया था। कनखल एक पुण्य तीर्थ स्थल है, जहाँ प्रति वर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शनार्थ आते हैं।[2]

पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी राजधानी कनखल में ही वह यज्ञ किया था, जिसमें आने का निमंत्रण उसने भगवान शिव को नहीं दिया। बिना निमंत्रण के ही माता सती अपनी पिता दक्ष के इस यज्ञ में पहुँच गईं। तब दक्ष ने सभी लोगों के समक्ष शिव को अपशब्द कहे और उनका भारी अपमान किया। अपने पति शिव का अपमान सहन न करने के कारण दक्ष कन्या सती उसी यज्ञ की अग्नि में जल कर भस्म हो गईं। कनखल में दक्ष का मंदिर तथा यज्ञ स्थान आज भी बने हुए हैं। महाभारत में कनखल का तीर्थरूप में वर्णन इस प्रकार है-

'कुरुक्षेत्रसमागंगा यत्र तत्रावगाहिता,
विशेषो वैकनखले प्रयागे परमं महत्।'[3]
'एते कनखला राजनृषीणांदयिता नगा:,
एषा प्रकाशते गंगा युधिष्ठिर महानदी'[4]

कालीदास का वर्णन

मेघदूत में कालिदास ने कनखल का उल्लेख मेध की अलका-यात्रा के प्रसंग में किया-

'तस्माद् गच्छेरनुकनखलं शैलराजावतीर्णां जह्नो: कन्यां सगरतनयस्वर्गसोपान पंक्तिम्।'[5]
हरिवंशपुराण का उल्लेख

हरिवंश पुराण में भी कनखल को पुण्य स्थान माना गया है-

'गंगाद्वारं कनखलं सोमो वै तत्र संस्थित:'

तथा

'हरिद्वारे कुशावर्ते नील के भिल्लपर्वते, स्नात्वा कनखले तीर्थे पुनर्जन्म न विद्यते'।

अर्थ

मोनियर विलियम्स के संस्कृत-अंग्रेज़ी कोश के अनुसार 'कनखल' का अर्थ "छोटा खला" या "गर्त" है। कनखल के पहाड़ों के बीच के एक छोटे-से स्थान में बसा होने के कारण यह व्युत्पत्ति सार्थक भी मानी जा सकती है। 'स्कंदपुराण' में कनखल शब्द का अर्थ इस प्रकार दर्शाया गया है-

'खल: को नाम मुक्तिं वै भजते तत्र मज्जनात्, अत: कनखलं तीर्थं नाम्ना चक्रुर्मुनीश्वरा:'

अर्थात् "खल या दुष्ट मनुष्य की भी यहाँ स्नान से मुक्ति हो जाती है, इसीलिए इसे 'कनखल' कहते हैं।"

उद्यान

'कनखल' में अनेक प्रसिद्ध उद्यान हैं, जिनमें केला, आलूबुखारा, लीची, आडू, चकई, लुकाट आदि फल भारी मात्रा में उत्पन्न होते हैं। यहाँ के अधिकांश निवासी ब्राह्मण हैं, जिनका पेशा प्राय: हरिद्वार अथवा कनखल में 'पौरोहित्य' या 'पंडगिरी' है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कूर्मपुराण 2.38 अ., लिंगपुराण 100.8
  2. कनखल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 01 मार्च, 2014।
  3. वन पर्व महाभारत 85,88
  4. वन पर्व महाभारत 135,5
  5. पूर्वमेघ, 52

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