बिठूर: Difference between revisions

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'''बिठूर''' प्रसिद्ध [[हिन्दू]] धार्मिक स्थल है जो [[कानपुर]], [[उत्तर प्रदेश]] में स्थित है। यह स्थल महान् क्रांतिकारी [[तात्या टोपे]], [[नाना साहब|नाना राव पेशवा]] और [[झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|रानी लक्ष्मीबाई]] जैसे क्रांतिकारियों की यादें अपने दामन में समेटे हुए है। यह ऐसा दर्शनीय स्थल है, जिसे [[ब्रह्मा]], [[वाल्मीकि|महर्षि वाल्मीकि]], वीर बालक [[ध्रुव]], [[सीता|माता सीता]] और [[लव कुश]] ने किसी न किसी रूप में अपनी कर्मस्थली बनाया। रमणीक दृश्यों से भरपूर यह जगह सदियों से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को लुभा रही है।
महान क्रांतिकारी [[तात्या टोपे]], [[नाना साहब|नाना राव पेशवा]] और [[झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|रानी लक्ष्मीबाई]] जैसे क्रांतिकारियों की यादें अपने दामन में समेटे हुए है बिठूर। यह ऐसा दर्शनीय स्थल है जिसे [[ब्रह्मा]], महर्षि [[वाल्मीकि]], वीर बालक [[ध्रुव]], माता [[सीता]], [[लव कुश]] ने किसी न किसी रूप में अपनी कर्मस्थली बनाया। रमणीक दृश्यों से भरपूर यह जगह सदियों से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को लुभा रही है।
==स्थिति==
==स्थिति==
उत्तरी [[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य में औद्योगिक नगर कानपुर के पश्चिमोत्तर दिशा में 27 किमी दूर स्थित [[गंगा नदी]] के तट पर एक छोटा सा स्थान स्थित है।  बिठूर में सन 1857 में [[प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन|भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम]] का प्रारम्भ हुआ था। यह शहर उत्तर प्रदेश के  शहर कानपुर से 22 किमी. दूर [[कन्नौज]] रोड़ पर स्थित है।  
उत्तरी [[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य में औद्योगिक नगर कानपुर के पश्चिमोत्तर दिशा में 27 किमी दूर स्थित [[गंगा नदी]] के तट पर एक छोटा सा स्थान स्थित है।  बिठूर में सन् 1857 में [[प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम|भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम]] का प्रारम्भ हुआ था। यह शहर उत्तर प्रदेश के  शहर कानपुर से 22 किलोमीटर दूर [[कन्नौज]] रोड़ पर स्थित है।  
लखनऊ से कानपुर की दूरी 80 किलोमीटर है और वहाँ से बिठूर 22 किलोमीटर है।  
लखनऊ से कानपुर की दूरी 80 किलोमीटर है और वहाँ से बिठूर 22 किलोमीटर है।
==जनसंख्या==
==जनसंख्या==
सन 2001 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या  9,647 है।
सन 2001 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या  9,647 है।
==ऐतिहासिकता==
==ऐतिहासिकता==
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पवित्र पावनी [[गंगा नदी|गंगा]] के किनारे बसा बिठूर का कण-कण नमन के योग्य है। यह दर्शनीय इसलिए है कि महाकाव्य काल से इसकी महिमा बरकरार है। यह महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि है। यह क्रांतिकारियों की वीरभूमि है। यहाँ महान क्रांतिकारी तात्या टोपे ने ग़दर मचा दी थी। यहाँ नाना साहब पेशवा की यादें खण्डहरों के बीच बसती हैं। यही नहीं तपस्वी बालक ध्रुव और उसके पिता [[उत्तानपाद]] की राजधानी भी कभी यहीं पर थी। कहते हैं कि 'ध्रुव का टीला' ही उस समय ध्रुव के राज्य की राजधानी थी। आज राजधानी की झलक देखने को नहीं मिलती लेकिन ऐतिहासिकता की कहानी यहाँ के खण्डहर सुनाते हैं। कहने को यह [[कानपुर]] से साढ़े बाइस किलोमीटर दूर छोटा सा कस्बा है, लेकिन यह कहना ग़लत न होगा कि इस कस्बे के कारण कानपुर पर्यटन के नक्शे पर महत्व पाता है। इसके किनारे से होकर गंगा कल-कल करती बहती है। सुरम्यता का आलम यह है कि जिधर निकल जाइए, मन मोहित हो जाता है।  
पवित्र पावनी [[गंगा नदी|गंगा]] के किनारे बसा बिठूर का कण-कण नमन के योग्य है। यह दर्शनीय इसलिए है कि महाकाव्य काल से इसकी महिमा बरकरार है। यह महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि है। यह क्रांतिकारियों की वीरभूमि है। यहाँ महान् क्रांतिकारी तात्या टोपे ने क्रांति मचा दी थी। यहाँ नाना साहब पेशवा की यादें खण्डहरों के बीच बसती हैं। यही नहीं तपस्वी बालक ध्रुव और उसके पिता [[उत्तानपाद]] की राजधानी भी कभी यहीं पर थी। कहते हैं कि 'ध्रुव का टीला' ही उस समय ध्रुव के राज्य की राजधानी थी। आज राजधानी की झलक देखने को नहीं मिलती लेकिन ऐतिहासिकता की कहानी यहाँ के खण्डहर सुनाते हैं। कहने को यह [[कानपुर]] से साढ़े बाइस किलोमीटर दूर छोटा सा क़स्बा है, लेकिन यह कहना ग़लत न होगा कि इस कस्बे के कारण कानपुर पर्यटन के नक्शे पर महत्त्व पाता है। इसके किनारे से होकर गंगा कल-कल करती बहती है। सुरम्यता का आलम यह है कि जिधर निकल जाइए, मन मोहित हो जाता है।
[[चित्र:Boats-at-Bithoor.jpg|thumb|right|बिठूर]]
==ब्रह्मावर्त हुआ बिठूर==  
==ब्रह्मावर्त हुआ बिठूर==  
किवदन्ती है कि [[ब्रह्मा]] ने सृष्टि की रचना के उपलक्ष्य में यहाँ पर ब्रह्मेश्वर महादेव की स्थापना की। उन्होंने इस अवसर पर [[अश्वमेध यज्ञ]] भी किया और उसके स्मारक के रूप में एक नाल की स्थापना की जो ब्रह्मवर्त घाट पर आज भी विराजमान है। इसे ब्रह्मनाल या ब्रह्म की खूंटी भी कहते हैं क्योंकि महर्षि वाल्मीकि की यह तपोभूमि है, इसलिए इसका [[राम]] कथा से जुड़ाव स्वाभाविक है। धोबी के ताना मारने के बाद जब राजा राम ने सीता को राज्य से निकाला तो उन्हें यहाँ पर वाल्मीकि के आश्रम में शरण मिली थी। यहीं पर उनके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ। यही नहीं जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया तो उनके द्वारा छोड़े गए घोड़े को यहीं पर लव-कुश ने पकड़ा। जाहिर है कि इस तरह यह भूमि प्रभु राम और माता सीता के आख़िरी मिलन की भूमि है। भगवान [[शंकर]] ने मां [[पार्वती देवी]] को इस तीर्थस्थल का महात्म्य समझाते हुए कहा है-  
किवदन्ती है कि [[ब्रह्मा]] ने सृष्टि की रचना के उपलक्ष्य में यहाँ पर ब्रह्मेश्वर महादेव की स्थापना की। उन्होंने इस अवसर पर [[अश्वमेध यज्ञ]] भी किया और उसके स्मारक के रूप में एक नाल की स्थापना की जो ब्रह्मवर्त घाट पर आज भी विराजमान है। इसे ब्रह्मनाल या ब्रह्म की खूंटी भी कहते हैं क्योंकि महर्षि वाल्मीकि की यह तपोभूमि है, इसलिए इसका [[राम]] कथा से जुड़ाव स्वाभाविक है। धोबी के ताना मारने के बाद जब राजा राम ने सीता को राज्य से निकाला तो उन्हें यहाँ पर [[वाल्मीकि आश्रम]] में शरण मिली थी। यहीं पर उनके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ। यही नहीं जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने [[अश्वमेध यज्ञ]] किया तो उनके द्वारा छोड़े गए घोड़े को यहीं पर लव-कुश ने पकड़ा। ज़ाहिर है कि इस तरह यह भूमि प्रभु राम और माता सीता के आख़िरी मिलन की भूमि है। भगवान [[शंकर]] ने माँ [[पार्वती देवी]] को इस तीर्थस्थल का महात्म्य समझाते हुए कहा है-  


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#दशाश्वमेघ तीर्थ और  
#दशाश्वमेघ तीर्थ और  
#गौचारण तीर्थ की परिक्रमा ज़रूर करते थे। हालांकि इनमें से अनेक तीर्थ अब स्मृतियों में ही बचे हैं लेकिन उनकी महिमा अब भी बरकरार है।
#गौचारण तीर्थ की परिक्रमा ज़रूर करते थे। हालांकि इनमें से अनेक तीर्थ अब स्मृतियों में ही बचे हैं लेकिन उनकी महिमा अब भी बरकरार है।
==स्वतंत्रता संग्राम का केन्द्र==
==स्वतंत्रता संग्राम का केन्द्र==
सन 1818 में अंतिम पेशवा बाजीराव अंग्रेज़ों से लोहा लेने का मन बनाकर बिठूर आ गए। नाना साहब पेशवा ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रांति का बिगुल इसी जमीन पर बजाया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का शैशवकाल यहीं बीता। इस ऐतिहासिक भूमि को तात्या टोपे जैसे क्रांतिकारियों ने अपने ख़ून से सींचकर उर्वर बनाया है। यहाँ क्रांतिकारियों की गौरव गाथाएँ आज भी पर्यटक सुनने आते हैं।
सन 1818 में अंतिम पेशवा बाजीराव अंग्रेज़ों से लोहा लेने का मन बनाकर बिठूर आ गए। नाना साहब पेशवा ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रांति का बिगुल इसी ज़मीन पर बजाया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का शैशवकाल यहीं बीता। इस ऐतिहासिक भूमि को तात्या टोपे जैसे क्रांतिकारियों ने अपने ख़ून से सींचकर उर्वर बनाया है। यहाँ क्रांतिकारियों की गौरव गाथाएँ आज भी पर्यटक सुनने आते हैं।
==पेशवा बाजीराव का दरबार==
==पेशवा बाजीराव का दरबार==
1818 में अंग्रेज़ों द्वारा अपदस्थ किये जाने के बाद, मराठों के पेशवा बाजीराव ने अपना दरबार यहीं स्थापित किया था।  
1818 में अंग्रेज़ों द्वारा अपदस्थ किये जाने के बाद, मराठों के पेशवा बाजीराव ने अपना दरबार यहीं स्थापित किया था।  
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1857 में बाजीराव के दत्तक पुत्र के भारतीय विद्रोह में भाग लेने पर प्रतिकार स्वरूप ब्रिटिश सेना ने इस नगर को ढहा दिया और मंदिर और महलों को नष्ट कर दिया।  
1857 में बाजीराव के दत्तक पुत्र के भारतीय विद्रोह में भाग लेने पर प्रतिकार स्वरूप ब्रिटिश सेना ने इस नगर को ढहा दिया और मंदिर और महलों को नष्ट कर दिया।  
==हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ==
==हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ==
[[चित्र:Bithoor.jpg|thumb|250px|बिठूर]]
नगर के ध्वंसावशेष हिंदुओं के लिये एक प्रमुख तीर्थ है।  
नगर के ध्वंसावशेष हिंदुओं के लिये एक प्रमुख तीर्थ है।  
==घाटों का नगर==
==घाटों का नगर==
वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) की तरह बिठुर भी घाटों का नगर है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण घाट भगवान [[ब्रह्मा]] को समर्पित है। घाट पर स्थित एक चरण चिह्न को भगवान ब्रह्मा का माना जाता है। कहा जाता है कि महाकाव्य [[रामायण]] की रचना महर्षि [[वाल्मीकि]] ने यहीं की थी और [[सीता]] ने यहाँ शरण ली थी व [[लव कुश|लव और कुश]] को जन्म दिया था।
वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) की तरह बिठुर भी घाटों का नगर है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घाट भगवान [[ब्रह्मा]] को समर्पित है। घाट पर स्थित एक चरण चिह्न को भगवान ब्रह्मा का माना जाता है। कहा जाता है कि महाकाव्य [[रामायण]] की रचना महर्षि [[वाल्मीकि]] ने यहीं की थी और [[सीता]] ने यहाँ शरण ली थी व [[लव कुश|लव और कुश]] को जन्म दिया था।
 
==नाना साहब का गृह क्षेत्र==
==नाना साहब का गृह क्षेत्र==
बिठुर [[नाना साहब]] का गृह क्षेत्र है, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई थी। ये नाना राव और [[तात्या टोपे]] जैसे लोगों की धरती रही है।
बिठुर [[नाना साहब]] का गृह क्षेत्र है, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई थी। ये नाना राव और [[तात्या टोपे]] जैसे लोगों की धरती रही है।
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रानी लक्ष्मीबाई ने अपना बचपन यहीं गुजारा था।   
रानी लक्ष्मीबाई ने अपना बचपन यहीं गुजारा था।   
==पर्यटन==
==पर्यटन==
*यहाँ पेशवाओं के बनवाए अनेक दर्शनीए स्थल हैं।  
*यहाँ [[पेशवा|पेशवाओं]] के बनवाए अनेक दर्शनीए स्थल हैं।  
*नौका विहार के लिए गंगा के सुरम्य घाट हैं।  
*नौका विहार के लिए गंगा के सुरम्य घाट हैं।  
*सबसे दर्शनीय घाट ब्रह्मावर्त घाट सचेंडी के राजा हिन्दू सिंह चन्देल ने बनवाया था, जिसका जीर्णोंद्वार बाजीराव पेशवा ने कराया।  
*सबसे दर्शनीय घाट ब्रह्मावर्त घाट सचेंडी के राजा हिन्दू सिंह चन्देल ने बनवाया था, जिसका जीर्णोंद्वार बाजीराव पेशवा ने कराया।  
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*बिठूर जाने के लिए देश की राजधानी [[दिल्ली]] और [[उत्तर प्रदेश]] की राजधानी [[लखनऊ]] से ट्रेन सुविधा बहुत अच्छी है। श्रमशक्ति, कानपुर शताब्दी जैसी एक से एक ट्रेनें दिल्ली से [[कानपुर]] आती हैं। [[मुम्बई]] से उद्योग नगरी एक्सप्रेस कानपुर जाती है।  
*बिठूर जाने के लिए देश की राजधानी [[दिल्ली]] और [[उत्तर प्रदेश]] की राजधानी [[लखनऊ]] से ट्रेन सुविधा बहुत अच्छी है। श्रमशक्ति, कानपुर शताब्दी जैसी एक से एक ट्रेनें दिल्ली से [[कानपुर]] आती हैं। [[मुम्बई]] से उद्योग नगरी एक्सप्रेस कानपुर जाती है।  
*इसके अलावा हवाई सुविधा भी है। लखनऊ हवाई मार्ग या फिर ट्रेन मार्ग से आकर वहाँ से टैक्सी लेकर बिठूर जाया जा सकता है। अमौसी हवाई अड्डा, लखनऊ से सीधे कानपुर के लिए टैक्सियाँ मिल जाती हैं।  
*इसके अलावा हवाई सुविधा भी है। लखनऊ हवाई मार्ग या फिर ट्रेन मार्ग से आकर वहाँ से टैक्सी लेकर बिठूर जाया जा सकता है। अमौसी हवाई अड्डा, लखनऊ से सीधे कानपुर के लिए टैक्सियाँ मिल जाती हैं।  
*लखनऊ से कानपुर की दूरी 80 किलोमीटर है और वहाँ से बिठूर 22 किलोमीटर है। लखनऊ से कानपुर होते हुए बिठूर जाने का एक लाभ यह भी होगा कि आसपास के और ऐतिहासिक स्थल जैसे काकोरी स्मारक, प्रताप नारायण मिश्र की जन्मस्थली, नवाबगंज पक्षी विहार, जाजमऊ आदि का भी भ्रमण किया जा सकता है।  
*लखनऊ से कानपुर की दूरी 80 किलोमीटर है और वहाँ से बिठूर 22 किलोमीटर है। लखनऊ से कानपुर होते हुए बिठूर जाने का एक लाभ यह भी होगा कि आसपास के और ऐतिहासिक स्थल जैसे काकोरी स्मारक, [[प्रताप नारायण मिश्र]] की जन्मस्थली, नवाबगंज पक्षी विहार, जाजमऊ आदि का भी भ्रमण किया जा सकता है।  
*बिठूर जाने वाले पर्यटक अब आई. आई. टी. कानपुर भी देखना चाहते हैं। शिक्षा का यह मन्दिर बिठूर से पहले पड़ता है। बहुत से पर्यटक गंगा विहार भी करते हैं। वे बिठूर से नाव के द्वारा ऐतिहासिक परमट स्थित आनन्देश्वर मन्दिर में दर्शनार्थ भी जाते हैं।  
*बिठूर जाने वाले पर्यटक अब आई. आई. टी. कानपुर भी देखना चाहते हैं। शिक्षा का यह मन्दिर बिठूर से पहले पड़ता है। बहुत से पर्यटक गंगा विहार भी करते हैं। वे बिठूर से नाव के द्वारा ऐतिहासिक परमट स्थित आनन्देश्वर मन्दिर में दर्शनार्थ भी जाते हैं।  
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
* [http://www.up-tourism.com/destination/bithoor/bithoor.htm Uttar Pradesh Tourism]
* [http://www.up-tourism.com/destination/bithoor/bithoor.htm Uttar Pradesh Tourism]
 
==संबंधित लेख==
{{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
[[Category:स्वतन्त्रता_संग्राम_1857]]
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[[Category:उत्तर_प्रदेश_के_पर्यटन_स्थल]]
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Latest revision as of 11:08, 1 August 2017

[[चित्र:Main-Ghat-at-Bithoor.jpg|thumb|300px|बिठूर का मुख्य घाट, कानपुर]] बिठूर प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक स्थल है जो कानपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित है। यह स्थल महान् क्रांतिकारी तात्या टोपे, नाना राव पेशवा और रानी लक्ष्मीबाई जैसे क्रांतिकारियों की यादें अपने दामन में समेटे हुए है। यह ऐसा दर्शनीय स्थल है, जिसे ब्रह्मा, महर्षि वाल्मीकि, वीर बालक ध्रुव, माता सीता और लव कुश ने किसी न किसी रूप में अपनी कर्मस्थली बनाया। रमणीक दृश्यों से भरपूर यह जगह सदियों से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को लुभा रही है।

स्थिति

उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में औद्योगिक नगर कानपुर के पश्चिमोत्तर दिशा में 27 किमी दूर स्थित गंगा नदी के तट पर एक छोटा सा स्थान स्थित है। बिठूर में सन् 1857 में भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम का प्रारम्भ हुआ था। यह शहर उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर से 22 किलोमीटर दूर कन्नौज रोड़ पर स्थित है। लखनऊ से कानपुर की दूरी 80 किलोमीटर है और वहाँ से बिठूर 22 किलोमीटर है।

जनसंख्या

सन 2001 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या 9,647 है।

ऐतिहासिकता

पवित्र पावनी गंगा के किनारे बसा बिठूर का कण-कण नमन के योग्य है। यह दर्शनीय इसलिए है कि महाकाव्य काल से इसकी महिमा बरकरार है। यह महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि है। यह क्रांतिकारियों की वीरभूमि है। यहाँ महान् क्रांतिकारी तात्या टोपे ने क्रांति मचा दी थी। यहाँ नाना साहब पेशवा की यादें खण्डहरों के बीच बसती हैं। यही नहीं तपस्वी बालक ध्रुव और उसके पिता उत्तानपाद की राजधानी भी कभी यहीं पर थी। कहते हैं कि 'ध्रुव का टीला' ही उस समय ध्रुव के राज्य की राजधानी थी। आज राजधानी की झलक देखने को नहीं मिलती लेकिन ऐतिहासिकता की कहानी यहाँ के खण्डहर सुनाते हैं। कहने को यह कानपुर से साढ़े बाइस किलोमीटर दूर छोटा सा क़स्बा है, लेकिन यह कहना ग़लत न होगा कि इस कस्बे के कारण कानपुर पर्यटन के नक्शे पर महत्त्व पाता है। इसके किनारे से होकर गंगा कल-कल करती बहती है। सुरम्यता का आलम यह है कि जिधर निकल जाइए, मन मोहित हो जाता है। thumb|right|बिठूर

ब्रह्मावर्त हुआ बिठूर

किवदन्ती है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के उपलक्ष्य में यहाँ पर ब्रह्मेश्वर महादेव की स्थापना की। उन्होंने इस अवसर पर अश्वमेध यज्ञ भी किया और उसके स्मारक के रूप में एक नाल की स्थापना की जो ब्रह्मवर्त घाट पर आज भी विराजमान है। इसे ब्रह्मनाल या ब्रह्म की खूंटी भी कहते हैं क्योंकि महर्षि वाल्मीकि की यह तपोभूमि है, इसलिए इसका राम कथा से जुड़ाव स्वाभाविक है। धोबी के ताना मारने के बाद जब राजा राम ने सीता को राज्य से निकाला तो उन्हें यहाँ पर वाल्मीकि आश्रम में शरण मिली थी। यहीं पर उनके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ। यही नहीं जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उनके द्वारा छोड़े गए घोड़े को यहीं पर लव-कुश ने पकड़ा। ज़ाहिर है कि इस तरह यह भूमि प्रभु राम और माता सीता के आख़िरी मिलन की भूमि है। भगवान शंकर ने माँ पार्वती देवी को इस तीर्थस्थल का महात्म्य समझाते हुए कहा है-

ब्रह्मवर्तस्य माहात्म्यं भवत्यै कथितं महत्।
यदा कर्णन मात्रेण नरो न स्यात्स्नन्धयः।

श्रद्धालुओं की ऐसी मान्यता है कि कपिल मुनि ने गंगा सागर जाने से पूर्व यहाँ कपिलेश्वर की स्थापना की। यहाँ अष्टतीर्थ की महत्ता कभी विश्व विख्यात थी। जो श्रद्धालु आते वे अष्ट तीर्थ-

  1. ज्ञान तीर्थ,
  2. जानकी तीर्थ,
  3. लक्ष्मण तीर्थ,
  4. ध्रुव तीर्थ,
  5. शुक्र तीर्थ,
  6. राम तीर्थ,
  7. दशाश्वमेघ तीर्थ और
  8. गौचारण तीर्थ की परिक्रमा ज़रूर करते थे। हालांकि इनमें से अनेक तीर्थ अब स्मृतियों में ही बचे हैं लेकिन उनकी महिमा अब भी बरकरार है।

स्वतंत्रता संग्राम का केन्द्र

सन 1818 में अंतिम पेशवा बाजीराव अंग्रेज़ों से लोहा लेने का मन बनाकर बिठूर आ गए। नाना साहब पेशवा ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रांति का बिगुल इसी ज़मीन पर बजाया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का शैशवकाल यहीं बीता। इस ऐतिहासिक भूमि को तात्या टोपे जैसे क्रांतिकारियों ने अपने ख़ून से सींचकर उर्वर बनाया है। यहाँ क्रांतिकारियों की गौरव गाथाएँ आज भी पर्यटक सुनने आते हैं।

पेशवा बाजीराव का दरबार

1818 में अंग्रेज़ों द्वारा अपदस्थ किये जाने के बाद, मराठों के पेशवा बाजीराव ने अपना दरबार यहीं स्थापित किया था।

भारतीय विद्रोह में भाग लेने का दंड

1857 में बाजीराव के दत्तक पुत्र के भारतीय विद्रोह में भाग लेने पर प्रतिकार स्वरूप ब्रिटिश सेना ने इस नगर को ढहा दिया और मंदिर और महलों को नष्ट कर दिया।

हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ

thumb|250px|बिठूर नगर के ध्वंसावशेष हिंदुओं के लिये एक प्रमुख तीर्थ है।

घाटों का नगर

वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) की तरह बिठुर भी घाटों का नगर है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घाट भगवान ब्रह्मा को समर्पित है। घाट पर स्थित एक चरण चिह्न को भगवान ब्रह्मा का माना जाता है। कहा जाता है कि महाकाव्य रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने यहीं की थी और सीता ने यहाँ शरण ली थी व लव और कुश को जन्म दिया था।

नाना साहब का गृह क्षेत्र

बिठुर नाना साहब का गृह क्षेत्र है, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई थी। ये नाना राव और तात्या टोपे जैसे लोगों की धरती रही है।

रानी लक्ष्मीबाई का बचपन

रानी लक्ष्मीबाई ने अपना बचपन यहीं गुजारा था।

पर्यटन

  • यहाँ पेशवाओं के बनवाए अनेक दर्शनीए स्थल हैं।
  • नौका विहार के लिए गंगा के सुरम्य घाट हैं।
  • सबसे दर्शनीय घाट ब्रह्मावर्त घाट सचेंडी के राजा हिन्दू सिंह चन्देल ने बनवाया था, जिसका जीर्णोंद्वार बाजीराव पेशवा ने कराया।
  • राजा टिकैतराव का बनवाया घाट भी बहुत ही ख़ूबसूरत है। यह घाट पत्थरों से बना है। यहाँ पर्यटक घंटों बैठकर प्राकृतिक सुषमा को निहारते हैं।
  • अल्मास अली का बनवाया मक़बरा और लक्ष्मण घाट सहित यहाँ देखने के लिए दर्जन भर ऐतिहासिक मन्दिर हैं।
  • यहाँ पर उत्तर प्रदेश सरकार ने नाना राव पेशवा की स्मृति में एक सुन्दर स्मारक भी बनवाया है।
  • ध्रुव टीला, वाल्मीकि आश्रम, दीप मलिका स्तम्भ, अष्टतीर्थ, प्राचीन गणेश मन्दिर, साई मन्दिर और ब्रह्म जी की खूंटी प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से हैं।

उत्सव की धूम

  • वर्ष में यहाँ तीन मेले लगते हैं-
  1. कार्तिक पूर्णिमा,
  2. मकर संक्रांति और
  3. गंगा दशहरा जेठ सुदी दशमी को यहाँ मेले का आयोजन होता है। इसमें आसपास के ज़िलों से हज़ारों लोग आते हैं। इसमें देश-विदेश से पर्यटक भी आते हैं। इसके अलावा ज़िला प्रशासन की तरफ से बिठूर गंगा उत्सव का भी आयोजन कराया जाता है।

परिवहन

  • बिठूर जाने के लिए देश की राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ट्रेन सुविधा बहुत अच्छी है। श्रमशक्ति, कानपुर शताब्दी जैसी एक से एक ट्रेनें दिल्ली से कानपुर आती हैं। मुम्बई से उद्योग नगरी एक्सप्रेस कानपुर जाती है।
  • इसके अलावा हवाई सुविधा भी है। लखनऊ हवाई मार्ग या फिर ट्रेन मार्ग से आकर वहाँ से टैक्सी लेकर बिठूर जाया जा सकता है। अमौसी हवाई अड्डा, लखनऊ से सीधे कानपुर के लिए टैक्सियाँ मिल जाती हैं।
  • लखनऊ से कानपुर की दूरी 80 किलोमीटर है और वहाँ से बिठूर 22 किलोमीटर है। लखनऊ से कानपुर होते हुए बिठूर जाने का एक लाभ यह भी होगा कि आसपास के और ऐतिहासिक स्थल जैसे काकोरी स्मारक, प्रताप नारायण मिश्र की जन्मस्थली, नवाबगंज पक्षी विहार, जाजमऊ आदि का भी भ्रमण किया जा सकता है।
  • बिठूर जाने वाले पर्यटक अब आई. आई. टी. कानपुर भी देखना चाहते हैं। शिक्षा का यह मन्दिर बिठूर से पहले पड़ता है। बहुत से पर्यटक गंगा विहार भी करते हैं। वे बिठूर से नाव के द्वारा ऐतिहासिक परमट स्थित आनन्देश्वर मन्दिर में दर्शनार्थ भी जाते हैं।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख