अली अकबर ख़ाँ: Difference between revisions

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खाँ साहब ने कई शास्त्रीय जुगलबंदियों में भाग लिया। उसमें सबसे प्रसिद्ध जुगलबंदी उनके समकालीन विद्यार्थी एवं बहनोई सितार वादक [[रवि शंकर]] एवं [[निखिल बैनर्जी]] के साथ तथा वायलन वादक एल सुब्रह्मण्यम भारती जी के साथ है। [[विलायत ख़ाँ|विलायत ख़ान]] के साथ भी उनकी कुछ रिकार्डिंग उपलब्ध हैं। साथ ही उन्होंने कई पाश्चात्य संगीतकारों के साथ भी काम किया।
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==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
अली अकबर ख़ां को 1988 में [[भारत]] का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया गया। उनको इसके अलावा भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। [[1997]] में संयुक्त राज्य अमेरिका का कला के क्षेत्र में सबसे ऊँचा सम्मान नेशनल हैरिटेज फ़ेलोशिप दी गई। [[1991]] में उन्हें मैकआर्थर जीनियस ग्रांट से सम्मानित किया गया। अली अकबर ख़ां को [[1971]] में [[पद्म भूषण]] से भी सम्मानित किया गया था।
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==निधन==
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अली अकबर ख़ां का 87 वर्ष की उम्र में [[18 जून]] [[2009]] को सेन फ्रांसिस्को, [[अमेरिका|संयुक्त राज्य अमेरिका]] में निधन हो गया। वे लम्बे समय से किडनी (गुर्दा) की बीमारी से जूझ रहे थे।
अली अकबर ख़ां का 87 वर्ष की उम्र में [[18 जून]] [[2009]] को सेन फ्रांसिस्को, [[अमेरिका|संयुक्त राज्य अमेरिका]] में निधन हो गया। वे लम्बे समय से किडनी (गुर्दा) की बीमारी से जूझ रहे थे।
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Revision as of 05:19, 14 April 2018

अली अकबर ख़ाँ
पूरा नाम उस्ताद अली अकबर ख़ाँ
अन्य नाम ख़ाँ साहब
जन्म 14 अप्रैल, 1922
जन्म भूमि शिबपुर गाँव, भारत (अब बांग्लादेश)
मृत्यु 18 जून, 2009
मृत्यु स्थान कैलीफ़ोर्निया, अमेरिका
अभिभावक अलाउद्दीन ख़ाँ और मदीना बेगम
कर्म-क्षेत्र संगीतकार एवं सरोद वादक
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, पद्म विभूषण
विशेष योगदान अली अकबर ख़ाँ के संगीत की जड़ें भारतीय संगीत की हिंदुस्तानी (उत्तरी) परंपरा में जमी थीं।
संबंधित लेख अलाउद्दीन ख़ाँ, पन्नालाल घोष, शिवकुमार शर्मा
अन्य जानकारी अली अकबर ख़ाँ पश्चिमी श्रोताओं के समक्ष भारतीय संगीत प्रस्तुत करने में सक्रिय रहे थे।

उस्ताद अली अकबर ख़ाँ (अंग्रेज़ी: Ustad Ali Akbar Khan, जन्म: 14 अप्रैल, 1922 - मृत्यु: 18 जून, 2009) संगीतकार और सरोद वादक थे। उस्ताद ख़ाँ पश्चिमी श्रोताओं के समक्ष भारतीय संगीत प्रस्तुत करने में सक्रिय रहे। इनके संगीत की जड़ें भारतीय संगीत की हिंदुस्तानी (उत्तरी) परंपरा में जमी थीं। उन्हें भारत सरकार द्वारा 1971 में पद्म भूषण और 1988 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था और पिछले पाँच दशकों से उन्होंने दुनिया में भारतीय शास्त्रीय संगीत का झंडा बुलंद रखा था। भारतीय शास्त्रीय संगीत को पश्चिम में प्रतिष्ठित करने के क्षेत्र में उनका महान् योगदान था।

जीवन परिचय

अली अक़बर ख़ाँ का जन्म 14 अप्रैल 1922 को वर्तमान बांग्लादेश में स्थित कोमिला ज़िले के शिबपुर गाँव में "बाबा" अलाउद्दीन खाँ और मदीना बेगम के घर हुआ। इन्होंने अपनी गायन तथा वादन की शिक्षा अपने पिता से दो वर्ष की आयु में प्रारम्भ की। इन्होंने अपने चाचा, फ़कीर अफ़्ताबुद्दीन से तबला भी सीखा। उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ ने इन्हें कई अन्य वाद्यों मे भी पारंगत किया, पर अन्तत: निश्चय किया कि इन्हें सरोद पर ही ध्यान देना चाहिए। कई वर्षों के कठिन प्रशिक्षण के बाद इन्होने अपनी पहली प्रस्तुति लगभग 13 वर्ष की आयु में दी। 22 वर्ष की आयु में वे जोधपुर राज्य के दरबारी संगीतकार बन गए।

संगीत प्रशिक्षण

अली अकबर को उनके पिता संगीतकार अलाउद्दीन ख़ाँ ने प्रशिक्षित किया और 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने कार्यक्रम देना शुरू कर दिया। वह शीघ्र ही जोधपुर के महाराजा के दरबारी संगीतकार बन गए। 1955 के बाद वायलिन वादक यहूदी मेनुहिन द्वारा उन्हें न्यूयॉर्क के मॉडर्न आर्ट म्यूज़ियम में सरोद वादन का निमंत्रण दिए जाने के उपरांत उन्होंने पश्चिम में कई कार्यक्रम प्रस्तुत किए, जिनमें बहुधा वह अपने संगीतकार और सितार वादक बहनोई पं. रविशंकर के साथ जुगलबंदी करते थे। संगीतकार के रूप में अली अकबर को उनके फ़िल्म संगीत और कई रागों के रचयिता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) (1956) और मरीन काउंटी, कैलिफ़ोर्निया (1967) में संगीत विद्यालय स्थापित किए। इस सरोद वादक का परिवार अपनी वंशावली को मियां तानसेन से जोड़ता है, जो 16वीं सदी के महान् संगीतकार और शहंशाह अकबर के दरबारी संगीतज्ञ थे।

प्रसिद्धि

अली अक़बर ख़ाँ ने पूरे भारत में प्रस्तुतियां दीं, सराहे गये और भारतीय शास्त्रीय संगीत को व्यापक बनाने के लिये कई विश्व यात्रायें कीं। अमेरिका में टेलीविजन प्रस्तुति देने वाले पहले भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञ थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत के अध्यापन और प्रसार के लिये, 1956 में इन्होंने कोलकाता में अली अकबर संगीत महाविद्यालय की स्थापना की। दो साल बाद, बर्कले, कैलिफोर्निया (अमेरिका), में इसी नाम से एक और विद्यालय की नींव रखी, 1968 में यह विद्यालय अपने वर्तमान स्थान सान रफ़ेल, कैलिफोर्निया, कैलिफोर्निया आ गए। सान रफ़ेल स्कूल की स्थापना के साथ ही अली अकबर खां, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में ही बस गए थे, यद्यपि यात्राएं करते रहे। फिर भी अस्वस्थता के कारण कम हो गया था। 1985 में, इन्होंने अली अकबर महाविद्यालय की एक और शाखा बेसिल, स्विट्ज़रलैंड में स्थापित की थी। वे अल्प समय में ही एक राग का स्वरूप प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे, जिसके कारण पिछले दशक में 78 आरपीएम के छोटे रिकार्डों पर वे छाए रहे। उनकी लंबी मंच प्रस्तुतियाँ सामान्यत: शांत एवं सरल संगीत के आलाप और जोड़ से शुरु होकर द्रुत गत और झाले की तरफ जाती हैं, जो सीनिया बीनकार शैली का विशेषता थी। साथ ही वे दो वाद्य यंत्रों के बीच होने वाले "सवाल जवाब" को प्रस्तुत करने वाले संगीतज्ञों का बेहतरीन उदाहरण हैं।

जुगलबंदी

खाँ साहब ने कई शास्त्रीय जुगलबंदियों में भाग लिया। उसमें सबसे प्रसिद्ध जुगलबंदी उनके समकालीन विद्यार्थी एवं बहनोई सितार वादक रवि शंकर एवं निखिल बैनर्जी के साथ तथा वायलन वादक एल सुब्रह्मण्यम भारती जी के साथ है। विलायत ख़ान के साथ भी उनकी कुछ रिकार्डिंग उपलब्ध हैं। साथ ही उन्होंने कई पाश्चात्य संगीतकारों के साथ भी काम किया।

सम्मान और पुरस्कार

अली अकबर ख़ां को 1988 में भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उनको इसके अलावा भी कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 1997 में संयुक्त राज्य अमेरिका का कला के क्षेत्र में सबसे ऊँचा सम्मान नेशनल हैरिटेज फ़ेलोशिप दी गई। 1991 में उन्हें मैकआर्थर जीनियस ग्रांट से सम्मानित किया गया। अली अकबर ख़ां को 1971 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।

निधन

अली अकबर ख़ां का 87 वर्ष की उम्र में 18 जून 2009 को सेन फ्रांसिस्को, संयुक्त राज्य अमेरिका में निधन हो गया। वे लम्बे समय से किडनी (गुर्दा) की बीमारी से जूझ रहे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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संबंधित लेख