संकटहरणी देवी मंदिर: Difference between revisions
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Revision as of 15:46, 25 May 2013
संकटहरणी देवी मंदिर
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विवरण | इस मंदिर का उल्लेख मारकंडेय पुराण में मिलता है। |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | प्रतापगढ़ ज़िला |
अन्य जानकारी | हर सोमवार को मंदिर प्रांगण में मेला का आयोजन होता है। नवरात्र में माता रानी के दर्शन हेतु भक्तो का जनसैलाब उमड़ता है। |
thumb|250px|संकटहरणी देवी मंदिर
संकटहरणी देवी मंदिर यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद में पौराणिक सकरनी नदी के तट पर मोहनगंज के परभइतामऊ गांव स्थित है। मान्यताओं के अनुसार संकटहरणी मां अपने भक्तों का संकट हरती हैं।
स्थिती
प्रतापगढ़-रायबरेली मार्ग पर विक्रमपुर मोड़ से दक्षिणी दिशा में सकरनी नदी के तट पर मां संकटहरणी का धाम है।
पौराणिक कथा
मारकंडेय पुराण के अनुसार रानी मदालसा के चारों पुत्र वीरबाहु, सुबाहु, भद्रबाहु और अलर्कराज पांचों सिद्ध में रहते थे। रानी मदालसा पति राजा रितुराज के मरने की सूचना पर यहीं सती हो गईं। बाद में उसी स्थल पर नीम का पेड़ उगा। लोग पेड़ की पूजा-अर्चना करने लगे। धीरे-धीरे उस स्थल पर मां का भव्य मंदिर बन गया है। मदालसा के बड़े लड़के वीरबाहु के नाम से विक्रमपुर गांव का नाम पड़ा। राजा रितुराज की शादी में मदद करने वाली कुन्डला के नाम से कुण्डवा गांव भी है।
विशेष तिथि
संकटहरणी धाम में हर सोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। नवरात्र को लोग जलाभिषेक करने के साथ ही हलवा पूड़ी चढ़ाते हैं।
[1] के अनुसार विशालाक्षी नौ गौरियों में पंचम हैं तथा भगवान् श्री काशी विश्वनाथ उनके मंदिर के समीप ही विश्राम करते हैं।
- विशालाक्ष्या महासौधे मम विश्राम भूमिका। तत्र संसृति खित्तान्नां विश्रामं श्राणयाम्यहम्॥[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ काशी खण्ड
- ↑ स्कंद पुराण, काशीखण्ड, 79/77
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