नामधारी सिक्ख संप्रदाय

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

नामधारी सिक्ख संप्रदाय की स्थापना बालक सिंह (1799-1862) ने की थी, जो भगवान के नाम के जाप के अलावा किसी भी अन्य धार्मिक अनुष्ठान में विश्वास नहीं करते थे।[1] नामधारी संप्रदाय को 'कूका' भी कहा जाता है। भारत के सिक्ख धर्म में यह एक अति संयमी संप्रदाय है।

  • बालक सिंह के उत्तराधिकारी राम सिंह (1816-1885) थे, जिन्होंने संप्रदाय की पगड़ी बांधने की विशेष शैली[2], केवल हाथ से बुने सफ़ेद कपड़े के वस्त्र पहनने तथा भजनों के उन्मत उच्चारण, जो चीख़ों[3] में बदल जाए, की शुरुआत की।
  • राम सिंह के नेतृत्व में नामधारियों ने पंजाब में सिक्ख राज्य की पुनर्स्थापना का प्रयास किया।
  • जनवरी, 1872 में अंग्रेज़ों के साथ नामधारियों की एक मुठभेड़ हुई, जिसके बाद 66 नामधारी पकड़े गए तथा उन्हें तोप के मुँह से बांधकर उड़ा दिया गया।
  • राम सिंह को क़ैद करके रंगून[4]निर्वासित कर दिया गया, जहाँ 1885 में उनकी मृत्यु हो गई।
  • नामधारियों के अपने गुरुद्वारे[5] होते हैं, और वे अपने संप्रदाय से बाहर विवाह नहीं करते।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसी कारण इस संप्रदाय के सदस्य 'नामधारी' कहे जाते हैं।
  2. माथे पर तिरछे के बजाय सीधी बांधी जाती है
  3. कूक, इसलिए कूका नाम
  4. वर्तमान यांगून
  5. पूजाघर

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः