Difference between revisions of "भट्टोजिदीक्षित"

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'''भट्टोजिदीक्षित''' एक असाधारण प्रतिभा के व्यक्ति थे। ये चतुर्मुखी प्रतिभाशाली सुप्रसिद्ध वैयाकरण थे। सिद्धान्तकौमुदी, प्रौढ़मनोरमा, शब्दकौस्तुभ आदि कृतियाँ इनके द्वारा रचित है जो दिगन्तव्यापिनी कीर्तिकौमुदी का विस्तार करने वाली हैं। आचार्य अप्पय दीक्षित के [[वेदांत|वेदान्त शास्त्र]] में ये शिष्य थे। और कृष्ण दीक्षित 'प्रक्रियाप्रकाश' के रचयिता इनके [[व्याकरण]] के गुरु थे। भट्टोजिदीक्षित ने वेदान्त के साथ-साथ ही धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, उपासना आदि पर भी मर्मस्पर्शी ग्रन्थों की रचना की है। एक बार इन्होंने पण्डितराज जगन्नाथ को शास्त्रार्थ के समय म्लेच्छ कह दिया था। जिससे पण्डितराज का इनके प्रति स्थायी वैमनस्य हो गया और उन्होंने 'मनोरमा' का खण्डन करने के लिए 'मनोरमा-कुचमर्दिनी' नामक टीकाग्रन्थ की रचना की। पंडितराज उनके गुरु पुत्र शेष वीरेश्वर दीक्षित के पुत्र थे।
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*भट्टोजिदीक्षित चतुर्मुखी प्रतिभाशाली सुप्रसिद्ध वैयाकरण थे।  
==ग्रंथों की रचना==
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*इनके द्वारा रचित की गई सिद्धान्तकौमुदी, प्रौढ़मनोरमा, शब्दकौस्तुभ आदि कृतियाँ दिगन्तव्यापिनी कीर्तिकौमुदी का विस्तार करने वाली हैं।  
'वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी' और 'प्रौढ़मनोरमा' भट्टोजिदीक्षित के रचे हुए ग्रन्थों में बहुत प्रसिद्ध हैं। सिद्धान्तकौमुदी पाणिनीय सूत्रों की वृत्ति है और मनोरमा उसकी व्याख्या है। भट्टोजिदीक्षित ने पातंजल महाभाष्य के विषयों का युक्तिपूर्वक समर्थन किया है जो इनके तीसरे ग्रन्थ 'शब्दकौस्तुभ' में है। इनका चौथा ग्रन्थ वैयाकरणभूषण है। इसका प्रतिपाद्य विषय भी शब्दव्यापार है। '[[तत्त्वकौस्तुभ]]' और 'वेदान्ततत्त्वविवेक टीकाविवरण' नामक दो वेदान्त ग्रन्थ भी इनके अतिरिक्त रचे गये थे। '[[तत्त्वकौस्तुभ]]' और 'वेदान्ततत्त्वविवेक टीकाविवरण' इन दोनों में से केवल तत्त्वकौस्तुभ ही प्रकाशित हुआ है। इसमें [[द्वैतवाद]] का खण्डन किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि शेष कृष्ण दीक्षित से अध्ययन के नाते मानसकार तुलसीदास इनके गुरुभाई थे। इन्होंने [[राम]]-[[कृष्ण]] के चरित्र से ही व्याकरण के सहस्रों उदाहरण निर्मित किये हैं। वे शुष्क वैयाकरण के साथ ही सरस भगवदभक्त भी थे।
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*[[वेदांत|वेदान्त शास्त्र]] में ये आचार्य अप्पय दीक्षित के शिष्य थे।  
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*इनके [[व्याकरण]] के गुरु 'प्रक्रियाप्रकाश' के रचयिता कृष्ण दीक्षित थे।  
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*भट्टोजिदीक्षित की प्रतिभा असाधारण थी। इन्होंने वेदान्त के साथ ही धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, उपासना आदि पर भी मर्मस्पर्शी ग्रन्थों की रचना की है।  
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*एक बार शास्त्रार्थ के समय उन्होंने पण्डितराज जगन्नाथ को म्लेच्छ कह दिया था। इससे पण्डितराज का इनके प्रति स्थायी वैमनस्य हो गया और उन्होंने 'मनोरमा' का खण्डन करने के लिए 'मनोरमा-कुचमर्दिनी' नामक टीकाग्रन्थ की रचना की। पंडितराज उनके गुरुपुत्र शेष वीरेश्वर दीक्षित के पुत्र थे।
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*भट्टोजिदीक्षित के रचे हुए ग्रन्थों में 'वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी' और 'प्रौढ़मनोरमा' अति प्रसिद्ध हैं। सिद्धान्तकौमुदी पाणिनीय सूत्रों की वृत्ति है और मनोरमा उसकी व्याख्या।
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*तीसरे ग्रन्थ 'शब्दकौस्तुभ' में इन्होंने पातज्जल महाभाष्य के विषयों का युक्तिपूर्वक समर्थन किया है।  
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*चौथा ग्रन्थ वैयाकरणभूषण है। इसका प्रतिपाद्य विषय भी शब्दव्यापार है।  
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*इनके अतिरिक्त उन्होंने '[[तत्त्वकौस्तुभ]]' और 'वेदान्ततत्त्वविवेक टीकाविवरण' नामक दो वेदान्त ग्रन्थ भी रचे थे। इनमें से केवल तत्त्वकौस्तुभ प्रकाशित हुआ है। इसमें [[द्वैतवाद]] का खण्डन किया गया है।  
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*कहा जाता है कि शेष कृष्ण दीक्षित से अध्ययन के नाते मानसकार तुलसीदास इनके गुरुभाई थे।  
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*भट्टोजि शुष्क वैयाकरण के साथ ही सरस भगवदभक्त भी थे।
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*व्याकरण के सहस्रों उदाहरण इन्होंने [[राम]]-[[कृष्ण]] के चरित्र से ही निर्मित किये हैं।
  
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Latest revision as of 10:52, 30 December 2011

  • bhattojidikshit chaturmukhi pratibhashali suprasiddh vaiyakaran the.
  • inake dvara rachit ki gee siddhantakaumudi, praudhamanorama, shabdakaustubh adi kritiyaan digantavyapini kirtikaumudi ka vistar karane vali haian.
  • vedant shastr mean ye achary appay dikshit ke shishy the.
  • inake vyakaran ke guru 'prakriyaprakash' ke rachayita krishna dikshit the.
  • bhattojidikshit ki pratibha asadharan thi. inhoanne vedant ke sath hi dharmashastr, nitishastr, upasana adi par bhi marmasparshi granthoan ki rachana ki hai.
  • ek bar shastrarth ke samay unhoanne panditaraj jagannath ko mlechchh kah diya tha. isase panditaraj ka inake prati sthayi vaimanasy ho gaya aur unhoanne 'manorama' ka khandan karane ke lie 'manorama-kuchamardini' namak tikagranth ki rachana ki. panditaraj unake guruputr shesh vireshvar dikshit ke putr the.
  • bhattojidikshit ke rache hue granthoan mean 'vaiyakaranasiddhantakaumudi' aur 'praudhamanorama' ati prasiddh haian. siddhantakaumudi paniniy sootroan ki vritti hai aur manorama usaki vyakhya.
  • tisare granth 'shabdakaustubh' mean inhoanne patajjal mahabhashy ke vishayoan ka yuktipoorvak samarthan kiya hai.
  • chautha granth vaiyakaranabhooshan hai. isaka pratipady vishay bhi shabdavyapar hai.
  • inake atirikt unhoanne 'tattvakaustubh' aur 'vedantatattvavivek tikavivaran' namak do vedant granth bhi rache the. inamean se keval tattvakaustubh prakashit hua hai. isamean dvaitavad ka khandan kiya gaya hai.
  • kaha jata hai ki shesh krishna dikshit se adhyayan ke nate manasakar tulasidas inake gurubhaee the.
  • bhattoji shushk vaiyakaran ke sath hi saras bhagavadabhakt bhi the.
  • vyakaran ke sahasroan udaharan inhoanne ram-krishna ke charitr se hi nirmit kiye haian.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh