राधाष्टमी: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[चित्र:Radha-Ashtami-1.jpg|राधाष्टमी, [[राधा]] जी का मंदिर, [[बरसाना]]<br />Radha Ashtami, Radha Ji Temple, Barsana|thumb|250px]] | [[चित्र:Radha-Ashtami-1.jpg|राधाष्टमी, [[राधा]] जी का मंदिर, [[बरसाना]]<br />Radha Ashtami, Radha Ji Temple, Barsana|thumb|250px]] | ||
*यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। | *यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। |
Revision as of 10:52, 20 May 2010
[[चित्र:Radha-Ashtami-1.jpg|राधाष्टमी, राधा जी का मंदिर, बरसाना
Radha Ashtami, Radha Ji Temple, Barsana|thumb|250px]]
- यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को किया जाता है।
- इस दिन राधा जी का जन्म हुआ था।
- श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पन्द्रह दिन बाद अष्टमी को ही राधा जी का जन्मदिन मनाया जाता हैं।
- इस दिन राधा जी का विशेष पूजन और व्रत किया जाता है।
- सर्वप्रथम राधा जी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर उनका श्रृंगार करें। स्नानादि से शरीर शुद्ध करके मण्डप के भीतर मण्डल बनाकर उसके बीच में मिट्टी या तांबे का शुद्ध बर्तन रखकर उस पर दो वस्त्रों से ढकी हुई राधा जी की स्वर्ण या किसी अन्य धातु की बनी हुई सुंदर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद मध्याह्न के समय श्रद्धा, भक्तिपूर्वक राधा जी की पूजा करनी चाहिए। भोग लगाकर धूप, दीप, पुष्प आदि से राधा जी की आरती उतारनी चाहिए। यदि संभव हो तो उस दिन उपवास करना चाहिए। फिर दूसरे दिन सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराकर और मूर्ति को दान करने का बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। इस प्रकार इस व्रत की समाप्ति करें।
- इस प्रकार विधिपूर्वक व श्रद्धा से यह व्रत करने पर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है व इस लोक और परलोक के सुख भोगता है। मनुष्य ब्रज का रहस्य जान लेता है तथा राधा परिकरों {परिवार के सदस्य की तरह} में निवास करता है।