एसिटिक अम्ल: Difference between revisions

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ऐसीटिक अम्ल CH3 COOH फलों के रस, जंतुओं के मलमूत्र, क्रोटन तेल, सुगंधित तेलों तथा पौधों के रस में एस्टर तथा लवण के रूप में पाया जाता है।

बनाने की विधियाँ –(1) एथिल ऐलकोहल के आक्सीकरण से, (2) मेथिल सायनाइड के जलविश्लेषण से, (3) सोडियम में थोक्साइड पर 8 वायुमंडल दाब तथा 220रू सें. ताप पर कार्बन मोनोक्साइड की क्रिया से, (4) टंग्स्टन की उपस्थिति में 300-400रू सें. ताप पर मेथिल ऐलकोहल के वाष्प और कार्बन मॉनोक्साइड के संयोजन से, (5) मेथिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड के ईथरीय विलयन में कार्बन डाइ-आक्साइड प्रवाहित करने पर प्राप्त पदार्थ के अम्ल द्वारा जलविश्लेषण से, (6) मैलोनिक अम्ल को गरम करने से, (7) एथिल ऐसीटेट के जलविश्लेषण से, तथा (8) सोडियम मेथाइड (CH3NA) पर कार्बन डाइ आक्साइड की क्रिया से ऐसीटिक अम्ल प्राप्त होते हैं।

बड़ी मात्रा में इसे (1) 40% गरम सल्फ़्यूरिक अम्ल में, 1% मर्क्यूरिक सल्फ़ेट की उपस्थिति में, ऐसीटिलीन प्रवाहित कर प्राप्त ऐसी टैलडीहाइड के 70° पर मैंगैनस ऐसीटेट द्वारा आक्सीकरण से तथा (2) पाइरोलिग्नियस अम्ल के वाष्प को गरम चूने के जल में से प्रवाहित करने पर प्राप्त कैल्सियम ऐसीटेट को 250° तक गरम करने के पश्चात्‌ सांद्र सल्फ़्यूरिक अम्ल द्वारा विघटन से बनाते हैं। अजल अम्ल बनाने के लिए अम्ल को सोडियम कार्बोनेट से उदासीन कर तथा सोडियम ऐसीटेट को पिघलाकर सांद्र सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ आसवन करते हैं।

सिरके (6-10% ऐसीटिक अम्ल) के रूप में, इसे भारत में गन्ने के रस के वायु में किण्वन से, या, अन्य देशों में वर्ट के माइकोडर्मा ऐसीटी नामक जीवाणु द्वारा आक्सीकरण से, या 6-10% जलीय ऐलकोहल के ऐसीटोबैक्टर ऐसीटी या ए. पास्टूरिआनम नामक जीवाणु ्झ्रकॉम्पटु.रेंङ लैब. कार्ल्सबर्ग, 1894 (3); 1900 (5) ट द्वारा किण्वन से बनाते हैं। किण्वीकृत द्रव में दाब से वायु प्रवाहित करने पर फ़ाउलर तथा सुब्रह्मण्यन (ज.इंङि केमि. सो. 1923, 6,146) के अनुसार अम्ल की प्राप्ति बढ़ती हैं।

भौतिक गुण –ऐसीटिक अम्ल एक तीव्र गंधवाला, रंगहीन, क्षयकारक (गलनांक 16.6° सें., क्वथनांक 118.5° सें., आपेक्षिक घनत्व 20° पर 1.04922) जल, ऐलकोहल या ईथर में मिश्र्य द्रव है। यह वाष्प रूप में द्विलक (क़्त््थ्रड्ढद्ध) रूप में रहता है। इसमें गंधक, फ़ास्फ़ोरस तथा आयोडीन विलेय हैं। इसके सामान्य लवण जल में विलेय हैं, किंतु भास्मिक लवण विशेषकर अविलेय हैं। यह धातुओं तथा कार्बोनेट पर क्रिया करता है। आक्सीकारक पदार्थो के प्रति यह स्थिर हैं।

रासायनिक गुण –यह भास्मिक अम्ल है और कास्टिक सोडा के साथ सोडियम ऐसीटेट (क्क्त3 क्ग्र्ग्र्ग़्ॠ 3क्त2ग्र्), लेड आक्साइड के साथ लेड ऐसीटेट तथा ज़िंक के साथ ज़िंक ऐसीटेट बनाता है। यह एथिल ऐलकोहल की क्रिया से एथिल ऐसीटेट (क्क्त3 क्ग्र्ग्र्क्2 क्त5) फ़ासफ़ोरस पेंटाक्लोराइड की क्रिया से ऐसीटिल क्लोराइड (क्क्त3 क्ग्र्ग्र्क्2 क्त5) फ़ासफ़रस पेंटॉअक्साइड की क्रिया से ऐसीटिक ऐनहाइड्राइउ (क्क्त3 क्ग्र्)2ग्र् अमोनिया की क्रिया से अमोनियम ऐसीटेट तथा ऐसीटैमाइड (क्क्त3 क्ग्र्ग़्क्त2) और क्लोरीन की क्रिया से मोनोक्लोरो ऐसीटिक अम्ल (क्क्त2 क्थ्क्ग्र्ग्र्क्त), डाइक्लोरोऐसीटिक अम्ल (क्क्तक्थ्2 क्ग्र्ग्र्क्त) तथा ट्राइक्लोरो ऐसीटिक अम्ल (क्क्क्ष्3 क्ग्र्ग्र्क्त) बनाता है। सोडियम या पोटैसियम ऐसीटेट के विद्युद्विश्लेषण से एथेन तथा सोडालाइम के साथ गरम करने से मेथेन, कैल्सियम ऐसीटेट के शुष्क आसवन से ऐसीटोन (क्क्त3 ग्र्क्क्त3) तथा कैल्सियम ऐसीटेट और कैल्सियम फार्मेट के मिश्रण के शुष्क आसवन से ऐसीटैलडीहाइड (क्क्त3 क्क्तग्र्) बनते हैं।

उपयोग –ऐसीटिक अम्ल कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थो का विलयन करने के लिए, आक्सीकरण विधि में, अभिकर्मक के रूप में, अचार तथा मुरब्बे के लिए सिरके के रूप में, रबर के स्कंदन के लिए तथा ऐसीटोन बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। इसके लवण, आयरन, ऐल्यूमिनियम तथा क्रोमियम ऐसीटेटों को रँगाई में रंगों के स्थापक के रूप में, ऐल्यूमिनियम तथा सामान्य लेड ऐसीटेटों को औषध के लिए, भास्मिक लेड ऐसीटेट को हड्डी टूटने में उपचार के लिए और लेड टेट्राऐसीटेट को हाइड्रोजन आयन से हाइड्राक्सिलमूलक में परिवर्तन करने के लिए, काम में लाए जाते हैं। इसके मीठी सुगंधवाले एस्टर, जैसे ऐमिल ऐसीटेट, शर्बत तथा रस को सुगंधित बनाने तथा लैकर वार्निश तैयार करने में और सेल्यूलोस ऐसीटेट कृत्रिम रेशम (रेयन) तथा अज्वलनशील सिनेमा फिल्म बनाने में प्रयुक्त होते हैं।

परीक्षण –ऐसीटिक अम्ल, (1) ऐसीटेट पर तनु या सांद्र सल्फ़्यूरिक अम्ल की क्रिया से प्राप्त ऐसीटिक अम्ल में सिरके की गंध से, (2) ऐसीटेट को एथिल ऐलकोहल तथा सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ गरम करने पर फलों को मीठी सुगंधवाले एथिल ऐसीटेट के बनने से तथा (3) ऐसीटेट के उदासीन विलयन में फ़ेरिक ऐसीटेट का भूरा अवक्षेप बनने से, पहचाना जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 288 |

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