उत्प्रेरण

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उत्प्रेरण (अंग्रेज़ी: Catalysis) से तात्पर्य है कि "जब किसी रासायनिक अभिक्रिया की गति किसी पदार्थ की उपस्थिति मात्र से बढ़ जाती है तो इसे 'उत्प्रेरण' कहते हैं।" जबकि अभिक्रिया की गति बढ़ाने वाले पदार्थ को 'उत्प्रेरक' (catalyst) कहते हैं। औद्योगिक रूप से महत्त्वपूर्ण रसायनों के निर्माण में उत्प्रेरकों की बहुत बड़ी भूमिका है, क्योंकि इनके प्रयोग से अभिक्रिया की गति बढ़ जाती है, जिससे अनेक प्रकार से आर्थिक लाभ होता है और उत्पादन भी अधिक तेज़ी से हो पाता है।

उत्प्रेरण के प्रकार

सभी उत्प्रेरित क्रियाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. समावयवी उत्प्रेरित क्रियाएँ (समावयवी उत्प्रेरण)
  2. विषमावयवी उत्प्रेरित क्रियाएँ (विषमावयवी उत्प्रेरण)

समावयवी उत्प्रेरण

इस प्रकार की क्रियाओं में उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक तथा प्रतिफल सभी एक ही अवस्था में उपस्थित होते हैं। जैसे- सल्फ़्यूरिक अम्ल बनाने की वेश्म विधि में सल्फर डाइऑक्साइड, भाप तथा ऑक्सीजन के संयोग से सल्फ़्यूरिक अम्ल बनता है तथा नाइट्रिक ऑक्साइड द्वारा यह क्रिया उत्प्रेरित होती है। इस क्रिया में प्रतिकर्मक, उत्प्रेरक तथा प्रतिफल इसी गैसीय अवस्था में रहते हैं।

विषमावयवी उत्प्रेरण

इस प्रकार की क्रियाओं में उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक तथा प्रतिफल विभिन्न अवस्थाओं में उपस्थित रहते हैं। जैसे- अमोनिया बनाने की हाबर-विधि में नाइट्रोजन तथा हाइड्रोजन की संयोग क्रिया को फ़ेरिक ऑक्साइड उत्प्रेरित करता है। सूक्ष्म निकिल की उपस्थिति में वानस्पतिक तेलों का हाइड्रोजनीकरण इस प्रकार की क्रियाओं का एक अन्य उदाहरण है।


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