थैलियम: Difference between revisions

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अनेक पायराइट अयस्कों में थैलियम न्यून मात्रा में वर्तमान रहता है। केवल क्रुसाइट नामक अयस्क में यह 17% मात्रा में उपस्थित रहता है। सामान्यत: यह कुछ अयस्कों की चिमनी धूल, या सल्फ्यूरिक अम्ल बनते समय प्रकोष्ठ कीच, से निकाला जाता है। कीच को उबलते जल से उपचारित करने पर थैलियम सल्फेट का विलयन बन जाता है, जिसे छानकर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा क्लोराइड में परिवर्तित करते हैं। क्लोराइड को फिर सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा सल्फेट में परिणत करने से अन्य अपद्रव्य दूर हो जाते हैं। उबलते जल की क्रिया से केवल थैलियम सल्फेट ही घुलता है। विलयन के विद्युद्विश्लेषण अथवा यशद धातु की प्रक्रिया द्वारा थैलियम धातु मिलती है।  
अनेक पायराइट अयस्कों में थैलियम न्यून मात्रा में वर्तमान रहता है। केवल क्रुसाइट नामक अयस्क में यह 17% मात्रा में उपस्थित रहता है। सामान्यत: यह कुछ अयस्कों की चिमनी धूल, या सल्फ्यूरिक अम्ल बनते समय प्रकोष्ठ कीच, से निकाला जाता है। कीच को उबलते जल से उपचारित करने पर थैलियम सल्फेट का विलयन बन जाता है, जिसे छानकर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा क्लोराइड में परिवर्तित करते हैं। क्लोराइड को फिर सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा सल्फेट में परिणत करने से अन्य अपद्रव्य दूर हो जाते हैं। उबलते जल की क्रिया से केवल थैलियम सल्फेट ही घुलता है। विलयन के विद्युद्विश्लेषण अथवा यशद धातु की प्रक्रिया द्वारा थैलियम धातु मिलती है।  


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thumb|थैलियम थैलियम आवर्त सारणी के तृतीय मुख्य समूह का अंतिम तत्व है। थैलियम के दो स्थिर समस्थानिक प्राप्त हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 203 एवं 205 हैं। इसके अतिरिक्त इसके नौ अस्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं। इनकी द्रव्यमान संख्याएँ 199, 200, 202, 204, 206, 207, 208, 209 और 210 हैं। इनमें कुछ रेडियधर्मी अयस्कों में मिलते हैं और कुछ कृत्रिम साधनों द्वारा उपलब्ध हैं। इस तत्व की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक विलियम क्रुक्स ने 1861 ई. में एक विशेष सेलेनियम युक्त पायराइट में वर्णक्रममापी उपकरण द्वारा की थी। उन्होंने भूर्जित अयस्क की धूल के वर्णक्रममापी निरीक्षण में एक हल्के हरे रंग की रेखा देखी, जिसके कारण इस तत्व का नाम थैलियम रखा। इस तत्व को लैमी ने सर्वप्रथम पृथक्‌ कर इसके गुण धर्म का निरीक्षण किया।

अनेक पायराइट अयस्कों में थैलियम न्यून मात्रा में वर्तमान रहता है। केवल क्रुसाइट नामक अयस्क में यह 17% मात्रा में उपस्थित रहता है। सामान्यत: यह कुछ अयस्कों की चिमनी धूल, या सल्फ्यूरिक अम्ल बनते समय प्रकोष्ठ कीच, से निकाला जाता है। कीच को उबलते जल से उपचारित करने पर थैलियम सल्फेट का विलयन बन जाता है, जिसे छानकर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा क्लोराइड में परिवर्तित करते हैं। क्लोराइड को फिर सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा सल्फेट में परिणत करने से अन्य अपद्रव्य दूर हो जाते हैं। उबलते जल की क्रिया से केवल थैलियम सल्फेट ही घुलता है। विलयन के विद्युद्विश्लेषण अथवा यशद धातु की प्रक्रिया द्वारा थैलियम धातु मिलती है।


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