पंचमकार: Difference between revisions

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Revision as of 13:59, 7 July 2016

पंचमकार तांत्रिकों के प्राणस्वरूप हैं। वाम मार्ग के अनुसार मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन, ये पंचमकार कहे गए हैं। तंत्रशास्त्र में पंचमकारों का अर्थ एवं उनके दान के फल आदि का विस्तृत वर्णन पाया जाता है। इनके बिना साधक को किसी भी कार्य का अधिकार नहीं है।

  • मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा एवं मैथुन नामक पंचमकारों से जगदम्बिका की पूजा जी जाती है।
  • इन पंचमकारों के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता है।
  • तत्त्वविद पण्डित गण इससे रहित कर्म की निन्दा करते हैं।

पंचमकार का फल महानिर्वाणतंत्र के ग्यारहवें पटल में इस प्रकार है-

"मद्यपान करने से अष्टैश्वर्य और परामुक्ति तथा मांस के भक्षण से साक्षात नारायणत्व का लाभ होता है। मत्स्य भक्षण करते ही काली का दर्शन होता है। मुद्रा के सेवन से विष्णु रूप प्राप्त होता है। मैथुन द्वारा साधक शिव के तुल्य होता है, इसमें संशय नहीं। वस्तुत: पंचमकार मूलत: मानसिक वृत्तियों के संकेतात्मक प्रतीक थे, पीछे अपने शब्दार्थ के भ्रम से ये विकृत हो गये। तंत्रों की कुख्याति का मुख्य कारण ये स्थूल पंचमकार ही हैं।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 381 |


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