पापमोचनी एकादशी: Difference between revisions

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प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक अति रमणीक वन था।इस वन में [[च्यवन]] ॠषि के पुत्र मेधावी नामक नामक ॠषि तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज [[इंद्र]] गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं तथा देवताओं सहित स्वच्छन्द विहार करते थे। ॠषि शिव भक्त तथा अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी। एक समय की बात है कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या को भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य-गान और हाव-भाव से ॠषि का ध्यान भंग किया। अप्सरा के हाव-भाव और नृत्य गान से ॠषि उस पर मोहित हो गए। दोनों ने अनेक वर्ष साथ-साथ गुजारे। एक दिन जब मंजुघोषा ने जाने के लिए आज्ञा माँगी तो ॠषि को आत्मज्ञान हुआ। उन्होंने समय की गणना की तो 57 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। ॠषि को अपनी तपस्या भंग होने का भान हुआ। उन्होंने अपने को रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण मंजुघोषा को समझकर, क्रोधित होकर उसे पिशाचनी होने का शाप दिया। शाप सुनकर मंजुघोषा काँपने लगी और ॠषि के चरणों में गिर पड़ी। काँपते हुए उसने मुक्ति का उपाय पूछा। बहुत अनुनय-विनय करने पर ॠषि का ह्रदय पसीज गया। उन्होंने कहा-'यदि तुम चैत्र कृष्ण पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तो इसके करने से तुम्हारे पाप और शाप समाप्त हो जाएंगे और तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी।' मंजुघोषा को मुक्ति का विधान बताकर मेधावी ॠषि अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुँचे। शाप की बात सुनकर च्यवन ॠषि ने कहा-'पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया। शाप देकर स्वयं भी पाप कमाया है। अत: तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके मंजुघोषा ने शाप से तथा ॠषि मेधावी ने पाप से मुक्ति पाई।
प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक अति रमणीक वन था।इस वन में [[च्यवन]] ॠषि के पुत्र मेधावी नामक नामक ॠषि तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज [[इंद्र]] गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं तथा देवताओं सहित स्वच्छन्द विहार करते थे। ॠषि शिव भक्त तथा अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी। एक समय की बात है कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या को भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य-गान और हाव-भाव से ॠषि का ध्यान भंग किया। अप्सरा के हाव-भाव और नृत्य गान से ॠषि उस पर मोहित हो गए। दोनों ने अनेक वर्ष साथ-साथ गुजारे। एक दिन जब मंजुघोषा ने जाने के लिए आज्ञा माँगी तो ॠषि को आत्मज्ञान हुआ। उन्होंने समय की गणना की तो 57 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। ॠषि को अपनी तपस्या भंग होने का भान हुआ। उन्होंने अपने को रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण मंजुघोषा को समझकर, क्रोधित होकर उसे पिशाचनी होने का शाप दिया। शाप सुनकर मंजुघोषा काँपने लगी और ॠषि के चरणों में गिर पड़ी। काँपते हुए उसने मुक्ति का उपाय पूछा। बहुत अनुनय-विनय करने पर ॠषि का ह्रदय पसीज गया। उन्होंने कहा-'यदि तुम चैत्र कृष्ण पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तो इसके करने से तुम्हारे पाप और शाप समाप्त हो जाएंगे और तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी।' मंजुघोषा को मुक्ति का विधान बताकर मेधावी ॠषि अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुँचे। शाप की बात सुनकर च्यवन ॠषि ने कहा-'पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया। शाप देकर स्वयं भी पाप कमाया है। अत: तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके मंजुघोषा ने शाप से तथा ॠषि मेधावी ने पाप से मुक्ति पाई।


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Revision as of 11:14, 15 May 2010

पापमोचनी एकादशी

पाप मोचनी एकादशी व्रत विधि

यह एकादशी पापमोचनी एकादशी कहलाती है। अर्थात पाप को नष्ट करने वाली एकादशी। पुराणों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पाप मोचिनी है। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें। इस दिन भगवान विष्णु को अर्ध्य दान देकर षोडशोतपचार पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात धूप, दीप, चंदन आदि से नीराजन करना चाहिए। इस दिन निंदित कर्म तथा मिथ्या भाषण नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन भिक्षुक, बन्धु-बान्धव तथा ब्राह्मणों को भोजन दान देना फलदायी होता है। इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी, मद्यपान, अहिंसा, अगम्यागमन, भ्रूणघात आदि अनेकानेक घोर पापों के दोषों से मुक्ति मिल जाती है।

कथा

प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक अति रमणीक वन था।इस वन में च्यवन ॠषि के पुत्र मेधावी नामक नामक ॠषि तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं तथा देवताओं सहित स्वच्छन्द विहार करते थे। ॠषि शिव भक्त तथा अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी। एक समय की बात है कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या को भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य-गान और हाव-भाव से ॠषि का ध्यान भंग किया। अप्सरा के हाव-भाव और नृत्य गान से ॠषि उस पर मोहित हो गए। दोनों ने अनेक वर्ष साथ-साथ गुजारे। एक दिन जब मंजुघोषा ने जाने के लिए आज्ञा माँगी तो ॠषि को आत्मज्ञान हुआ। उन्होंने समय की गणना की तो 57 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। ॠषि को अपनी तपस्या भंग होने का भान हुआ। उन्होंने अपने को रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण मंजुघोषा को समझकर, क्रोधित होकर उसे पिशाचनी होने का शाप दिया। शाप सुनकर मंजुघोषा काँपने लगी और ॠषि के चरणों में गिर पड़ी। काँपते हुए उसने मुक्ति का उपाय पूछा। बहुत अनुनय-विनय करने पर ॠषि का ह्रदय पसीज गया। उन्होंने कहा-'यदि तुम चैत्र कृष्ण पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तो इसके करने से तुम्हारे पाप और शाप समाप्त हो जाएंगे और तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी।' मंजुघोषा को मुक्ति का विधान बताकर मेधावी ॠषि अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुँचे। शाप की बात सुनकर च्यवन ॠषि ने कहा-'पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया। शाप देकर स्वयं भी पाप कमाया है। अत: तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके मंजुघोषा ने शाप से तथा ॠषि मेधावी ने पाप से मुक्ति पाई।


बाहरी कड़ियाँ

पापमोचनी एकादशी व्रत और कथा

पापमोचनी एकादशी

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