विशालाक्षी शक्तिपीठ: Difference between revisions
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Revision as of 09:52, 23 April 2013
काशी विशालाक्षी मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मन्दिर उत्तर प्रदेश के प्राचीन नगर बनारस ('काशी' या 'वाराणसी') में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। हिन्दुओं की मान्यता के अनुसार यहाँ माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहाँ की शक्ति विशालाक्षी माता तथा भैरव काल भैरव हैं। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
तंत्रसागर के अनुसार
तंत्रसागर के अनुसार भगवती गौरवर्णा हैं। उनके दिव्य विग्रह से तप्त स्वर्ण सदृश्य कांति प्रवाहित होती है। वह अत्यंत रूपवती हैं तथा सदैव षोडशवर्षीया दिखती हैं। वह मुण्डमाल धारण करती हैं, रक्तवस्त्र पहनती हैं। उनके दो हाथ हैं जिनमें क्रमशः खड्ग और खप्पर रहता है।
तंत्रचूड़ामणि के अनुसार
तंत्रचूड़ामणि के अनुसार काशी (वाराणसी) में सती के दाहिने कान की मणि का निपात हुआ था। यह स्थान मीरघाट मुहल्ले के मकान नंबर डी/3-85 में स्थित है, जहाँ विशालाक्षी गौरी का प्रसिद्ध मंदिर तथा विशालाक्षेश्वर महादेव का शिवलिंग भी है।[1] यहाँ भगवान् काशी विश्वनाथ विश्राम करते हैं।
विशालाक्षी पीठ
देवी भागवत के 108 शक्तिपीठों में सर्वप्रथम विशालाक्षी का नामोल्लेख है,
- वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषे लिंगधारिणी। प्रयागे ललिता देवी कामाक्षी गंधमादने॥[2]
जहाँ सती का मुख गिरा था।[3] देवी के सिद्ध स्थानों में काशी में मात्र विशालाक्षी का वर्णन मिलता है तथा एक मात्र विशालाक्षी पीठ का उल्लेख काशी में किया गया है।
- अविमुक्ते विशालाक्षी महाभागा महालये।[4]
तथा
- वारणस्यां विशालाक्षी गौरीमुख निवासिनी।[5]
स्कंद पुराण [6] के अनुसार विशालाक्षी नौ गौरियों में पंचम हैं तथा भगवान् श्री काशी विश्वनाथ उनके मंदिर के समीप ही विश्राम करते हैं।
- विशालाक्ष्या महासौधे मम विश्राम भूमिका। तत्र संसृति खित्तान्नां विश्रामं श्राणयाम्यहम्॥[7]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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