ऐल्यूमिनियम कांस: Difference between revisions
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ऐल्यूमिनियम कांस ऐल्यूमिनियम और ताम्र की मिश्र धातुएँ, जिनमें ताम्र की मात्रा अधिक हो, ऐल्यूमिनियम कांस (ऐल्यूमिनियम ब्रांज़) कहलाती हैं। इनकी विशेषताएँ हैं उच्च दृढ़ता, विधि आकारों में निर्मित किए जाने की क्षमता, क्षय (वेयर) तथा क्लांति (फ़ैटीग) के प्रति उच्च प्रतिरोधशक्ति, सुंदर स्वर्णिम रंग और उष्मा उपचार से धातु का कड़ा और नरम हो सकना। ढलाई करते समय सीमावर्ती दानों के चारों और ऐल्युमिना की एक कठोर और चिमड़ी परत जम जाती है, जिससे धातु बाहर से भीतर तक एक समान नहीं रह जाती। इस कठिनाई से बचने के लिए घरिया के पेंदे से पिघली हुई धातु ऊपर चढ़ाई जाती है। इस क्रिया में तलछट को रोकने के लिए विशेष प्रकार की चलनी का उपयोग किया जाता है और पिघली धातु में हलचल रोकने के लिए उसे मंद गति से भीतर डालते हैं। वेल्डिंग संबंधी कठिनाइयाँ अब दूर कर दी गई हैं। ऐल्यूमिनियम कांस में भट्ठी की गंधकमय गैस, समुद्रजल और तनु अम्ल के प्रति प्रतिरोधशक्ति होती है। इसलिए इसका उपयोग बर्तन बनाने में किया जाता है।
साधारणत: तीन प्रकार की मिश्रधातुओं का प्रयोग होता है :
(1) पीटकर बनाई गई मिश्रधातु, जिसमें 5 से 7 प्रतिशत ऐल्यूमिनियम रहता है।
(2) 10 प्रतिशत ऐल्यूमिनियम वाली मिश्रधातु जिसका प्रयोग ढलाई में और तपाकर इच्छित रूप देने में किया जाता है।[1]
(3) मिश्रित ऐल्यूमिनियम कांस। साधारण मिलावट में लौह, निकेल और मैंगनीज़ का उपयोग किया जाता है। 5 प्रतिशत तक मैंगनीज और 3 प्रतिशत तक लोहा मिलाया जा सकता है। अधिक मैंगनीज़ अथवा लोहावाला कांस ऐल्यूमिनियम कांस नहीं कहलाता। इन मिश्रधातुओं से वस्तुएँ ठंढी अवस्था में एक सीमा तक ही पीटकर बनाई जा सकती हैं। अधिकतर तप्त करके ही इनको पीटा जाता है।[2]
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