Difference between revisions of "अंगुत्तरनिकाय"
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− | + | '''अंगुत्तरनिकाय''' महत्त्वपूर्ण [[बौद्ध]] [[ग्रंथ]] है। इसके लेखक महंत आनंद कौसलायन हैं। महाबोधि सभा, [[कलकत्ता]] द्वारा इसको वर्तमान समय में प्रकाशित किया गया है। | |
*11 निपातों से युक्त इस निकाय में [[बुद्ध|महात्मा बुद्ध]] द्वारा भिक्षुओं को उपदेश में की जाने वाली बातों का वर्णन है। इस निकाय में छठी शताब्दी ई.पू. के [[महाजनपद|सोलह महाजनपदों]] का उल्लेख मिलता हैं | *11 निपातों से युक्त इस निकाय में [[बुद्ध|महात्मा बुद्ध]] द्वारा भिक्षुओं को उपदेश में की जाने वाली बातों का वर्णन है। इस निकाय में छठी शताब्दी ई.पू. के [[महाजनपद|सोलह महाजनपदों]] का उल्लेख मिलता हैं | ||
− | *बौद्ध ग्रन्थ-बौद्धमतावल्बियों ने जिस साहित्य का सृजन किया, उसमें भारतीय इतिहास की जानकारी के लिए प्रचुर सामग्रियाँ उपलब्ध हैं। | + | *बौद्ध ग्रन्थ-बौद्धमतावल्बियों ने जिस साहित्य का सृजन किया, उसमें [[भारतीय इतिहास]] की जानकारी के लिए प्रचुर सामग्रियाँ उपलब्ध हैं। |
*बौद्ध संघ, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिये आचरणीय नियम विधान विनय पिटक में प्राप्त होते हैं। | *बौद्ध संघ, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिये आचरणीय नियम विधान विनय पिटक में प्राप्त होते हैं। | ||
− | *अंगुत्तरनिकाय की अपनी एक विशेषता है। इसमें सुत्तों का संग्रह एक व्यवस्था के अनुसार किया गया है। इस में ऐसे सुत्त हैं जिनमें बुद्ध भगवान के एक संख्यात्मक पदार्थों विषयक उपदेश संग्रह है, | + | *अंगुत्तरनिकाय की अपनी एक विशेषता है। इसमें सुत्तों का संग्रह एक व्यवस्था के अनुसार किया गया है। इस में ऐसे सुत्त हैं जिनमें बुद्ध भगवान के एक संख्यात्मक पदार्थों विषयक उपदेश संग्रह है, तत्पश्चात् दो पदार्थों विषयक सुत्तों का और फिर तीन, चार आदि। इसी क्रम से इस निकाय के भीतर एकनिपात, दुकनिपात एवं तिक, चतुवक, पंचक, छक्क, सत्तक, अट्ठक, नवक, दशक और एकादशक इन नामों के ग्यारह निपातों का संकलन है। |
*ये निपात पुन: वर्गों में विभाजित हैं, जिनकी संख्या निपात क्रम से 21, 16, 16, 26, 12, 9, 9, 9, 22 और 3 है । इस प्रकार 11 निपातों में कुल वर्गों की संख्या 169 है। प्रत्येक वर्ग के भीतर अनेक सुत्त हैं जिनकी संख्या एक वर्ग में कम से कम 7 और अधिक से अधिक 262 है। | *ये निपात पुन: वर्गों में विभाजित हैं, जिनकी संख्या निपात क्रम से 21, 16, 16, 26, 12, 9, 9, 9, 22 और 3 है । इस प्रकार 11 निपातों में कुल वर्गों की संख्या 169 है। प्रत्येक वर्ग के भीतर अनेक सुत्त हैं जिनकी संख्या एक वर्ग में कम से कम 7 और अधिक से अधिक 262 है। | ||
− | *इस प्रकार अंगुत्तरनिकाय से सुत्तों की संख्या 2308 | + | *इस प्रकार अंगुत्तरनिकाय से सुत्तों की संख्या 2308 है। |
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Latest revision as of 07:51, 23 June 2017
aanguttaranikay mahattvapoorn bauddh granth hai. isake lekhak mahant anand kausalayan haian. mahabodhi sabha, kalakatta dvara isako vartaman samay mean prakashit kiya gaya hai.
- 11 nipatoan se yukt is nikay mean mahatma buddh dvara bhikshuoan ko upadesh mean ki jane vali batoan ka varnan hai. is nikay mean chhathi shatabdi ee.poo. ke solah mahajanapadoan ka ullekh milata haian
- bauddh granth-bauddhamatavalbiyoan ne jis sahity ka srijan kiya, usamean bharatiy itihas ki janakari ke lie prachur samagriyaan upalabdh haian.
- bauddh sangh, bhikshuoan tatha bhikshuniyoan ke liye acharaniy niyam vidhan vinay pitak mean prapt hote haian.
- aanguttaranikay ki apani ek visheshata hai. isamean suttoan ka sangrah ek vyavastha ke anusar kiya gaya hai. is mean aise sutt haian jinamean buddh bhagavan ke ek sankhyatmak padarthoan vishayak upadesh sangrah hai, tatpashchath do padarthoan vishayak suttoan ka aur phir tin, char adi. isi kram se is nikay ke bhitar ekanipat, dukanipat evan tik, chatuvak, panchak, chhakk, sattak, atthak, navak, dashak aur ekadashak in namoan ke gyarah nipatoan ka sankalan hai.
- ye nipat pun: vargoan mean vibhajit haian, jinaki sankhya nipat kram se 21, 16, 16, 26, 12, 9, 9, 9, 22 aur 3 hai . is prakar 11 nipatoan mean kul vargoan ki sankhya 169 hai. pratyek varg ke bhitar anek sutt haian jinaki sankhya ek varg mean kam se kam 7 aur adhik se adhik 262 hai.
- is prakar aanguttaranikay se suttoan ki sankhya 2308 hai.
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