Difference between revisions of "बिम्बिसार"

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[[मगध]] के राजा बिम्बिसार की राजधानी [[राजगृह|राजगीर]] (राजगृह) थी। बिम्बिसार [[गौतम बुद्ध]] के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे। वे पन्द्रह वर्ष की आयु में राजा बने और अपने पुत्र अजातसत्तु (संस्कृत- [[अजातशत्रु]]) के लिए राज-पाट त्यागने से पूर्व बावन वर्ष इन्होंने राज्य किया। राजा [[प्रसेनजित]] की बहन और [[कोसल]] की राजकुमारी, इनकी पत्नी और [[अजातशत्रु]] की माँ थी। खेमा, सीलव और जयसेना नामक इनकी अन्य पत्नियाँ थीं। विख्यात वारांगना अम्बापालि से इनका विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था।
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[[मगध]] के राजा बिम्बिसार की राजधानी [[राजगृह|राजगीर]] (राजगृह) थी। बिम्बिसार [[गौतम बुद्ध]] के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे। वे पन्द्रह वर्ष की आयु में राजा बने और अपने पुत्र अजातसत्तु (संस्कृत- [[अजातशत्रु]]) के लिए राज-पाट त्यागने से पूर्व बावन वर्ष इन्होंने राज्य किया। राजा [[प्रसेनजित]] की बहन और [[कोसल]] की राजकुमारी, इनकी पत्नी और [[अजातशत्रु]] की माँ थी। खेमा, सीलव और जयसेना नामक इनकी अन्य पत्नियाँ थीं। विख्यात वीरांगना अम्बापालि से इनका विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था। बिंबसार बुद्ध  के उपदेशों से प्रभावित थे। इनकी पत्नी भिक्षुणी बन गई थीं।<ref>{{cite book | last = | first =चंद्रमौली मणि त्रिपाठी  | title =दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ  | edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिंदी  | pages =87  | chapter =}}</ref>
 
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बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना 544 ई. पू. में की। इसके साथ ही राजनीतिक शक्‍ति के रूप में [[बिहार]] का सर्वप्रथम उदय हुआ। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक/राजा माना जाता है। बिम्बिसार ने गिरिव्रज (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया। इसके वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली एवं पंजाब) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। *बिम्बिसार (544 ई. पू. से 492 ई. पू.) बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया।  
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बिम्बिसार ने [[हर्यक वंश]] की स्थापना 544 ई. पू. में की। इसके साथ ही राजनीतिक शक्‍ति के रूप में [[बिहार]] का सर्वप्रथम उदय हुआ। बिम्बिसार को [[मगध साम्राज्य]] का वास्तविक संस्थापक/राजा माना जाता है। बिम्बिसार ने [[गिरिव्रज]] (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया। इसके वैवाहिक सम्बन्धों ([[कौशल]], [[वैशाली]] एवं [[पंजाब]]) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।  
*सुत्तनिपात अट्ठकथा के पब्बज सुत्त के अनुसार, इन्होंने संयासी [[बुद्ध|गौतम]] का प्रथम दर्शन [[पाण्डव]] पर्वत के नीचे अपने राजभवन के गवाक्ष से किया और उनके पीछे जाकर, उन्हें अपने राजभवन में आमन्त्रित किया।  
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*बिम्बिसार (544 ई. पू. से 492 ई. पू.) बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया।  
*गौतम ने इनका निमन्त्रण अस्वीकार किया तो इन्होंने गौतम को उनकी उद्देश्य-पूर्ति हेतु शुभकामनाएँ दी और बुद्धत्व-प्राप्ति के उपरान्त उन्हें फिर से [[राजगृह|राजगीर]] आने का निमन्त्रण दिया। तेभतिक जटिल के परिवर्तन के बाद, [[बुद्ध]] ने राजगीर में पदापंण करके, अपना वचन पूरा किया।  
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*सुत्तनिपात अट्ठकथा के पब्बज सुत्त के अनुसार, इन्होंने सन्यासी [[बुद्ध|गौतम]] का प्रथम दर्शन पाण्डव पर्वत के नीचे अपने राजभवन के गवाक्ष से किया और उनके पीछे जाकर, उन्हें अपने राजभवन में आमन्त्रित किया।  
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*गौतम ने इनका निमन्त्रण अस्वीकार किया तो इन्होंने गौतम को उनकी उद्देश्य-पूर्ति हेतु शुभकामनाएँ दी और बुद्धत्व-प्राप्ति के उपरान्त उन्हें फिर से [[राजगृह|राजगीर]] आने का निमन्त्रण दिया। तेभतिक जटिल के परिवर्तन के बाद, [[बुद्ध]] ने राजगीर में पदार्पण करके, अपना वचन पूरा किया।  
 
*बुद्ध और उनके अनुयायी राजकीय अतिथियों की भाँति राजगीर आए। बुद्ध और उनके अनुयायियों के लिए वेलुवन उद्यान दान में देने के अपने प्रण की पूर्ति दर्शाने के लिए, बिम्बिसार ने बुद्ध के हाथ स्वर्ण-कलश के पानी से धुलवाए। आगामी तीस वर्षों तक बिम्बिसार [[बौद्ध धर्म]] के विकास में सहायक बने।
 
*बुद्ध और उनके अनुयायी राजकीय अतिथियों की भाँति राजगीर आए। बुद्ध और उनके अनुयायियों के लिए वेलुवन उद्यान दान में देने के अपने प्रण की पूर्ति दर्शाने के लिए, बिम्बिसार ने बुद्ध के हाथ स्वर्ण-कलश के पानी से धुलवाए। आगामी तीस वर्षों तक बिम्बिसार [[बौद्ध धर्म]] के विकास में सहायक बने।
 
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Revision as of 09:30, 8 November 2013

magadh ke raja bimbisar ki rajadhani rajagir (rajagrih) thi. bimbisar gautam buddh ke sabase b de prashrayadata the. ve pandrah varsh ki ayu mean raja bane aur apane putr ajatasattu (sanskrit- ajatashatru) ke lie raj-pat tyagane se poorv bavan varsh inhoanne rajy kiya. raja prasenajit ki bahan aur kosal ki rajakumari, inaki patni aur ajatashatru ki maan thi. khema, silav aur jayasena namak inaki any patniyaan thian. vikhyat viraangana ambapali se inaka vimal kondann namak putr bhi tha. bianbasar buddh ke upadeshoan se prabhavit the. inaki patni bhikshuni ban gee thian.[1]


bimbisar ne haryak vansh ki sthapana 544 ee. poo. mean ki. isake sath hi rajanitik shakh‍ti ke roop mean bihar ka sarvapratham uday hua. bimbisar ko magadh samrajy ka vastavik sansthapak/raja mana jata hai. bimbisar ne girivraj (rajagir) ko apani rajadhani banaya. isake vaivahik sambandhoan (kaushal, vaishali evan panjab) ki niti apanakar apane samrajy ka vistar kiya.

  • bimbisar (544 ee. poo. se 492 ee. poo.) bimbisar ek kootanitijn aur dooradarshi shasak tha. usane pramukh rajavanshoan mean vaivahik sambandh sthapit kar rajy ko phailaya.
  • suttanipat atthakatha ke pabbaj sutt ke anusar, inhoanne sanyasi gautam ka pratham darshan pandav parvat ke niche apane rajabhavan ke gavaksh se kiya aur unake pichhe jakar, unhean apane rajabhavan mean amantrit kiya.
  • gautam ne inaka nimantran asvikar kiya to inhoanne gautam ko unaki uddeshy-poorti hetu shubhakamanaean di aur buddhatv-prapti ke uparant unhean phir se rajagir ane ka nimantran diya. tebhatik jatil ke parivartan ke bad, buddh ne rajagir mean padarpan karake, apana vachan poora kiya.
  • buddh aur unake anuyayi rajakiy atithiyoan ki bhaanti rajagir ae. buddh aur unake anuyayiyoan ke lie veluvan udyan dan mean dene ke apane pran ki poorti darshane ke lie, bimbisar ne buddh ke hath svarn-kalash ke pani se dhulavae. agami tis varshoan tak bimbisar bauddh dharm ke vikas mean sahayak bane.
panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh

  1. diksha ki bharatiy paramparaean (hiandi), 87.