अल-मआरिज: Difference between revisions

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70:41- कि उनके बदले उनसे बेहतर लोग ला (बसाएँ) और हम आजिज़ नहीं हैं।<br />
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70:42- तो तुम उनको छोड़ दो कि बातिल में पड़े खेलते रहें यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वायदा किया जाता है उनके सामने आ मौजूद हो।<br />
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70:43- उसी दिन ये लोग कब्रों से निकल कर इस तरह दौड़ेंगे गोया वह किसी झन्डे की तरफ दौड़े चले जाते हैं।<br />
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70:44- (निदामत से) उनकी ऑंखें झुकी होंगी उन पर रूसवाई छाई हुई होगी ये वही दिन है जिसका उनसे वायदा किया जाता था।<br />
70:44- (निदामत से) उनकी ऑंखें झुकी होंगी उन पर रूसवाई छाई हुई होगी ये वही दिन है जिसका उनसे वायदा किया जाता था।<br />



Latest revision as of 12:01, 5 July 2017

अल-मआरिज इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ क़ुरआन का 70वाँ सूरा (अध्याय) है जिसमें 44 आयतें होती हैं।
70:1- एक माँगने वाले ने काफिरों के लिए होकर रहने वाले अज़ाब को माँगा।
70:2- जिसको कोई टाल नहीं सकता।
70:3- जो दर्जे वाले ख़ुदा की तरफ से (होने वाला) था।
70:4- जिसकी तरफ फ़रिश्ते और रूहुल अमीन चढ़ते हैं (और ये) एक दिन में इतनी मुसाफ़त तय करते हैं जिसका अन्दाज़ा पचास हज़ार बरस का होगा।
70:5- तो तुम अच्छी तरह इन तक़लीफों को बरदाश्त करते रहो।
70:6- वह (क़यामत) उनकी निगाह में बहुत दूर है।
70:7- और हमारी नज़र में नज़दीक है।
70:8- जिस दिन आसमान पिघले हुए ताँबे का सा हो जाएगा।
70:9- और पहाड़ धुनके हुए ऊन का सा।
70:10- बावजूद कि एक दूसरे को देखते होंगे।
70:11- कोई किसी दोस्त को न पूछेगा गुनेहगार तो आरज़ू करेगा कि काश उस दिन के अज़ाब के बदले उसके बेटों।
70:12- और उसकी बीवी और उसके भाई।
70:13- और उसके कुनबे को जिसमें वह रहता था।
70:14- और जितने आदमी ज़मीन पर हैं सब को ले ले और उसको छुटकारा दे दें।
70:15- (मगर) ये हरगिज़ न होगा।
70:16- जहन्नुम की वह भड़कती आग है कि खाल उधेड़ कर रख देगी।
70:17- (और) उन लोगों को अपनी तरफ बुलाती होगी।
70:18- जिन्होंने (दीन से) पीठ फेरी और मुँह मोड़ा और (माल जमा किया)।
70:19- और बन्द कर रखा बेशक इन्सान बड़ा लालची पैदा हुआ है।
70:20- जब उसे तक़लीफ छू भी गयी तो घबरा गया।
70:21- और जब उसे ज़रा फराग़ी हासिल हुई तो बख़ील बन बैठा।
70:22- मगर जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं।
70:23- जो अपनी नमाज़ का इल्तज़ाम रखते हैं।
70:24- और जिनके माल में माँगने वाले और न माँगने वाले के।
70:25- लिए एक मुक़र्रर हिस्सा है।
70:26- और जो लोग रोज़े जज़ा की तस्दीक़ करते हैं।
70:27- और जो लोग अपने परवरदिगार के अज़ाब से डरते रहते हैं।
70:28- बेशक उनको परवरदिगार के अज़ाब से बेख़ौफ न होना चाहिए।
70:29- और जो लोग अपनी शर्मगाहों को अपनी बीवियों और अपनी लौन्डियों के सिवा से हिफाज़त करते हैं।
70:30- तो इन लोगों की हरगिज़ मलामत न की जाएगी।
70:31- तो जो लोग उनके सिवा और के ख़ास्तगार हों तो यही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं।
70:32- और जो लोग अपनी अमानतों और अहदों का लेहाज़ रखते हैं।
70:33- और जो लोग अपनी यहादतों पर क़ायम रहते हैं।
70:34- और जो लोग अपनी नमाज़ो का ख्याल रखते हैं।
70:35- यही लोग बेहिश्त के बाग़ों में इज्ज़त से रहेंगे।
70:36- तो (ऐ रसूल) काफिरों को क्या हो गया है।
70:37- कि तुम्हारे पास गिरोह गिरोह दाहिने से बाएँ से दौड़े चले आ रहे हैं।
70:38- क्या इनमें से हर शख़्श इस का मुतमइनी है कि चैन के बाग़ (बेहिश्त) में दाख़िल होगा।
70:39- हरगिज़ नहीं हमने उनको जिस (गन्दी) चीज़ से पैदा किया ये लोग जानते हैं।
70:40- तो मैं मशरिकों और मग़रिबों के परवरदिगार की क़सम खाता हूँ कि हम ज़रूर इस बात की कुदरत रखते हैं।
70:41- कि उनके बदले उनसे बेहतर लोग ला (बसाएँ) और हम आजिज़ नहीं हैं।
70:42- तो तुम उनको छोड़ दो कि बातिल में पड़े खेलते रहें यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वायदा किया जाता है उनके सामने आ मौजूद हो।
70:43- उसी दिन ये लोग क़ब्रों से निकल कर इस तरह दौड़ेंगे गोया वह किसी झन्डे की तरफ दौड़े चले जाते हैं।
70:44- (निदामत से) उनकी ऑंखें झुकी होंगी उन पर रूसवाई छाई हुई होगी ये वही दिन है जिसका उनसे वायदा किया जाता था।



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