वैण्यगुप्त: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति |आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}" to "{{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भि�) |
No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''वैण्यगुप्त''' सम्राट [[बुधगुप्त]] के बाद [[पाटलिपुत्र]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ था। उसने 495 से 507 ई. तक राज्य किया। वैण्यगुप्त के सिक्के तोल आदि में [[चंद्रगुप्त द्वितीय]] और [[समुद्रगुप्त]] के सिक्कों के समान हैं। | |||
*वैण्यगुप्त के सिक्कों पर एक ओर वैण्यगुप्त का चित्र है, जिसमें वह बाएँ हाथ में [[धनुष]] और दाएँ हाथ में [[बाण अस्त्र|बाण]] लिए हुए है। | |||
*सिक्कों पर एक ओर वैण्यगुप्त का चित्र है, जिसमें वह बाएँ हाथ में धनुष और दाएँ हाथ में बाण लिए हुए है। | |||
*राजा के चित्र के एक ओर गरुड़ध्वज है, और दूसरी ओर वैण्य लिखा है। | *राजा के चित्र के एक ओर गरुड़ध्वज है, और दूसरी ओर वैण्य लिखा है। | ||
*सिक्कों के दूसरी ओर कमलासन पर विराजमान [[लक्ष्मी]] की मूर्ति है। साथ वैण्य की उपाधि 'द्वादशादित्य' उत्कीर्ण है। | *सिक्कों के दूसरी ओर कमलासन पर विराजमान [[लक्ष्मी]] की मूर्ति है। साथ वैण्य की उपाधि 'द्वादशादित्य' उत्कीर्ण है। | ||
*वैण्य के सिक्कों में सोने की मात्रा का फिर से बढ़ जाना यह सूचित करता है, कि उसका काल समृद्धि का काल था, और सम्भवतः उसे युद्धों में अधिक रुपया ख़र्च करने की आवश्यकता नहीं हुई थी। | *वैण्य के सिक्कों में [[सोना|सोने]] की मात्रा का फिर से बढ़ जाना यह सूचित करता है, कि उसका काल समृद्धि का काल था, और सम्भवतः उसे युद्धों में अधिक [[रुपया]] ख़र्च करने की आवश्यकता नहीं हुई थी। | ||
*ऐसा प्रतीत होता है | *ऐसा प्रतीत होता है कि बुधगुप्त के बाद [[गुप्त साम्राज्य]] अपनी एकता को क़ायम नहीं रख सका था। | ||
*साम्राज्य के पूर्वी भाग में इस समय वैण्यगुप्त का शासन था, और पश्चिमी भाग में भानुगुप्त बालादित्य का। | *साम्राज्य के पूर्वी भाग में इस समय वैण्यगुप्त का शासन था, और पश्चिमी भाग में [[भानुगुप्त बालादित्य]] का। सम्भवतः ये दोनों समकालीन [[गुप्त वंश|गुप्त वंशी]] राजा थे। | ||
{{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{गुप्त काल}} | {{गुप्त काल}} | ||
{{भारत के राजवंश}} | {{भारत के राजवंश}} | ||
[[Category:इतिहास_कोश]] | [[Category:इतिहास_कोश]][[Category:गुप्त_काल]] | ||
[[Category:गुप्त_काल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 06:35, 15 April 2013
वैण्यगुप्त सम्राट बुधगुप्त के बाद पाटलिपुत्र के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ था। उसने 495 से 507 ई. तक राज्य किया। वैण्यगुप्त के सिक्के तोल आदि में चंद्रगुप्त द्वितीय और समुद्रगुप्त के सिक्कों के समान हैं।
- वैण्यगुप्त के सिक्कों पर एक ओर वैण्यगुप्त का चित्र है, जिसमें वह बाएँ हाथ में धनुष और दाएँ हाथ में बाण लिए हुए है।
- राजा के चित्र के एक ओर गरुड़ध्वज है, और दूसरी ओर वैण्य लिखा है।
- सिक्कों के दूसरी ओर कमलासन पर विराजमान लक्ष्मी की मूर्ति है। साथ वैण्य की उपाधि 'द्वादशादित्य' उत्कीर्ण है।
- वैण्य के सिक्कों में सोने की मात्रा का फिर से बढ़ जाना यह सूचित करता है, कि उसका काल समृद्धि का काल था, और सम्भवतः उसे युद्धों में अधिक रुपया ख़र्च करने की आवश्यकता नहीं हुई थी।
- ऐसा प्रतीत होता है कि बुधगुप्त के बाद गुप्त साम्राज्य अपनी एकता को क़ायम नहीं रख सका था।
- साम्राज्य के पूर्वी भाग में इस समय वैण्यगुप्त का शासन था, और पश्चिमी भाग में भानुगुप्त बालादित्य का। सम्भवतः ये दोनों समकालीन गुप्त वंशी राजा थे।
|
|
|
|
|