टिन: Difference between revisions
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==उपयोग== | |||
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टिन (अंग्रेज़ी:Tin) आवर्त सारणी का एक तत्व है, जिसका स्थान चौदहवें समूह में हैं। इसे 'वंग' (त्रपु) या 'रांगा' भी कहा जाता है। टि का प्रतीक Sn, परमाणु क्रमांक 50, परमाणु भार 118.710, गलनांक 231.93° सें., क्वथनांक 2602° सें. होता है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2 2s2 2p6 3s2 3p6 3d10 4s2 4p6 4d10 5s2 5p2 होता है। इसके 10 समस्थानिक 112, 114, 115, 116, 117, 118, 119, 120, 122, 124 होते है। इनके अतिरिक्त चार अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 113, 121, 123 और 125) भी निर्मित हुए हैं।
इतिहास
टिन की मिश्र धातु का उपयोग आज से 5,000 वर्ष पूर्व भी होता था। इस धातु की बनी सबसे प्राचीन बोतल मिस्र स्थित एक समाधि में पाई गई, जो लगभग ईसा से 1,500 वर्ष पूर्वकाल की है। टिन के अयस्क मिस्र में नहीं मिलते। इस कारण वहाँ यह धातु अवश्य ही बाहर से आयी होगी। ईसा से लगभग 300 वर्ष पूर्व इंग्लैंड में टिन के धातुकर्म के नमूने मिलते हैं। यहाँ टिन की खानें थीं। उस समय यह धातु रोम जाती थी। दक्षिणी अमरीका के आदिवासियों को टिन की मिश्र धातुओं का ज्ञान था।
भारत में सिंधु घाटी की सभ्यता के काल के प्राप्त धातु पदार्थों में टिन पाया गया है। ऐसा अनुमान है कि उस समय टिन ईरान से आता था। ईसा से पाँच शताब्दी पूर्व आयुर्वेद काल में सुश्रुत में टिन तथा वाग्भट्ट के 'अष्टांगहृदयम्' में भी इसके यौगिक का वर्णन आया है। 'रसरत्नसमुच्चय' में टिन धातु तथा वैग भस्म दोनों के गुणों की विवेचना की गई है।[1]
प्राप्ति स्थान
टिन मुक्त अवस्था में प्राप्त नहीं है। पृथ्वी की सतह पर इसकी मात्रा लगभग 40 ग्राम प्रति टन है। इसके प्रमुख अयस्क हैं- कैसिटेराइट (SnO2) और सल्फाइड। मलेशिया, थाइलैंड, इंडोनेशिया, कांगो, नाइजीरिया तथा बोलिविया में टिन की मुख्य खानें हैं।
धातुकर्म
टिन के अयस्क में प्राय: 1 से 5 प्रतिशत टिन ऑक्साइड (SnO2) उपस्थित रहता है। इस कारण इसे सांद्रित करना आवश्यक है। उच्च घनत्त्व तथा अचुंबकीय गुणों के द्वारा ही कैसिटेराइट का सांद्रण करते हैं। सांद्रित अयस्क को कोयले से मिश्रित कर परावर्तनी[2] अथवा वात्या[3] भट्ठी में रखकर अपचयन[4] करने से टिन धातु प्राप्त होती है। अशुद्ध टिन के विशुद्ध करने की अनेक विधियाँ हैं।
गुणधर्म
टिन सफ़ेद रंग की कोमल तन्य[5] धातु है। इसके तार सरलता से खींचे जा सकते हैं, परंतु टिन की चादर मोड़ने पर कटकटाने की ध्वनि होती है, जिसे "टिन की चिल्लाहट" कहते हैं। धातु के दो अपररूपी रूपांतरण[6] हैं। सामान्य अवस्था में यह श्वेत रंग की धातु है, परंतु यदि टिन को अधिक काल तक 13° सें. ताप से नीचे रखा जाए, तो यह भुरभुरा एवं भूरे रंग के चूर्ण में परिवर्तित होकर टिन का दूसरा अपररूप बनाता है, जो निम्न ताप पर स्थायी है।
सामान्य ताप पर टिन वायु द्वारा प्रभावित नहीं होता, परंतु उच्च ताप पर उस पर ऑक्साइड की परत जम जाती है। श्वेत ताप पर टिन वायु में जलकर डाइऑक्साइड (SnO2) बनाता है। यह तप्त अवस्था में पीले रंग का और सामान्य ताप पर श्वेत रंग का पदार्थ है। टिन तनु अम्लों में धीरे-धीरे घुलकर टिन++ (Sn++) यौगिक बनाता है और हाइड्रोजन मुक्त करता है। धातु पर सांद्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया द्वारा जलयुक्त स्टैनिक ऑक्साइड अथवा मेटास्टैनिक अम्ल[7] बनता है। टिन क्षारीय विलयन में घुलकर स्टैनेट बनाता है, जिसके फलस्वरूप हाइड्रोजन मुक्त हो जाता है।[1]
यौगिक
टिन के दो प्रकार के यौगिक ज्ञात हैं-
- 'स्टैंनस', जिसमें टिन की संयोजकता 2 है।
- 'स्टैनिक', जिसमें टिन की संयोजकता 4 रहती है।
इसके दो ऑक्साइड, स्टैनस ऑक्साइ (SnO) और स्टैनिक ऑक्साइ (SnO2) होते हैं। गंधक के साथ टिन को गरम करने से स्टैनस सल्फाइड (SnS) प्राप्त होता है। स्टैनिक सल्फ़ाइड (SnS2) भी बनता है।
हेलोजन के साथ क्रिया
हेलोजन के साथ टिन स्टैन्स हैलाइड और स्टैनिक हैलाइड बनाता है। टिन के क्लोराइड रंगबंधक के रूप में रेशम रंगने में काम आते हैं। यह नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और फॉस्फोरस के साथ भी यौगिक बनाता है। इसके नाइट्रेट और फॉस्फेट अस्थायी होते हैं। क्लोरोस्टैनिक अम्ल का अमोनियम लवण [( N H4)2 SnCl6] रेशम रंगने में काम आता है। टिन अनेक उपसहसंयोजकता[8] यौगिक बनाता है।
उपयोग
टिन मुलम्मा करने और मिश्र धातुओं के निर्माण में काम आता है। लोहे पर टिन से कलई करने पर उस पर न मुरचा ही लगता है और न ही अम्लों का जल्दी असर पड़ता है। काँसा इसकी महत्त्व की मिश्रधातु है। खाद्य पदार्थों के डिब्बों में टिन की कलई करने से वे जल्द आक्रांत नहीं होते। इसके अनेक यौगिक वस्त्र उद्योग, रँगाई, काँच एवं चीनी मिट्टी के पात्र के उद्योगों में काम आते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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