अन-नाज़ीयत: Difference between revisions

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79:14- और लोग शक़ बारगी एक मैदान (हश्र) में मौजूद होंगे।<br />
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79:16- जब उनको परवरदिगार ने तूवा के मैदान में पुकारा।<br />
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79:17- कि फिरऔन के पास जाओ वह सरकश हो गया है।<br />
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अन-नाज़ीयत इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ क़ुरआन का 79वाँ सूरा (अध्याय) है जिसमें 40 आयतें होती हैं।
79:1- उन (फ़रिश्तों) की क़सम।
79:2- जो (कुफ्फ़ार की रूह) डूब कर सख्ती से खींच लेते हैं।
79:3- और उनकी क़सम जो (मोमिनीन की जान) आसानी से खोल देते हैं।
79:4- और उनकी क़सम जो (आसमान ज़मीन के दरमियान) पैरते फिरते हैं।
79:5- फिर एक के आगे बढ़ते हैं।
79:6- फिर (दुनिया के) इन्तज़ाम करते हैं (उनकी क़सम) कि क़यामत हो कर रहेगी।
79:7- जिस दिन ज़मीन को भूचाल आएगा फिर उसके पीछे और ज़लज़ला आएगा।
79:8- उस दिन दिलों को धड़कन होगी।
79:9- उनकी ऑंखें (निदामत से) झुकी हुई होंगी।
79:10- कुफ्फ़ार कहते हैं कि क्या हम उलटे पाँव (ज़िन्दगी की तरफ़) फिर लौटेंगे।
79:11- क्या जब हम खोखल हड्डियाँ हो जाएँगे।
79:12- कहते हैं कि ये लौटना तो बड़ा नुक़सान देह है।
79:13- वह (क़यामत) तो (गोया) बस एक सख्त चीख़ होगी।
79:14- और लोग शक़ बारगी एक मैदान (हश्र) में मौजूद होंगे।
79:15- (ऐ रसूल) क्या तुम्हारे पास मूसा का क़िस्सा भी पहुँचा है।
79:16- जब उनको परवरदिगार ने तूवा के मैदान में पुकारा।
79:17- कि फिरऔन के पास जाओ वह सरकश हो गया है।
79:18- (और उससे) कहो कि क्या तेरी ख्वाहिश है कि (कुफ्र से) पाक हो जाए।
79:19- और मैं तुझे तेरे परवरदिगार की राह बता दूँ तो तुझको ख़ौफ (पैदा) हो।
79:20- ग़रज़ मूसा ने उसे (असा का बड़ा) मौजिज़ा दिखाया।
79:21- तो उसने झुठला दिया और न माना।
79:22- फिर पीठ फेर कर (ख़िलाफ़ की) तदबीर करने लगा।
79:23- फिर (लोगों को) जमा किया और बुलन्द आवाज़ से चिल्लाया।
79:24- तो कहने लगा मैं तुम लोगों का सबसे बड़ा परवरदिगार हूँ।
79:25- तो ख़ुदा ने उसे दुनिया और आख़ेरत (दोनों) के अज़ाब में गिरफ्तार किया।
79:26- बेशक जो शख़्श (ख़ुदा से) डरे उसके लिए इस (किस्से) में इबरत है।
79:27- भला तुम्हारा पैदा करना ज्यादा मुश्किल है या आसमान का।
79:28- कि उसी ने उसको बनाया उसकी छत को ख़ूब ऊँचा रखा।
79:29- फिर उसे दुरूस्त किया और उसकी रात को तारीक बनाया और (दिन को) उसकी धूप निकाली।
79:30- और उसके बाद ज़मीन को फैलाया।
79:31- उसी में से उसका पानी और उसका चारा निकाला।
79:32- और पहाड़ों को उसमें गाड़ दिया।
79:33- (ये सब सामान) तुम्हारे और तुम्हारे चारपायो के फ़ायदे के लिए है।
79:34- तो जब बड़ी सख्त मुसीबत (क़यामत) आ मौजूद होगी।
79:35- जिस दिन इन्सान अपने कामों को कुछ याद करेगा।
79:36- और जहन्नुम देखने वालों के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी।
79:37- तो जिसने (दुनिया में) सर उठाया था।
79:38- और दुनियावी ज़िन्दगी को तरजीह दी थी।
79:39- उसका ठिकाना तो यक़ीनन दोज़ख़ है।
79:40- मगर जो शख़्श अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता और जी को नाजायज़ ख्वाहिशों से रोकता रहा।
79:41- तो उसका ठिकाना यक़ीनन बेहश्त है।
79:42- (ऐ रसूल) लोग तुम से क़यामत के बारे में पूछते हैं।
79:43- कि उसका कहीं थल बेड़ा भी है।
79:44- तो तुम उसके ज़िक्र से किस फ़िक्र में हो।
79:45- उस (के इल्म) की इन्तेहा तुम्हारे परवरदिगार ही तक है तो तुम बस जो उससे डरे उसको डराने वाले हो।
79:46- जिस दिन वह लोग इसको देखेंगे तो (समझेंगे कि दुनिया में) बस एक शाम या सुबह ठहरे थे।


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