कीटनाशक

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कीटनाशक (अंग्रेज़ी: Insecticides) उन रासायनिक या जैविक पदार्थों का मिश्रण होता है, जिनका उपयोग कीड़े मकोड़ों से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, उन्हें मारने या उनसे बचाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग कृषि के क्षेत्र में पेड़-पौधों को बचाने के लिए बहुतायत से किया जाता है। कई प्रकार के कीड़े आदि पूरी फ़सल को बर्बाद कर देते हैं। इनके नियंत्रण या फिर इन्हें समाप्त करने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।

कार्य

कीटनाशक तीन प्रकार से कार्य करते हैं-

  1. जीवद्रव्य[1] पर विषवत क्रिया करके, जैसे- अम्ल और क्षार
  2. श्वासावरोध करके, जैसे- तैलादि
  3. तंत्रिकातंत्र पर विषवत क्रिया करके, जैसे- क्लोरोफार्म

कीटनाशक पदार्थ विलयन, पायस, पाउडर (चूर्ण), वाष्प या धुएँ के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं अथवा भोजन में मिश्रित करके। सुश्रुत के अनुसार गुग्गुल, धूप और अगर का धुँआ कीटनाशक है। जलते गंधक का धुआँ भी कीट तथा कृमि को नष्ट कर देता है। गंधक चूर्ण के रूप में अथवा मिट्टी के तेल में पायस बनाकर उपयुक्त किया जाता है।[2]

हाइड्रोसायनिक अम्ल

जीव मात्र के लिए अत्यंत विषैली गैस है और हर जीव-जंतु, कीड़े-मकोड़े, जैसे- मक्खी, खटमल, झींगुर, तिलचट्टा, कनखजूरा आदि कृमियों तथा चूहों को, जिन पर गंधक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, शीघ्र ही नष्ट कर देता है।

कार्बन डाइसल्फाइड

यह बड़ा शक्तिशाली कीटनाशक है। तुरंत सब कृमियों को नष्ट कर देता है।

पैट्रोलियम अथवा खनिज तैल

यह मिट्टी के तेल के रूप में प्राय: काम में लाया जाता है। पेट्रोलियम से उत्पन्न गैसोलीन, क्रूड ऑयल आदि भी उपयोगी कीटनाशक हैं। पेट्रोलियम को मच्छर और उनके अंडे बच्चों का नाश करने के लिए अधिकतर काम में लाते हैं। एक आउंस पेट्रोलियम पंद्रह वर्ग फुट जल की सतह के लिये पर्याप्त होता है। पेट्रोलियम के छिड़काव से खटमल, मक्खी और पिस्सू नष्ट हो जाते हैं। कोयले का तेल (कोल ऑयल) फव्वारे के रूप में जूँ का विनाशक है।

संखिया (आर्सेनिक)

यह बहुतायत से पेरिस ग्रीन के रूप में मच्छर के विनाश के लिए पानी की सतह पर छिड़का जाता है। सोडियम आर्सिनाइट का विलयन किलनी और मक्खियों को मारने में उपयोगी है। पाईथ्रोम का चूर्ण भी अच्छा कीटनाशक है और बहुतायत से प्रयुक्त किया जाता है। यह धातु, कपड़े और रंग को खराब नहीं करता। इनके विलयन का फुहार मच्छड़ का नाश करने में उपयोगी सिद्ध हुआ है।

डी. डी. टी.अथवा डाइकोफेन

यह श्वेत रंग के चूर्ण या छोटे-छोटे दाने के रूप में होता है। इसमें कोई विशेष गंध नहीं होती। यह जल में नहीं घुलता, किंतु बेंज़ीन और कार्बन टेट्राक्लोराइड में तुरंत घुल जाता है। एक भाग डी. डी. टी. पचास भाग ऐलकोहल में और दस भाग मिट्टी के तेल अथवा और किसी तेल में घुल जाता है। आज तक जितने भी कीटनाशकों का आविष्कार हुआ है, उनमें डी. डी. टी. सबसे अधिक प्रभावशाली और उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह मच्छर-मक्खी, तिलचट्टा, खटमल, पिस्सू, और उनके अंडों को नष्ट करने के लिये तेल या जल में विलयन या पायस बनाकर, अथवा सूखा ही, सब प्रकार के कीड़ों का नाश करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। पाँच प्रतिशत डी. डी. टी मिट्टी के तेल में घुलाकर प्रयुक्त किया जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका प्रभाव कई सप्ताह तक बना रहता है। जूँ मारने के लिये दो प्रतिशत डी. डी. टी. पर्याप्त है। यदि इस एक बार सिर में लगा दिया जाए और कुछ समय तक बाल न धोए जाए तो जूँ और उनके अंडे बच्चे समूल नष्ट हो जाते हैं।[2]

गैमेक्सीन

यह भी तीव्रतम कीटनाशक है। यह श्वेत मणिभीय चूर्ण होता है। इसका आधा प्रतिशत जल अथवा मिट्टी के तेल में घुलाकर बहुतायत से सब प्रकार के कीड़े मकोड़ों को नष्ट करने के लिए प्रयुक्त होता है। यह मच्छर, नाली, कूड़ा, करकट, पाँस, कंपोस्ट आदि के कीड़ों को मारने के काम में आजकल प्राय: आता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Protoplasm
  2. 2.0 2.1 कीटनाशक (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 15 जून, 2014।

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