गोविंदगुप्त: Difference between revisions

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'''गोविंदगुप्त''' [[भारत]] के प्राचीन राजवंशों में एक [[गुप्त वंश]] के प्रसिद्ध सम्राट [[कुमारगुप्त प्रथम|कुमारगुप्त]] का छोटा भाई था। [[वैशाली]] से मिली कुछ [[मिट्टी]] की मुहरों से उसका महादेवी ध्रुवस्वामिनी और महाराजाधिराज [[चंद्रगुप्त द्वितीय]] का पुत्र होना प्रगट होता है।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4 |title=गोविंदगुप्त |accessmonthday=17 फ़रवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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*गोविंदगुप्त संभवत: अपने [[पिता]] के शासन काल में [[तीरभुक्ति]] का प्रांतीय शासक था और वैशाली केंद्र से शासन करता था। किंतु कुमारगुप्त के शासन में उसका स्थानांतरण पश्चिमी [[मध्य प्रदेश]] में हो गया जान पड़ता है।
*गोविंदगुप्त संभवत: अपने [[पिता]] के शासन काल में [[तीरभुक्ति]] का प्रांतीय शासक था और वैशाली केंद्र से शासन करता था। किंतु कुमारगुप्त के शासन में उसका स्थानांतरण पश्चिमी [[मध्य प्रदेश]] में हो गया जान पड़ता है।

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गोविंदगुप्त भारत के प्राचीन राजवंशों में एक गुप्त वंश के प्रसिद्ध सम्राट कुमारगुप्त का छोटा भाई था। वैशाली से मिली कुछ मिट्टी की मुहरों से उसका महादेवी ध्रुवस्वामिनी और महाराजाधिराज चंद्रगुप्त द्वितीय का पुत्र होना प्रगट होता है।[1]

  • गोविंदगुप्त संभवत: अपने पिता के शासन काल में तीरभुक्ति का प्रांतीय शासक था और वैशाली केंद्र से शासन करता था। किंतु कुमारगुप्त के शासन में उसका स्थानांतरण पश्चिमी मध्य प्रदेश में हो गया जान पड़ता है।
  • मंदसौर से प्राप्त 467-68 ई.[2] के प्रभाकर के एक अभिलेख से भी एक गोविंदगुप्त का पता चलता है। वहाँ भी उन्हें चंद्रगुप्त का ही पुत्र कहा गया है।
  • गोविंदगुप्त की शक्ति के प्रति इंद्र को भी ईर्ष्यालु कहा गया है, जिससे भंडारकर जैसे कुछ विद्वानों ने उन्हें स्वतंत्र शासक माना है। परंतु जब तक अन्य कोई पुष्ट प्रमाण प्राप्त नहीं होता, यह नहीं निश्चित किया जा सकता वैशाली की मुहरों के गोविंदगुप्त और मंदसौर के अभिलेख वाले गोविंदगुप्त एक ही व्यक्ति थे। दोनों के एक होने में सबसे बड़ा व्यवधान समय का प्रतीत होता है।
  • चंद्रगुप्त द्वितीय की अंतिम ज्ञात तिथि 412-413 ई. है। गोविंदगुप्त उनके एक भुक्ति का शासन सँभालते थे, यह उनकी युवावस्था और अनुभव का द्योतक है। उसके बाद भी वह दो पीढ़ियों[3] तक जीवित रहे, यह असंभव तो नहीं, पर असाधारण अवश्य जान पड़ता है।
  • जो भी हो, 467-8 ई. तक वह काफ़ी वृद्ध हो चुके होंगे और अपने शासन भार को पूर्ववत वहन करते रहे होंगे, इसमें संदेह किया जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोविंदगुप्त (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 फ़रवरी, 2014।
  2. मालव संवत्‌ 524
  3. कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त

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