पहेली जून 2016: Difference between revisions
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+[[महात्मा हंसराज|लाला हंसराज]] | +[[महात्मा हंसराज|लाला हंसराज]] | ||
||[[चित्र:Mahatma-Hansraj.jpg|right| | ||[[चित्र:Mahatma-Hansraj.jpg|right|100px|महात्मा हंसराज]]'महात्मा हंसराज' [[पंजाब]] के प्रसिद्ध [[आर्य समाज|आर्य समाजी]] नेता, समाज सुधारक और शिक्षाविद थे। उनके महत्त्वपूर्ण योगदान और प्रयासों के फलस्वरूप ही देशभर में 'डी.ए.वी.' के नाम से 750 से भी अधिक विद्यालय व महाविद्यालय गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। [[स्वामी दयानन्द सरस्वती|स्वामी दयानन्द]] की स्मृति में एक शिक्षण संस्था की स्थापना का विचार बहुत समय से [[महात्मा हंसराज]] के मन में चल रहा था, पंरन्तु धन का अभाव उनके रास्ते में आ रहा था। उनके बड़े भाई लाला मुल्कराज स्वंय भी [[आर्य समाज]] के विचारों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने हंसराज के सामने प्रस्ताव रखा कि वे इस शिक्षा संस्था का अवैतनिक प्रधानाध्यापक बनना स्वीकार कर लें। उनके भरण-पोषण के लिए वे हंसराज को अपना आधा वेतन अर्थात् तीस रुपये प्रति मास देते रहेगें। व्यक्तिगत सुख के ऊपर समाज की सेवा को प्रधानता देने वाले हंसराज ने संहर्ष ही इसे स्वीकर कर लिया। इस प्रकार [[1 जून]], [[1886]] को महात्मा हंसराज 'दयानन्द एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल', लाहौर के अवैतनिक प्रधानाध्यापक बन गए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा हंसराज]] | ||
{किसके कथनानुसार "कन्नड़ लिपि विश्व की सभी लिपियों की रानी है"? | {किसके कथनानुसार "कन्नड़ लिपि विश्व की सभी लिपियों की रानी है"? | ||
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-[[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]] | -[[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]] | ||
-[[चंद्रशेखर आज़ाद]] | -[[चंद्रशेखर आज़ाद]] | ||
||[[चित्र:Rajendranath-Lahiri.jpg|border|right|100px|राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]]'राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी' [[भारत]] के अमर शहीद प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की | ||[[चित्र:Rajendranath-Lahiri.jpg|border|right|100px|राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]]'राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी' [[भारत]] के अमर शहीद प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की ज़रूरत के मद्देनजर [[शाहजहाँपुर]] में हुई बैठक के दौरान [[रामप्रसाद बिस्मिल]] ने [[अंग्रेज़]] खजाना लूटने की योजना बनायी थी। योजनानुसार दल के प्रमुख सदस्य [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]] ने [[9 अगस्त]], [[1925]] को [[लखनऊ]] के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी बिस्मिल के नेतृत्व में [[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]], [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेज़ सरकार ने मुकदमा चलाकर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला ख़ाँ आदि को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]] | ||
{'कांग्रेस फ़ॉर डेमोक्रेसी' नाम की पार्टी का गठन किसने किया था? | {'कांग्रेस फ़ॉर डेमोक्रेसी' नाम की पार्टी का गठन किसने किया था? | ||
Line 217: | Line 217: | ||
-[[दुर्गाबाई देशमुख]] | -[[दुर्गाबाई देशमुख]] | ||
+[[पंडिता रमाबाई]] | +[[पंडिता रमाबाई]] | ||
||[[चित्र:Pandita-ramabai.jpg|right| | ||[[चित्र:Pandita-ramabai.jpg|right|100px|पंडिता रमाबाई]]'पंडिता रमाबाई' प्रख्यात विदुषी समाज सुधारक और भारतीय नारियों को उनकी पिछड़ी हुई स्थिति से ऊपर उठाने के लिए समर्पित थीं। अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए [[पंडिता रमाबाई]] 1883 ई. में इंग्लैण्ड गई थीं। वहां दो [[वर्ष]] तक [[संस्कृत]] की प्रोफेसर रहने के बाद वे [[अमेरिका]] पहुंचीं। उन्होंने इंग्लैंड में [[ईसाई धर्म]] स्वीकार कर लिया था। अमेरिका में उनके प्रयत्न से "रमाबाई एसोसिएशन" बना, जिसने [[भारत]] के विधवा आश्रम का 10 वर्ष तक खर्च चलाने का जिम्मा लिया। इसके बाद वे [[1889]] में भारत लौटीं और विधवाओं के लिए '''शारदा सदन''' की स्थापना की। बाद में "कृपा सदन" नामक एक और महिला आश्रम बनाया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पंडिता रमाबाई]] | ||
{अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है? | {अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है? | ||
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-[[रामचंद्र शुक्ल]] | -[[रामचंद्र शुक्ल]] | ||
-[[रामधारी सिंह 'दिनकर']] | -[[रामधारी सिंह 'दिनकर']] | ||
||[[चित्र:Bhadant Anand Kausalyayan.JPG|border|right| | ||[[चित्र:Bhadant Anand Kausalyayan.JPG|border|right|100px|भदन्त आनन्द कौसल्यायन]]'भदन्त आनन्द कौसल्यायन' प्रसिद्ध [[बौद्ध]] विद्वान, समाज सुधारक, लेखक तथा [[पालि भाषा]] के मूर्धन्य विद्वान् थे। ये पूरे जीवन घूम-घूमकर राष्ट्रभाषा [[हिन्दी]] का प्रचार-प्रसार करते रहे। [[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]] बीसवीं शती में [[बौद्ध धर्म]] के सर्वश्रेष्ठ क्रियाशील व्यक्तियों में गिने जाते थे। ये दस वर्षों तक 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति', वर्धा के प्रधानमंत्री रहे थे। ये देशवासियों की समता के समर्थक थे। भदन्त आनन्द जी ने [[हिन्दी साहित्य]] के संवर्धन के लिए बहुत काम किया। बौद्ध जातक कथाओं को हिन्दी में उपलब्ध कराने का श्रेय उनको ही है। उनकी कुछ अन्य कृतियां भी प्रसिद्ध हैं, जैसे- 'जो भूल न सका', 'जो लिखना पड़ा', 'रेल का टिकट', 'दर्शन-वेद से मार्क्स तक' तथा '''राम कहानी राम की जबानी''' आदि।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]] | ||
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