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     '''शास्त्रीय नृत्य''' प्राचीन [[हिन्दू]] ग्रंथों के सिंद्धातों एवं तकनीकों और [[नृत्य]] के तकनीकी ग्रंथों तथा [[कला]] संबद्वता पर पूर्ण या आंशिक रूप से आधारित है। प्रारंभिक तौर पर यह माना जाता है कि [[भरत नाट्यशास्त्र]] को द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास लिखा गया था। शास्त्रीय नृत्य की अधिकतम प्रचलित प्रणालियाँ उच्च स्तर की विस्तृत प्रणालियों से शासित होती थीं और इनका उदय आम आदमी के बीच से ही होता था। शास्त्रीय नृत्य और लोक नृत्य के बीच मुख्य अंतर यह है कि यह पूर्व में जान-बूझकर कलात्मकता द्वारा किया गया प्रयास है। नृत्य और नाटक कला अपने अग्रिम सिंद्वातों और शास्त्रों के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं। भावना में चित्रित अवधारणा, व्यक्तिगत नृत्य की मोहकता और पृथकता की कला प्रवीणता तीनों ही शास्त्रीय नृत्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। '''[[शास्त्रीय नृत्य|.... और पढ़ें]]'''</Poem>
     '''शास्त्रीय नृत्य''' प्राचीन [[हिन्दू]] ग्रंथों के सिंद्धातों एवं तकनीकों और [[नृत्य]] के तकनीकी ग्रंथों तथा [[कला]] संबद्वता पर पूर्ण या आंशिक रूप से आधारित है। प्रारंभिक तौर पर यह माना जाता है कि [[भरत नाट्यशास्त्र]] को द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास लिखा गया था। शास्त्रीय नृत्य की अधिकतम प्रचलित प्रणालियाँ उच्च स्तर की विस्तृत प्रणालियों से शासित होती थीं और इनका उदय आम आदमी के बीच से ही होता था। शास्त्रीय नृत्य और [[लोक नृत्य]] के बीच मुख्य अंतर यह है कि यह पूर्व में जान-बूझकर कलात्मकता द्वारा किया गया प्रयास है। नृत्य और नाटक कला अपने अग्रिम सिंद्वातों और शास्त्रों के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं। भावना में चित्रित अवधारणा, व्यक्तिगत नृत्य की मोहकता और पृथकता की कला प्रवीणता तीनों ही शास्त्रीय नृत्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। '''[[शास्त्रीय नृत्य|.... और पढ़ें]]'''</Poem>
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Revision as of 09:52, 5 October 2012

  • यहाँ हम भारतीय कला से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  • स्वतंत्रता के बाद भारतीय साहित्य, संगीत, नाटक और चित्रकला आदि को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय और राज्य कला अकादमियों की स्थापना की गयी।


  1. REDIRECTसाँचा:विशेष2

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  • भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय और रसात्मक तत्त्व उसके कला रूपों में प्रकट हुए हैं।
  • मानवीय संबंधों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से चेतना को 'कला' उजागार करती है।
  • कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है। -महादेवी वर्मा
  • भारतकोश पर लेखों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती रहती है जो आप देख रहे वह "प्रारम्भ मात्र" ही है...
विशेष आलेख

right|100px|भरतनाट्यम नृत्य|link=भरतनाट्यम नृत्य

  • जयमंगल के मतानुसार चौंसठ कलाओं में से यह एक कला है।
  • 'नृत्य में करण, अंगहार, विभाव, भाव, अनुभाव और रसों की अभिव्यक्ति की जाती है। नृत्य के दो प्रकार हैं- नाट्य और अनाट्य
  • स्वर्ग-नरक या पृथ्वी के निवासियों की कृतिका अनुकरण को 'नाट्य' कहा जाता है और अनुकरण-विरहित नृत्य को 'अनाट्य' कहा जाता है।
  • भारत में शास्त्रीय और लोक परम्पराओं के ज़रिये एक प्रकार की नृत्य-नाटिका का उदय हुआ है। जो पूर्णतः एक नाट्य स्वरूप है।
  • भारत में नृत्य की जड़ें प्राचीन परंपराओं में है। इस विशाल उपमहाद्वीप में नृत्यों की विभिन्न विधाओं ने जन्म लिया है।
  • वर्तमान समय में भारत में नृत्य की लोकप्रियता इस तथ्य से आंकी जा सकती है कि शायद ही कोई ऐसी भारतीय फ़िल्म होगी, जिसमें आधे दर्जन नृत्य न हों।
  • भारत की सभी संस्कृतियों में किसी न किसी रूप में नृत्य विद्यमान है। .... और पढ़ें
चयनित लेख

100px|right|बिरजू महाराज|शास्त्रीय नृत्य

     शास्त्रीय नृत्य प्राचीन हिन्दू ग्रंथों के सिंद्धातों एवं तकनीकों और नृत्य के तकनीकी ग्रंथों तथा कला संबद्वता पर पूर्ण या आंशिक रूप से आधारित है। प्रारंभिक तौर पर यह माना जाता है कि भरत नाट्यशास्त्र को द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास लिखा गया था। शास्त्रीय नृत्य की अधिकतम प्रचलित प्रणालियाँ उच्च स्तर की विस्तृत प्रणालियों से शासित होती थीं और इनका उदय आम आदमी के बीच से ही होता था। शास्त्रीय नृत्य और लोक नृत्य के बीच मुख्य अंतर यह है कि यह पूर्व में जान-बूझकर कलात्मकता द्वारा किया गया प्रयास है। नृत्य और नाटक कला अपने अग्रिम सिंद्वातों और शास्त्रों के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं। भावना में चित्रित अवधारणा, व्यक्तिगत नृत्य की मोहकता और पृथकता की कला प्रवीणता तीनों ही शास्त्रीय नृत्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। .... और पढ़ें

कुछ लेख
कला श्रेणी वृक्ष
चयनित चित्र

[[चित्र:Painting-Delhi-Crafts-Museum.jpg|300px|चित्रकला, हस्त शिल्पकला संग्रहालय, दिल्ली|center]]



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