किशन महाराज: Difference between revisions

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किशन महाराज का जिंदगी जीने का अन्दाज़ बहुत बिंदास रहा। उन्होंने जिंदगी को हमेशा 'आज' के आईने में देखा और अपनी मर्जी के मुताबिक बिंदास जिया। लुंगी कुर्ते में पूरे मुहल्ले की टहलान और पान की दुकान पर मित्रों के साथ जुटान ताजिंदगी उनका शगल बना रहा। मर्जी हुई तो भैंरो सरदार को एक्केपर साथ बैठाया और घोड़ी को हांक दिया। तबीयत में आया तो काइनेटिक होंडा में किक मारी और पूरे शहर का चक्कर मार आए।
किशन महाराज का जिंदगी जीने का अन्दाज़ बहुत बिंदास रहा। उन्होंने जिंदगी को हमेशा 'आज' के आईने में देखा और अपनी मर्जी के मुताबिक बिंदास जिया। लुंगी कुर्ते में पूरे मुहल्ले की टहलान और पान की दुकान पर मित्रों के साथ जुटान ताजिंदगी उनका शगल बना रहा। मर्जी हुई तो भैंरो सरदार को एक्केपर साथ बैठाया और घोड़ी को हांक दिया। तबीयत में आया तो काइनेटिक होंडा में किक मारी और पूरे शहर का चक्कर मार आए।
====दिनचर्या====  
====दिनचर्या====  
उनकी दिनचर्या पूजा पाठ, टहलना, रियाज, अपने शौक पूरे करना, मित्रों से गप्पे मारना था। यह सब जिंदगी की आखिरी घड़ी तक जारी रहा। वे बड़ी बेबाकी से कहते थे कि मैं कोई उलझन या दुविधा नहीं पालता बल्कि उसे जल्दी से जल्दी दूर कर देता हूं। ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी। साठ साल पहले शेविंग के दौरान मूंछें सेट करने में एक तरफ छोटी तो दूसरी तरफ बड़ी हो जाने की दिक्कत महसूस की तो झट से उसे पूरी तरह साफ करा दिया। इसके बाद फिर कभी मूंछ रखने की जहमत नहीं उठाई। उनकी दिनचर्या बड़ी नियमित थी। प्रात: छह बजे तक उठ जाते थे। बगीचे की सफाई, चिड़ियों को दाना पानी और फिर टहलने निकल जाते थे।  
उनकी दिनचर्या पूजा पाठ, टहलना, रियाज, अपने शौक पूरे करना, मित्रों से गप्पे मारना था। यह सब जिंदगी की आखिरी घड़ी तक जारी रहा। वे बड़ी बेबाकी से कहते थे कि मैं कोई उलझन या दुविधा नहीं पालता बल्कि उसे जल्दी से जल्दी दूर कर देता हूं। ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी। साठ साल पहले शेविंग के दौरान मूंछें सेट करने में एक तरफ छोटी तो दूसरी तरफ बड़ी हो जाने की दिक्कत महसूस की तो झट से उसे पूरी तरह साफ़ करा दिया। इसके बाद फिर कभी मूंछ रखने की जहमत नहीं उठाई। उनकी दिनचर्या बड़ी नियमित थी। प्रात: छह बजे तक उठ जाते थे। बगीचे की सफाई, चिड़ियों को दाना पानी और फिर टहलने निकल जाते थे।  
====पसंद-नापसंद====
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किशन महाराज का खानपान का भी अपना अलग स्टाइल था। [[दाल]], रोटी, [[चावल]] के साथ छेना या [[केला]] और लौकी चाप उन्हें काफी पसंद था। गरमी के सीजन में दोपहर में सप्ताह में दो तीन रोज सत्तू भी खाते थे। परंपरागत बनारसी नाश्ता पूड़ी-कचौड़ी उन्हें पसंद नहीं था। कभी-कभार किसी पार्टी में पंडित जी पैंट-शर्ट में भी जलवा बिखेरते दिख जाते थे। मगर अलीगढ़ी पायजामा और कुर्ता उनका पसंदीदा पहनावा था। गहरेबाजी, पतंगबाजी और शिकार के शौकीन रहे पंडित जी [[क्रिकेट]] और [[हॉकी]] में भी खासी दिलचस्पी रखते थे।<ref>{{cite web |url=http://www.merikhabar.com/News/%E0%A4%A4%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9F_%E0%A4%AA%E0%A4%82._%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%A8_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%87___N968.html |title=तबला सम्राट पं. किशन महाराज नहीं रहे |accessmonthday=12 अक्तूबर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=मेरी ख़बर डॉट कॉम |language=हिन्दी }}</ref>
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Revision as of 14:11, 29 January 2013

किशन महाराज
पूरा नाम पंडित किशन महाराज
जन्म 3 सितंबर, 1923
जन्म भूमि काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 4 मई, 2008
मृत्यु स्थान वाराणसी
कर्म-क्षेत्र तबला वादक
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री, पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी सम्मान
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी किशन महाराज तबले के उस्ताद होने के साथ साथ मूर्तिकार, चित्रकार, वीर रस के कवि और ज्योतिष के मर्मज्ञ भी थे।

पंडित किशन महाराज (अंग्रेज़ी: Pt. Kishan Maharaj, जन्म: 3 सितंबर, 1923 - मृत्यु: 4 मई, 2008) भारत के सुप्रसिद्ध तबला वादक थे। ये बनारस घराने के वादक थे। इन्हें कला क्षेत्र में योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा सन 1973 में पद्म श्री और सन 2002 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था। किशन महाराज तबले के उस्ताद होने के साथ साथ मूर्तिकार, चित्रकार, वीर रस के कवि और ज्योतिष के मर्मज्ञ भी थे।

जीवन परिचय

किशन महाराज का जन्म काशी के कबीरचौरा मुहल्ले में 3 सितंबर 1923 को एक संगीतज्ञ के परिवार में हुआ। कृष्ण जन्माष्टमी पर आधी रात को जन्म होने के कारण उनका नाम किशन पड़ा। उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्षों में पिता पंडित हरि महाराज से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की। पिता के देहांत के बाद उनके चाचा एवं पंडित बलदेव सहाय के शिष्य पंडित कंठे महाराज ने उनकी शिक्षा का कार्यभार संभाला।

तबला वादन

किशन महाराज ने तबले की थाप की यात्रा शुरू करने के कुछ साल के अंदर ही उस्ताद फैय्याज खान, पंडित ओंकार ठाकुर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, पंडित भीमसेन जोशी, वसंत राय, पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान जैसे बड़े नामों के साथ संगत की। कई बार उन्होंने संगीत की महफिल में एकल तबला वादन भी किया। इतना ही नहीं नृत्य की दुनिया के महान हस्ताक्षर शंभु महाराज, सितारा देवी, नटराज गोपी कृष्ण और बिरजू महाराज के कार्यक्रमों में भी उन्होंने तबले पर संगत की। उन्होंने एडिनबर्ग और वर्ष 1965 में ब्रिटेन में कॉमनवेल्थ कला समारोह के साथ ही कई अवसरों पर अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर प्रतिष्ठा अर्जित की। उनके शिष्यों में वर्तमान समय के जाने माने तबला वादक पंडित कुमार बोस, पंडित बालकृष्ण अय्यर, सुखविंदर सिंह नामधारी सहित अन्य नाम शामिल हैं।

प्रभावशाली व्यक्तित्व

आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे, माथे पर एक लाल रंग का टिक्का हमेशा लगा रहता था, वे जब संगीत सभाओं में जाते, संगीत सभायें लय ताल से परिपूर्ण हो गंधर्व सभाओं की तरह गीत, गति और संगीतमय हो जाती। तबला बजाने के लिए वैसे पद्मासन में बैठने की पद्धत प्रचलित हैं, किंतु स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी दोनों घुटनों के बल बैठ कर वादन किया करते थे, ख्याल गायन के साथ उनके तबले की संगीत श्रोताओं पर जादू करती थी, उनके ठेके में एक भराव था, और दांये और बांये तबले का संवाद श्रोताओं और दर्शकों पर विशिष्ट प्रभाव डालता था। अपनी युवा अवस्था में में पंडित जी ने कई फिल्मो में तबला वादन किया, जिनमे नीचनगर, आंधियां, बड़ी माँ आदि फिल्मे प्रमुख हैं। कहते हैं न महान कलाकार एक महान इंसान भी होते हैं, ऐसे ही महान आदरणीय स्वर्गीय पंडित किशन महाराज जी भी थे, उन्होंने बनारस में दूरदर्शन केन्द्र स्थापित करने के लिए भूख हड़ताल भी की और संगत कलाकारों के प्रति सरकार की ढुलमुल नीति का भी पुरजोर विरोध किया।[1]

बिंदास जीवन शैली

किशन महाराज का जिंदगी जीने का अन्दाज़ बहुत बिंदास रहा। उन्होंने जिंदगी को हमेशा 'आज' के आईने में देखा और अपनी मर्जी के मुताबिक बिंदास जिया। लुंगी कुर्ते में पूरे मुहल्ले की टहलान और पान की दुकान पर मित्रों के साथ जुटान ताजिंदगी उनका शगल बना रहा। मर्जी हुई तो भैंरो सरदार को एक्केपर साथ बैठाया और घोड़ी को हांक दिया। तबीयत में आया तो काइनेटिक होंडा में किक मारी और पूरे शहर का चक्कर मार आए।

दिनचर्या

उनकी दिनचर्या पूजा पाठ, टहलना, रियाज, अपने शौक पूरे करना, मित्रों से गप्पे मारना था। यह सब जिंदगी की आखिरी घड़ी तक जारी रहा। वे बड़ी बेबाकी से कहते थे कि मैं कोई उलझन या दुविधा नहीं पालता बल्कि उसे जल्दी से जल्दी दूर कर देता हूं। ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी। साठ साल पहले शेविंग के दौरान मूंछें सेट करने में एक तरफ छोटी तो दूसरी तरफ बड़ी हो जाने की दिक्कत महसूस की तो झट से उसे पूरी तरह साफ़ करा दिया। इसके बाद फिर कभी मूंछ रखने की जहमत नहीं उठाई। उनकी दिनचर्या बड़ी नियमित थी। प्रात: छह बजे तक उठ जाते थे। बगीचे की सफाई, चिड़ियों को दाना पानी और फिर टहलने निकल जाते थे।

पसंद-नापसंद

किशन महाराज का खानपान का भी अपना अलग स्टाइल था। दाल, रोटी, चावल के साथ छेना या केला और लौकी चाप उन्हें काफी पसंद था। गरमी के सीजन में दोपहर में सप्ताह में दो तीन रोज सत्तू भी खाते थे। परंपरागत बनारसी नाश्ता पूड़ी-कचौड़ी उन्हें पसंद नहीं था। कभी-कभार किसी पार्टी में पंडित जी पैंट-शर्ट में भी जलवा बिखेरते दिख जाते थे। मगर अलीगढ़ी पायजामा और कुर्ता उनका पसंदीदा पहनावा था। गहरेबाजी, पतंगबाजी और शिकार के शौकीन रहे पंडित जी क्रिकेट और हॉकी में भी खासी दिलचस्पी रखते थे।[2]

सम्मान और पुरस्कार

लय भास्कर, संगीत सम्राट, काशी स्वर गंगा सम्मान, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, ताल चिंतामणि, लय चक्रवती, उस्ताद हाफिज़ अली खान व अन्य कई सम्मानों के साथ पद्मश्रीपद्म विभूषण अलंकरण से उन्हें नवाजा गया।

निधन

किशन महाराज 3 सितम्बर 1923 की आधी रात को ही इस धरती पर आए थे और 4 मई, 2008 की आधी रात को ही वे इस धरती को छोड़, स्वर्ग की सभा में देवों के साथ संगत करने हमेशा के लिए चले गए। उनके जाने से भारत ने एक युगजयी संगीत दिग्गज को खो दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जब मिला तबले को वरदान (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) आवाज़। अभिगमन तिथि: 12 अक्तूबर, 2012।
  2. तबला सम्राट पं. किशन महाराज नहीं रहे (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) मेरी ख़बर डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 12 अक्तूबर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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