ओणम: Difference between revisions

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जिस तरह उत्तरी भारत में [[विजय दशमी|दशहरे]] का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार [[केरल]] में ओणम का त्यौहार मनाया जाता है। अन्तर केवल इतना है कि दशहरे में दस दिन पहले [[रामलीला|राम लीलाओं]] का आयोजन होता है और ओणम से दस दिन पहले घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम चलता है। दशहरा हर वर्ष क्वार शुक्ल की दशमी को मनाया जाता है, जबकि ओणम हर वर्ष [[श्रावण]] शुक्ल की त्रयोदशी को मनाया जाता है। ओणम को 'तिरू-ओणभ' भी कहा जाता है।
जिस तरह उत्तरी भारत में [[विजय दशमी|दशहरे]] का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार [[केरल]] में ओणम का त्यौहार मनाया जाता है। अन्तर केवल इतना है कि दशहरे में दस दिन पहले [[रामलीला|राम लीलाओं]] का आयोजन होता है और ओणम से दस दिन पहले घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम चलता है। दशहरा हर वर्ष क्वार शुक्ल की दशमी को मनाया जाता है, जबकि ओणम हर वर्ष [[श्रावण]] शुक्ल की त्रयोदशी को मनाया जाता है। ओणम को 'तिरू-ओणभ' भी कहा जाता है।
==मनाने का समय==
ओणम, तिरुवोणम नक्षत्र का लघु रूप है तथा यह पर्व मलयाली चिंगम मास (श्रावण) में पड़ता है। अंग्रेज़ी कलेन्डर के अनुसार यह जुलाई–अगस्त में मनाया जाता है। मई के आते ही काले बादलों की छटा और बिजली की गरज–चमक समस्त केरल प्रान्त को शीतल जल से सराबोर कर देती है। मानसून के इस लुभावने आगमन के साथ ही केरल अपने विश्वविख्यात ओणम मेले के लिए तैयार हो जाता है। विभिन्न प्रकार के फूलों से लदी यहाँ की धरती ओणम का स्वागत करती है। ओणम इस राज्य का सबसे लोकप्रिय और रंगीन उत्सव है।
==ओणम का अर्थ==
==ओणम का अर्थ==
वास्तव में ओणम का अर्थ है "श्रावण"। श्रावण के महीने में मौसम बहुत खुशगवार हो जाता हैं चारों तरफ़ हरियाली छा जाती हैं रंग–बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सारा चमन महक उठता है। केरल में चाय, अदरक, इलायची, काली मिर्च तथा धान की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है। नारीयल और ताड़ के वृक्षों से छाए हुए जल से भरे तालाब बहुत सुन्दर लगते हैं। लोगों में नयी–नयी आशाएँ और नयी–नयी उमंगें भर जाती हैं। लोग खुशी में भरकर श्रावण देवता और फूलों की देवी का पूजन करते हैं।  
वास्तव में ओणम का अर्थ है "श्रावण"। श्रावण के महीने में मौसम बहुत खुशगवार हो जाता हैं चारों तरफ़ हरियाली छा जाती हैं, रंग–बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सारा चमन महक उठता है। केरल में चाय, अदरक, इलायची, काली मिर्च तथा धान की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है। नारियल और ताड़ के वृक्षों से छाए हुए जल से भरे तालाब बहुत सुन्दर लगते हैं। लोगों में नयी–नयी आशाएँ और नयी–नयी उमंगें भर जाती हैं। लोग खुशी में भरकर श्रावण देवता और फूलों की देवी का पूजन करते हैं।  
ओणम के त्यौहार से दस दिन पहले बच्चे प्रतिदिन बाग़ों में, जंगलों में तथा फुलवारियों में फूल चुनने जाते हैं और फूलों की गठिरयाँ बाँध–बाँधकर अपने घर लाते हैं। घर का एक कमरा फूल घर बनाया जाता है। फूलों की गठिरयाँ उसमें रखते हैं। उस कमरे के बाहर लीप–पोत कर एक चौंक तैयार किया जाता है और उसके चारों तरफ़ गोलाई में फूल सजाए जाते हैं। दरवाज़ों, खिड़कियों और सब कमरों को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। जैसे–जैसे ओणम का मुख्य त्यौहार निकट आता है, वैसे–वैसे फूलों की सजावट बढ़ती जाती है।  
==तैयारियाँ==
इस तरह से आठ दिन तक फूलों की सजावट का कार्यक्रम चलता है। नौवें दिन हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है। औरतें विष्णु भगवान की पूजा के गीत गाती हैं और ताली बजाकर गोलाई में नाचती हैं। इस नाच को थप्पतिकलि कहते हैं। बच्चे वावन अवतार के पूजन के गीत गाते हैं। इन गीतों को ओणम लप्ण कहते हैं। रात को हर घर में गणेश जी तथा श्रावण देव की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनके सामने मंगल दीप जलाए जाते हैं। इस दिन एक विशेष प्रकार का पकवान बनाया जाता है, जिसे पूवड़ कहते हैं।  
ओणम के त्यौहार से दस दिन पहले बच्चे प्रतिदिन बाग़ों में, जंगलों में तथा फुलवारियों में फूल चुनने जाते हैं और फूलों की गठिरयाँ बाँध–बाँधकर अपने घर लाते हैं। घर का एक कमरा फूल घर बनाया जाता है। फूलों की गठिरयाँ उसमें रखते हैं। उस कमरे के बाहर लीप–पोत कर एक चौंक तैयार किया जाता है और उसके चारों तरफ़ गोलाई में फूल सजाए जाते हैं। दरवाज़ों, खिड़कियों और सब कमरों को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। जैसे - जैसे ओणम का मुख्य त्यौहार निकट आता है, वैसे - वैसे फूलों की सजावट बढ़ती जाती है।  
दसवें दिन ओणम का मुख्य त्यौहार मनाया जाता है। जोकि त्रयोदशी के दिन होता है। इस दिन घर के सभी सदस्य सुबह सवेरे उठ कर स्नान कर लेते हैं और घर का बुज़ुर्ग सबको नये–नये कपड़े पहनने के लिए देता है। लड़कियाँ एक विशेष प्रकार का पकवान, जिसे वाल्लसन कहते हैं, बना कर श्रावण देवता, गणेश जी, विष्णु भगवान, वावन भगवान तथा फूलों की देवी पर चढ़ाती हैं और लड़के तीर चलाकर उस चढ़ाय हुए पकवान को वापस लौटा कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।  
==मूर्ति की स्थापना==
तिरू–ओणम के दिन प्रातः नाश्ते में भूने हुए या भाप में पकाए हुए केले खाए जाते हैं। इस नाश्ते को नेन्द्रम कहते हैं। यह एक ख़ास केले से तैयार होता है, जिसे नेन्द्रम काय कहते हैं। यह केले केवल केरल में ही पैदा होते हैं। उस दिन का खाना चावल, दाल, पापड़ और केलों से बनाया जाता है और बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाए जाते हैं और हर एक घर में पूजापाठ तथा धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।  
इस तरह से आठ दिन तक फूलों की सजावट का कार्यक्रम चलता है। नौवें दिन हर एक घर में [[विष्णु]] भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है। औरतें विष्णु भगवान की पूजा के गीत गाती हैं और ताली बजाकर गोलाई में नाचती हैं। इस नाच को 'थप्पतिकलि' कहते हैं। बच्चे [[वामन अवतार]] के पूजन के गीत गाते हैं। इन गीतों को 'ओणम लप्ण' कहते हैं। रात को हर घर में [[गणेश]] जी तथा श्रावण देव की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनके सामने मंगलदीप जलाए जाते हैं। इस दिन एक विशेष प्रकार का पकवान बनाया जाता है, जिसे 'पूवड़' कहते हैं।
इसके अतिरिक्त नौका दौड़ भी होती है। नौका चलाने वाले एक ख़ास क़िस्म का गीत गाते हैं। जिसे वांची पट्टक्कल यानी की नाव का गीत कहते हैं। नौका की दौड़ को वल्लमुकली कहते हैं। इस तरह से ओणम का त्यौहार मनाकर संध्या के समय विष्णु भगवान, गणेश जी, श्रावण देव तथा वावन देव और फूलों की देवी की मूर्तियों को एक तख्ते पर रखकर उनका पूजन किया जाता है और फिर आदर सहित किसी तालाब या नदी में ले जाकर उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
==मुख्य त्योहार==
 
दसवें दिन ओणम का मुख्य त्यौहार मनाया जाता है। जोकि त्रयोदशी के दिन होता है। इस दिन घर के सभी सदस्य सुबह सवेरे उठ कर स्नान कर लेते हैं और घर का बुज़ुर्ग सबको नये–नये कपड़े पहनने के लिए देता है। लड़कियाँ एक विशेष प्रकार का पकवान, जिसे 'वाल्लसन' कहते हैं, बना कर श्रावण देवता, गणेश जी, विष्णु भगवान, वामन भगवान तथा फूलों की देवी पर चढ़ाती हैं और लड़के तीर चलाकर उस चढ़ाये हुए पकवान को वापस लौटा कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।  
ओणम का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
==तिरू ओणम==
कहा जाता है कि जब परशुरामजी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी, तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने सहयाद्री पर्वत की गुफ़ा में बैठ कर जल देवता वरुण की तपस्या की। वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुरामजी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना परशा समुद्र में फैंको। जहाँ तक तुम्हारा परशा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी और उसका नाम परशु क्षेत्र होगा। परशुरामजी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को केरल या मलयालम कहते हैं। परशुरामजी ने समुद्र से भूमि प्राप्त करके वहाँ पर एक विष्णु भगवान का मन्दिर बनवाया था। वही मन्दिर अब भी तिरूक्ककर अप्पण के नाम से प्रसिद्ध है और जिस दिन परशुरामजी ने मन्दिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रियोदशी थी। इसलिए उस दिन ओणम का त्यौहार मनाया जाता है। तथा हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है।
तिरू ओणम के दिन प्रातः नाश्ते में भूने हुए या भाप में पकाए हुए केले खाए जाते हैं। इस नाश्ते को 'नेन्द्रम' कहते हैं। यह एक ख़ास केले से तैयार होता है, जिसे 'नेन्द्रम काय' कहते हैं। यह केले केवल [[केरल]] में ही पैदा होते हैं। उस दिन का खाना चावल, दाल, पापड़ और केलों से बनाया जाता है और बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाए जाते हैं और हर एक घर में पूजापाठ तथा धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।  
इसके अतिरिक्त दूसरी कथा वावन अवतार की है। केरल में बलि नाम का राजा राज्य करता था। उसने सौ यज्ञ करके इन्द्र देवता का सिंहासन छीनना चाहा। विष्णु भगवान ने उसे सजा देने के लिए वावन अवतार धारण किया और एक छोटे से ब्रह्मचारी का रूप बनाकर बलि से तीन क़दम भूमि का दान माँगा। राजा बलि के तीन क़दम भूमि दान देने पर उन्होंने अपने दो क़दमों में सारा ब्राह्मांड माप लिया और तीसरे क़दम में बलि का जिस्म माप लिया। लेकिन बलि ने अच्छे कर्म किए थे, इसलिए भगवान विष्णु ने उससे वरदान माँगने के लिए कहा, तब राजा बलि ने विष्णु भगवान से वरदान माँगा कि वह हर वर्ष अपने प्रिय देश केरल के दर्शन करना चाहता है। इसलिए उसे हर वर्ष केरल में आने की अनुमति दी जाए। विष्णु भगवान ने बलि को हर वर्ष केरल में आने का वरदान दे दिया। उसी दिन से राजा बलि हर वर्ष केरल की यात्रा करने के लिए ओणम के त्यौहार पर केरल में आते हैं और केरल के लोग उनके स्वागत में ओणम का त्यौहार मनाते हैं। इस त्यौहार को केरल के सभी धर्मों के लोग मनाते हैं।
==प्राचीन परम्परायें==
 
 
(पुस्तक "हमारे त्यौहार और मेले" से) पेज नं0 — 56 पर से
ओणम – केरल का प्रमुख त्यौहार
राक्षस नरेश महाबली, विष्णु भगवान के भक्त प्रह्लाद का पौत्र था। वह उदार शासक और महापराक्रमी था। राक्षसी प्रवृत्ति के कारण महाबलि ने देवदाओं के राज्य को बलपूर्वक छीन लिया था। दुराग्रही व गर्व–दर्प से भरे राजा बलि ने देवताओं को कष्ट में डाल दिया। तब परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। प्रार्थना सुन भगवान श्री विष्णु ने वामन, अर्थात् बौने के रूप में महर्षि कश्यप व उनकी पत्नी अदिति के घर जन्म लिया। एक दिन वामन महाबलि की सभी में पहुँचे। इस ओजस्वी, ब्रह्मचारी नवयुवक को देखकर एकाएक महाबलि उनकी ओर आकर्षित हो गया। महाबलि ने श्रद्धा से इस नवयुवक का स्वागत किया और जो चाहे माँगने को कहा। श्री वामन ने शुद्धिकरण हेतु अपने लघु पैरों के तीन क़दम जितनी भूमि देने का आग्रह किया। उदार महाबलि ने यह स्वीकार कर लिया। किन्तु जैसे ही महाबलि ने यह भेंट श्रीवामन को दी, वामन का आकार एकाएक बढ़ता ही चला गया। वामन ने तब एक क़दम से पूरी पृथ्वी को ही नाप डाला तथा दूसरे क़दम से आकाश को। अब तीसरा क़दम तो रखने को स्थान बचा ही नहीं था। जब वामन ने बलि से तीसरा क़दम रखने के लिए स्थान माँगा, तब उसने नम्रता से अपना मस्तक ही प्रस्तुत कर दिया। वामन ने अपना तीसरा क़दम मस्तक पर रख महाबलि को पाताल लोक में पहुँचा दिया। बलि ने यह बड़ी उदारता और नम्रता से स्वीकार किया। चूँकि बलि की प्रजा उससे बहुत ही स्नेह रखती थी, इसीलिए श्रीविष्णु ने बलि को वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। अतः जिस दिन महाबलि केरल आते हैं, वही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है।
ओणम, तिरुवोणम नक्षत्र का लघु रूप है तथा यह पर्व मलयाली चिंगम मास (श्रावण) में पड़ता है। अंग्रेज़ी कलेन्डर के अनुसार यह जुलाई–अगस्त में मनाया जाता है। मई के आते ही काले बादलों की छटा और बिजली की गरज–चमक समस्त केरल प्रान्त को शीतल जल से सराबोर कर देती है। मानसून के इस लुभावने आगमन के साथ ही केरल अपने विश्वविख्यात ओणम मेले के लिए तैयार हो जाता है। विभिन्न प्रकार के फूलों से लदी यहाँ की धरती ओणम का स्वागत करती है। ओणम इस राज्य का सबसे लोकप्रिय और रंगीन उत्सव है।
 
दस दिन का रंगारंग पर्व
यह हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक का दस दिवसीय त्यौहार है। हर घर के आँगन में महाबलि की मिट्टी की त्रिकोणात्मक मूर्ति, जिस को 'तृक्काकारकरै अप्पन' कहते हैं, बनी रहती है। इसके चारों ओर विविध रंगों के फूलों के वृत्त चित्र बनाए जाते हैं। प्रथम दिन जितने वृत्त रचे जाते हैं, उसके दोगुने–तिगुने तथा अन्त में दसवें दिन दस गुने तक वृत्त रचे जाते हैं। केरल के लोगों के लिए यह उत्सव बंसतोत्सव से कम नहीं है। यह उत्सव केरल में मधुमास लेकर आता है। यह दिन सजने–धजने के साथ–साथ दुःख–दर्द भूलकर खुशियाँ मनाने का होता है। ऐसी मान्यता है कि तिरुवोणम के तीसरे दिन महाबलि पाताल लोक लौट जाते हैं। जितनी भी कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं, वे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं। यह त्यौहार केरलवासियों के साथ पुरानी परम्परा के रूप में जुड़ा है। ओणम वास्तविक रूप में फ़सल काटने का त्यौहार है, पर अब इसकी व्यापक मान्यता है।  
यह हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक का दस दिवसीय त्यौहार है। हर घर के आँगन में महाबलि की मिट्टी की त्रिकोणात्मक मूर्ति, जिस को 'तृक्काकारकरै अप्पन' कहते हैं, बनी रहती है। इसके चारों ओर विविध रंगों के फूलों के वृत्त चित्र बनाए जाते हैं। प्रथम दिन जितने वृत्त रचे जाते हैं, उसके दोगुने–तिगुने तथा अन्त में दसवें दिन दस गुने तक वृत्त रचे जाते हैं। केरल के लोगों के लिए यह उत्सव बंसतोत्सव से कम नहीं है। यह उत्सव केरल में मधुमास लेकर आता है। यह दिन सजने–धजने के साथ–साथ दुःख–दर्द भूलकर खुशियाँ मनाने का होता है। ऐसी मान्यता है कि तिरुवोणम के तीसरे दिन महाबलि पाताल लोक लौट जाते हैं। जितनी भी कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं, वे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं। यह त्यौहार केरलवासियों के साथ पुरानी परम्परा के रूप में जुड़ा है। ओणम वास्तविक रूप में फ़सल काटने का त्यौहार है, पर अब इसकी व्यापक मान्यता है।  
==पौराणिक आख्यान==
कहा जाता है कि जब [[परशुराम]]जी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी, तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने सह्याद्री पर्वत की गुफ़ा में बैठ कर जल देवता [[वरुण]] की तपस्या की। वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फैंको। जहाँ तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी और उसका नाम परशु क्षेत्र होगा। परशुराम जी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को 'केरल या मलयालम' कहते हैं। परशुराम जी ने समुद्र से भूमि प्राप्त करके वहाँ पर एक विष्णु भगवान का मन्दिर बनवाया था। वही मन्दिर अब भी 'तिरूक्ककर अप्पण' के नाम से प्रसिद्ध है और जिस दिन परशुराम जी ने मन्दिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रियोदशी थी। इसलिए उस दिन 'ओणम' का त्यौहार मनाया जाता है। हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है।
==वामन कथा==
राक्षस नरेश महाबली, [[विष्णु]] भगवान के भक्त [[प्रह्लाद]] का पौत्र था। वह उदार शासक और महापराक्रमी था। राक्षसी प्रवृत्ति के कारण महाबलि ने देवदाओं के राज्य को बलपूर्वक छीन लिया था। दुराग्रही व गर्व–दर्प से भरे राजा [[बलि]] ने देवताओं को कष्ट में डाल दिया। तब परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। प्रार्थना सुन भगवान श्री विष्णु ने वामन, अर्थात बौने के रूप में महर्षि [[कश्यप]] व उनकी पत्नी [[अदिति]] के घर जन्म लिया। एक दिन वामन महाबलि की सभी में पहुँचे। इस ओजस्वी, ब्रह्मचारी नवयुवक को देखकर एकाएक महाबलि उनकी ओर आकर्षित हो गया। महाबलि ने श्रद्धा से इस नवयुवक का स्वागत किया और जो चाहे माँगने को कहा।


ओणम बलि की केरल यात्रा का महोत्सव
श्री वामन ने शुद्धिकरण हेतु अपने लघु पैरों के तीन क़दम जितनी भूमि देने का आग्रह किया। उदार महाबलि ने यह स्वीकार कर लिया। किन्तु जैसे ही महाबलि ने यह भेंट श्रीवामन को दी, वामन का आकार एकाएक बढ़ता ही चला गया। वामन ने तब एक क़दम से पूरी पृथ्वी को ही नाप डाला तथा दूसरे क़दम से आकाश को। अब तीसरा क़दम तो रखने को स्थान बचा ही नहीं था। जब वामन ने बलि से तीसरा क़दम रखने के लिए स्थान माँगा, तब उसने नम्रता से अपना मस्तक ही प्रस्तुत कर दिया। वामन ने अपना तीसरा क़दम मस्तक पर रख महाबलि को पाताल लोक में पहुँचा दिया। बलि ने यह बड़ी उदारता और नम्रता से स्वीकार किया। चूँकि बलि की प्रजा उससे बहुत ही स्नेह रखती थी, इसीलिए श्रीविष्णु ने बलि को वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। अतः जिस दिन महाबलि केरल आते हैं, वही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को केरल के सभी धर्मों के लोग मनाते हैं।
==बलि की केरल यात्रा का महोत्सव==
आज भी केरलवासी महाबलि की यात्रा को ओणम के रूप में मनाते हैं। पूरा प्रान्त महोत्सव के रंग में रंग जाता है। आम के पत्तों को एक डोरी में बाँधा जाता है तथा घर के द्वारों पर टाँग दिया जाता है। रंग–बिरंगे झाड़–फानुस व नारियल घरों की शोभा को बढ़ाते हैं। मिट्टी के बर्तन के कोन (शंकू) को बलि का प्रतीक मानकर घर के आगे रखा जाता है तथा इसे चन्दन व सिन्दूर से सजाया जाता है। आँगनों में रंग–बिरंगी रंगोली के विभिन्न आकार बनाए जाते हैं।  
आज भी केरलवासी महाबलि की यात्रा को ओणम के रूप में मनाते हैं। पूरा प्रान्त महोत्सव के रंग में रंग जाता है। आम के पत्तों को एक डोरी में बाँधा जाता है तथा घर के द्वारों पर टाँग दिया जाता है। रंग–बिरंगे झाड़–फानुस व नारियल घरों की शोभा को बढ़ाते हैं। मिट्टी के बर्तन के कोन (शंकू) को बलि का प्रतीक मानकर घर के आगे रखा जाता है तथा इसे चन्दन व सिन्दूर से सजाया जाता है। आँगनों में रंग–बिरंगी रंगोली के विभिन्न आकार बनाए जाते हैं।  
इस पर्व का एक और विशेष कार्यक्रम है, पुष्पों को गोलाकार रूप में सजाकर रखना। इसे ही 'अट्टम या ओणम' कहा जाता है। प्रतिदिन नाना प्रकार के पुष्प गोबर के सूखे कंडे पर लगाए जाते हैं तथा इन्हें घर के आगे रखा जाता है। अट्टम के सौन्दर्य व इसके विभिन्न आकारों की स्पर्धा भी होती है। स्त्रियाँ समवेत स्वर में 'काई, केत, कली' व 'कुम्मी' लयबद्ध होकर गाती हैं। घर का मुखिया परिवार के सदस्यों में नववस्त्र बाँटता है। इस वेशभूषा को ओणप्पणं कहते हैं। पुराने समय में केरल की स्त्रियाँ श्वेत साड़ियाँ पहनती थीं। इन साड़ियों के चारों ओर स्वर्णिम बूटे लगाए जाते थे। कमर से ऊपर का शरीर एक ओर छोटी धोती 'मेलमुड़' से ढका होता था। आधुनिक समय में केरल की स्त्रियाँ भी अन्य क्षेत्रों भाँति साड़ियाँ या सलवार कमीज़ पहनती हैं।  
इस पर्व का एक और विशेष कार्यक्रम है, पुष्पों को गोलाकार रूप में सजाकर रखना। इसे ही 'अट्टम या ओणम' कहा जाता है। प्रतिदिन नाना प्रकार के पुष्प गोबर के सूखे कंडे पर लगाए जाते हैं तथा इन्हें घर के आगे रखा जाता है। अट्टम के सौन्दर्य व इसके विभिन्न आकारों की स्पर्धा भी होती है। स्त्रियाँ समवेत स्वर में 'काई, केत, कली' व 'कुम्मी' लयबद्ध होकर गाती हैं। घर का मुखिया परिवार के सदस्यों में नववस्त्र बाँटता है। इस वेशभूषा को ओणप्पणं कहते हैं। पुराने समय में केरल की स्त्रियाँ श्वेत साड़ियाँ पहनती थीं। इन साड़ियों के चारों ओर स्वर्णिम बूटे लगाए जाते थे। कमर से ऊपर का शरीर एक ओर छोटी धोती 'मेलमुड़' से ढका होता था। आधुनिक समय में केरल की स्त्रियाँ भी अन्य क्षेत्रों भाँति साड़ियाँ या सलवार कमीज़ पहनती हैं।  
==मनभावन व्यंजन==
तिरुओणम के दिन प्रातः ही स्नान आदि करके सब लोग नये–नये कपड़े पहनते हैं। बड़े लोग छोटों को आणप्पुड़वा अर्थात्–ओणम के कपड़े प्रदान करते हैं। गाँव के युवक गेंद खेलते हैं। स्त्रियाँ इकट्ठी होकर तालियाँ बजाकर गाती हैं। घरों में केले के पकवान जिसे 'पलनुरनकु' कहते हैं, बनाए जाते हैं। तिरुओणम के पहले ही नयी फ़सल के अनाजों से खलिहान भर जाते हैं। सुख—समृद्धि के इस अवसर पर ओणम का त्यौहार पूरी खुशी के साथ मनाया जाता है।
ओनसदया नामक भोज इस समारोह का सबसे आकर्षक कार्यक्रम है। नाना प्रकार के व्यंजनों में विभिन्न प्रकार की शाक–सब्जियों का प्रयोग किया जाता है। भोजन को कदली के पत्तों में परोसा जाता है। नाना प्रकार के भोज्य पदार्थों तथा तरकारियाँ जिन्हें 'पचड़ी–पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर' इत्यादि कहा जाता है। पापड़ व केले के चिप्स भी बनाए जाते हैं। दूध की खीर जिसे 'पायसम' कहते हैं, ओणम का विशेष भोजन है।
ये सभी पाक व्यंजन 'निम्बूदरी' ब्राह्मणों की पाक–कला की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं तथा उनकी संस्कृति के विस्तार में अह्म भूमिका निभाते हैं। कहते हैं कि केरल में अठारह प्रकार के दुग्ध पकवान हैं। इन्हें ऋतु फलों जैसे केला, आम आदि से बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कई प्रकार की दालें जैसे मूंग व चना के आटे का प्रयोग भी विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है।
==नौका दौड़==
ओणम के अवसर पर यहाँ सर्पनौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसे सर्प नौका दौड़ इसलिए कहा जाता है कि ये नौकाएँ सर्पाकार पतली होती हैं। इनकी लम्बाई 50 फीट तक होती है और बीच का भाग बहुत पतला होता है। काली लकड़ी की बनी यह नौकाएँ पानी पर इस तरह से तैरती हैं, मानों कोई बड़ा साँप रेंग रहा हो।
इसके अतिरिक्त नौका दौड़ भी होती है। नौका चलाने वाले एक ख़ास क़िस्म का गीत गाते हैं। जिसे 'वांची पट्टक्कल' यानी की 'नाव का गीत' कहते हैं। नौका की दौड़ को 'वल्लमुकली' कहते हैं। इस तरह से ओणम का त्यौहार मनाकर संध्या के समय विष्णु भगवान, गणेश जी, श्रावण देव तथा वामन देव और फूलों की देवी की मूर्तियों को एक तख्ते पर रखकर उनका पूजन किया जाता है और फिर आदर सहित किसी तालाब या नदी में ले जाकर उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
==पर्यटन सप्ताह==
केरल की सरकार भी ओणम पर्व को प्रायोजित करती है। नौका दौड़ व अन्य महोत्सव सरकार के संरक्षण में मनाए जाते हैं। सरकार ओणम से सम्बन्धित पर्यटन सप्ताह भी आयोजित करती है। जिसमें केरल की सांस्कृतिक धरोहर देखते ही बनती है। ओणम के अवसर पर समूचा केरल नावस्पर्घा, नृत्य, संगीत, महाभोज आदि कार्यक्रमों से जीवंत हो उठता है। यह त्यौहार केरलवासियों के जीवन के सौंन्दर्य को सहर्ष अंगीकार करने का प्रतीक है। सब के सब एक ही रंग में रंगे होते हैं। केरल सरकार के अतिरिक्त नौसेना भी समय–समय पर बोट रेसिंग आयोजित करती है। आरन्मुला नामक स्थान पर नावों की स्पर्धा देखने के लिए हज़ारों लोगों की संख्या एकत्रित होती है। केरल में कई स्थानों पर 'कत्थक नृत्य' का आयोजन भी किया जाता है। इस महोत्सव को अपार जनसमूह आपसी भाईचारे के साथ मनाता है। यह पर्व अदभुत छटा बिखेरता है।


ओणम महापर्व के मनभावन व्यंजन
तिरुओणम के दिन प्रातः ही स्नान आदि करके सब लोग नये–नये कपड़े पहनते हैं। बड़े लोग छोटों को आणप्पुड़वा अर्थात्–ओणम के कपड़े प्रदान करते हैं। गाँव के युवक गेंद खेलते हैं। स्त्रियाँ इकट्ठी होकर तालियाँ बजाकर गाती हैं। घरों में केले के पकवान जिसे 'पलनुरनकु' कहते हैं, बनाए जाते हैं। तिरुओणम के पहले ही नयी फ़सल के अनाजों से खलिहान भर जाते हैं। सुख—समृद्धि के इस अवसर पर ओणम का त्यौहार पूरी खुशी के साथ मनाया जाता है।
ओनसदया नामक भोज इस समारोह का सबसे आकर्षक कार्यक्रम है। नाना प्रकार के व्यंजनों में विभिन्न प्रकार की शाक–सब्जियों का प्रयोग किया जाता है। भोजन को कदली के पत्तों में परोसा जाता है। नाना प्रकार के भोज्य पदार्थों तथा तरकारियाँ जिन्हें पचड़ी–पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर इत्यादि कहा जाता है। पापड़ व केले के चिप्स भी बनाए जाते हैं। दूध की खीर जिसे पायसम कहते हैं, ओणम का विशेष भोजन है।
ये सभी पाक् व्यंजन निम्बूदरी ब्राह्मणों की पाक्–कला की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं तथा उनकी संस्कृति के विस्तार में अह्म भूमिका निभाते हैं। कहते हैं कि केरल में अठारह प्रकार के दुग्ध पकवान हैं। इन्हें ऋतु फलों जैसे केला, आम आदि से बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कई प्रकार की दालें जैसे मूंग व चना के आटे का प्रयोग भी विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है।


नावों की स्पर्धा
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ओणम के अवसर पर यहाँ सर्पनौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसे सर्पनौका दौड़ इसलिए कहा जाता है कि ये नौकाएँ सर्पाकार पतली होती हैं। इनकी लम्बाई 50 फीट तक होती है और बीच का भाग बहुत पतला होता है। काली लकड़ी की बनी यह नौकाएँ पानी पर इस तरह से तैरती हैं, मानों कोई बड़ा साँप रेंग रहा हो।
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केरल की सरकार भी ओणम पर्व को प्रायोजित करती है। नौका दौड़ व अन्य महोत्सव सरकार के संरक्षण में मनाए जाते हैं। सरकार ओणम से सम्बन्धित पर्यटन सप्ताह भी आयोजित करती है। जिसमें केरल की सांस्कृतिक धरोहर देखते ही बनती है। ओणम के अवसर पर समूचा केरल नावस्पर्घा, नृत्य, संगीत, महाभोज आदि कार्यक्रमों से जीवंत हो उठता है। यह त्यौहार केरलवासियों के जीवन के सौंन्दर्य को सहर्ष अंगीकार करने का प्रतीक है। सब के सब एक ही रंग में रंगे होते हैं। केरल सरकार के अतिरिक्त नौसेना भी समय–समय पर बोट रेसिंग आयोजित करती है। आरन्मुला नामक स्थान पर नावों की स्पर्धा देखने के लिए हज़ारों लोगों की संख्या एकत्रित होती है। केरल में कई स्थानों पर 'कत्थक नृत्य' का आयोजन भी किया जाता है। इस महोत्सव को अपार जनसमूह आपसी भाइचारे के साथ मनाता है। यह पर्व अदभुत छटा बिखेरता है।
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समारोहों के रंग केरलवासियों की कामना को पूर्ण कर पाते तो कितना अच्छा होता। ओणम वर्ष में एक बार ही क्यों आता है? बार–बार क्यों नहीं आता?
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Revision as of 14:01, 22 July 2010

ओणम, केरल का प्रसिद्ध त्यौहार

जिस तरह उत्तरी भारत में दशहरे का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार केरल में ओणम का त्यौहार मनाया जाता है। अन्तर केवल इतना है कि दशहरे में दस दिन पहले राम लीलाओं का आयोजन होता है और ओणम से दस दिन पहले घरों को फूलों से सजाने का कार्यक्रम चलता है। दशहरा हर वर्ष क्वार शुक्ल की दशमी को मनाया जाता है, जबकि ओणम हर वर्ष श्रावण शुक्ल की त्रयोदशी को मनाया जाता है। ओणम को 'तिरू-ओणभ' भी कहा जाता है।

मनाने का समय

ओणम, तिरुवोणम नक्षत्र का लघु रूप है तथा यह पर्व मलयाली चिंगम मास (श्रावण) में पड़ता है। अंग्रेज़ी कलेन्डर के अनुसार यह जुलाई–अगस्त में मनाया जाता है। मई के आते ही काले बादलों की छटा और बिजली की गरज–चमक समस्त केरल प्रान्त को शीतल जल से सराबोर कर देती है। मानसून के इस लुभावने आगमन के साथ ही केरल अपने विश्वविख्यात ओणम मेले के लिए तैयार हो जाता है। विभिन्न प्रकार के फूलों से लदी यहाँ की धरती ओणम का स्वागत करती है। ओणम इस राज्य का सबसे लोकप्रिय और रंगीन उत्सव है।

ओणम का अर्थ

वास्तव में ओणम का अर्थ है "श्रावण"। श्रावण के महीने में मौसम बहुत खुशगवार हो जाता हैं चारों तरफ़ हरियाली छा जाती हैं, रंग–बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सारा चमन महक उठता है। केरल में चाय, अदरक, इलायची, काली मिर्च तथा धान की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है। नारियल और ताड़ के वृक्षों से छाए हुए जल से भरे तालाब बहुत सुन्दर लगते हैं। लोगों में नयी–नयी आशाएँ और नयी–नयी उमंगें भर जाती हैं। लोग खुशी में भरकर श्रावण देवता और फूलों की देवी का पूजन करते हैं।

तैयारियाँ

ओणम के त्यौहार से दस दिन पहले बच्चे प्रतिदिन बाग़ों में, जंगलों में तथा फुलवारियों में फूल चुनने जाते हैं और फूलों की गठिरयाँ बाँध–बाँधकर अपने घर लाते हैं। घर का एक कमरा फूल घर बनाया जाता है। फूलों की गठिरयाँ उसमें रखते हैं। उस कमरे के बाहर लीप–पोत कर एक चौंक तैयार किया जाता है और उसके चारों तरफ़ गोलाई में फूल सजाए जाते हैं। दरवाज़ों, खिड़कियों और सब कमरों को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। जैसे - जैसे ओणम का मुख्य त्यौहार निकट आता है, वैसे - वैसे फूलों की सजावट बढ़ती जाती है।

मूर्ति की स्थापना

इस तरह से आठ दिन तक फूलों की सजावट का कार्यक्रम चलता है। नौवें दिन हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित की जाती है। औरतें विष्णु भगवान की पूजा के गीत गाती हैं और ताली बजाकर गोलाई में नाचती हैं। इस नाच को 'थप्पतिकलि' कहते हैं। बच्चे वामन अवतार के पूजन के गीत गाते हैं। इन गीतों को 'ओणम लप्ण' कहते हैं। रात को हर घर में गणेश जी तथा श्रावण देव की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनके सामने मंगलदीप जलाए जाते हैं। इस दिन एक विशेष प्रकार का पकवान बनाया जाता है, जिसे 'पूवड़' कहते हैं।

मुख्य त्योहार

दसवें दिन ओणम का मुख्य त्यौहार मनाया जाता है। जोकि त्रयोदशी के दिन होता है। इस दिन घर के सभी सदस्य सुबह सवेरे उठ कर स्नान कर लेते हैं और घर का बुज़ुर्ग सबको नये–नये कपड़े पहनने के लिए देता है। लड़कियाँ एक विशेष प्रकार का पकवान, जिसे 'वाल्लसन' कहते हैं, बना कर श्रावण देवता, गणेश जी, विष्णु भगवान, वामन भगवान तथा फूलों की देवी पर चढ़ाती हैं और लड़के तीर चलाकर उस चढ़ाये हुए पकवान को वापस लौटा कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

तिरू ओणम

तिरू ओणम के दिन प्रातः नाश्ते में भूने हुए या भाप में पकाए हुए केले खाए जाते हैं। इस नाश्ते को 'नेन्द्रम' कहते हैं। यह एक ख़ास केले से तैयार होता है, जिसे 'नेन्द्रम काय' कहते हैं। यह केले केवल केरल में ही पैदा होते हैं। उस दिन का खाना चावल, दाल, पापड़ और केलों से बनाया जाता है और बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाए जाते हैं और हर एक घर में पूजापाठ तथा धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।

प्राचीन परम्परायें

यह हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक का दस दिवसीय त्यौहार है। हर घर के आँगन में महाबलि की मिट्टी की त्रिकोणात्मक मूर्ति, जिस को 'तृक्काकारकरै अप्पन' कहते हैं, बनी रहती है। इसके चारों ओर विविध रंगों के फूलों के वृत्त चित्र बनाए जाते हैं। प्रथम दिन जितने वृत्त रचे जाते हैं, उसके दोगुने–तिगुने तथा अन्त में दसवें दिन दस गुने तक वृत्त रचे जाते हैं। केरल के लोगों के लिए यह उत्सव बंसतोत्सव से कम नहीं है। यह उत्सव केरल में मधुमास लेकर आता है। यह दिन सजने–धजने के साथ–साथ दुःख–दर्द भूलकर खुशियाँ मनाने का होता है। ऐसी मान्यता है कि तिरुवोणम के तीसरे दिन महाबलि पाताल लोक लौट जाते हैं। जितनी भी कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं, वे महाबलि के चले के बाद ही हटाई जाती हैं। यह त्यौहार केरलवासियों के साथ पुरानी परम्परा के रूप में जुड़ा है। ओणम वास्तविक रूप में फ़सल काटने का त्यौहार है, पर अब इसकी व्यापक मान्यता है।

==पौराणिक आख्यान==

कहा जाता है कि जब परशुरामजी ने सारी पृथ्वी को क्षत्रियों से जीत कर ब्राह्मणों को दान कर दी थी, तब उनके पास रहने के लिए कोई भी स्थान नहीं रहा, तब उन्होंने सह्याद्री पर्वत की गुफ़ा में बैठ कर जल देवता वरुण की तपस्या की। वरुण देवता ने तपस्या से खुश होकर परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फैंको। जहाँ तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी और उसका नाम परशु क्षेत्र होगा। परशुराम जी ने वैसा ही किया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को 'केरल या मलयालम' कहते हैं। परशुराम जी ने समुद्र से भूमि प्राप्त करके वहाँ पर एक विष्णु भगवान का मन्दिर बनवाया था। वही मन्दिर अब भी 'तिरूक्ककर अप्पण' के नाम से प्रसिद्ध है और जिस दिन परशुराम जी ने मन्दिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन श्रावण शुक्ल की त्रियोदशी थी। इसलिए उस दिन 'ओणम' का त्यौहार मनाया जाता है। हर एक घर में विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है।

वामन कथा

राक्षस नरेश महाबली, विष्णु भगवान के भक्त प्रह्लाद का पौत्र था। वह उदार शासक और महापराक्रमी था। राक्षसी प्रवृत्ति के कारण महाबलि ने देवदाओं के राज्य को बलपूर्वक छीन लिया था। दुराग्रही व गर्व–दर्प से भरे राजा बलि ने देवताओं को कष्ट में डाल दिया। तब परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की गुहार लगाई। प्रार्थना सुन भगवान श्री विष्णु ने वामन, अर्थात बौने के रूप में महर्षि कश्यप व उनकी पत्नी अदिति के घर जन्म लिया। एक दिन वामन महाबलि की सभी में पहुँचे। इस ओजस्वी, ब्रह्मचारी नवयुवक को देखकर एकाएक महाबलि उनकी ओर आकर्षित हो गया। महाबलि ने श्रद्धा से इस नवयुवक का स्वागत किया और जो चाहे माँगने को कहा।

श्री वामन ने शुद्धिकरण हेतु अपने लघु पैरों के तीन क़दम जितनी भूमि देने का आग्रह किया। उदार महाबलि ने यह स्वीकार कर लिया। किन्तु जैसे ही महाबलि ने यह भेंट श्रीवामन को दी, वामन का आकार एकाएक बढ़ता ही चला गया। वामन ने तब एक क़दम से पूरी पृथ्वी को ही नाप डाला तथा दूसरे क़दम से आकाश को। अब तीसरा क़दम तो रखने को स्थान बचा ही नहीं था। जब वामन ने बलि से तीसरा क़दम रखने के लिए स्थान माँगा, तब उसने नम्रता से अपना मस्तक ही प्रस्तुत कर दिया। वामन ने अपना तीसरा क़दम मस्तक पर रख महाबलि को पाताल लोक में पहुँचा दिया। बलि ने यह बड़ी उदारता और नम्रता से स्वीकार किया। चूँकि बलि की प्रजा उससे बहुत ही स्नेह रखती थी, इसीलिए श्रीविष्णु ने बलि को वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। अतः जिस दिन महाबलि केरल आते हैं, वही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को केरल के सभी धर्मों के लोग मनाते हैं।

बलि की केरल यात्रा का महोत्सव

आज भी केरलवासी महाबलि की यात्रा को ओणम के रूप में मनाते हैं। पूरा प्रान्त महोत्सव के रंग में रंग जाता है। आम के पत्तों को एक डोरी में बाँधा जाता है तथा घर के द्वारों पर टाँग दिया जाता है। रंग–बिरंगे झाड़–फानुस व नारियल घरों की शोभा को बढ़ाते हैं। मिट्टी के बर्तन के कोन (शंकू) को बलि का प्रतीक मानकर घर के आगे रखा जाता है तथा इसे चन्दन व सिन्दूर से सजाया जाता है। आँगनों में रंग–बिरंगी रंगोली के विभिन्न आकार बनाए जाते हैं।

इस पर्व का एक और विशेष कार्यक्रम है, पुष्पों को गोलाकार रूप में सजाकर रखना। इसे ही 'अट्टम या ओणम' कहा जाता है। प्रतिदिन नाना प्रकार के पुष्प गोबर के सूखे कंडे पर लगाए जाते हैं तथा इन्हें घर के आगे रखा जाता है। अट्टम के सौन्दर्य व इसके विभिन्न आकारों की स्पर्धा भी होती है। स्त्रियाँ समवेत स्वर में 'काई, केत, कली' व 'कुम्मी' लयबद्ध होकर गाती हैं। घर का मुखिया परिवार के सदस्यों में नववस्त्र बाँटता है। इस वेशभूषा को ओणप्पणं कहते हैं। पुराने समय में केरल की स्त्रियाँ श्वेत साड़ियाँ पहनती थीं। इन साड़ियों के चारों ओर स्वर्णिम बूटे लगाए जाते थे। कमर से ऊपर का शरीर एक ओर छोटी धोती 'मेलमुड़' से ढका होता था। आधुनिक समय में केरल की स्त्रियाँ भी अन्य क्षेत्रों भाँति साड़ियाँ या सलवार कमीज़ पहनती हैं।

मनभावन व्यंजन

तिरुओणम के दिन प्रातः ही स्नान आदि करके सब लोग नये–नये कपड़े पहनते हैं। बड़े लोग छोटों को आणप्पुड़वा अर्थात्–ओणम के कपड़े प्रदान करते हैं। गाँव के युवक गेंद खेलते हैं। स्त्रियाँ इकट्ठी होकर तालियाँ बजाकर गाती हैं। घरों में केले के पकवान जिसे 'पलनुरनकु' कहते हैं, बनाए जाते हैं। तिरुओणम के पहले ही नयी फ़सल के अनाजों से खलिहान भर जाते हैं। सुख—समृद्धि के इस अवसर पर ओणम का त्यौहार पूरी खुशी के साथ मनाया जाता है।

ओनसदया नामक भोज इस समारोह का सबसे आकर्षक कार्यक्रम है। नाना प्रकार के व्यंजनों में विभिन्न प्रकार की शाक–सब्जियों का प्रयोग किया जाता है। भोजन को कदली के पत्तों में परोसा जाता है। नाना प्रकार के भोज्य पदार्थों तथा तरकारियाँ जिन्हें 'पचड़ी–पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर' इत्यादि कहा जाता है। पापड़ व केले के चिप्स भी बनाए जाते हैं। दूध की खीर जिसे 'पायसम' कहते हैं, ओणम का विशेष भोजन है।

ये सभी पाक व्यंजन 'निम्बूदरी' ब्राह्मणों की पाक–कला की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं तथा उनकी संस्कृति के विस्तार में अह्म भूमिका निभाते हैं। कहते हैं कि केरल में अठारह प्रकार के दुग्ध पकवान हैं। इन्हें ऋतु फलों जैसे केला, आम आदि से बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कई प्रकार की दालें जैसे मूंग व चना के आटे का प्रयोग भी विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है।

नौका दौड़

ओणम के अवसर पर यहाँ सर्पनौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसे सर्प नौका दौड़ इसलिए कहा जाता है कि ये नौकाएँ सर्पाकार पतली होती हैं। इनकी लम्बाई 50 फीट तक होती है और बीच का भाग बहुत पतला होता है। काली लकड़ी की बनी यह नौकाएँ पानी पर इस तरह से तैरती हैं, मानों कोई बड़ा साँप रेंग रहा हो।

इसके अतिरिक्त नौका दौड़ भी होती है। नौका चलाने वाले एक ख़ास क़िस्म का गीत गाते हैं। जिसे 'वांची पट्टक्कल' यानी की 'नाव का गीत' कहते हैं। नौका की दौड़ को 'वल्लमुकली' कहते हैं। इस तरह से ओणम का त्यौहार मनाकर संध्या के समय विष्णु भगवान, गणेश जी, श्रावण देव तथा वामन देव और फूलों की देवी की मूर्तियों को एक तख्ते पर रखकर उनका पूजन किया जाता है और फिर आदर सहित किसी तालाब या नदी में ले जाकर उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।

पर्यटन सप्ताह

केरल की सरकार भी ओणम पर्व को प्रायोजित करती है। नौका दौड़ व अन्य महोत्सव सरकार के संरक्षण में मनाए जाते हैं। सरकार ओणम से सम्बन्धित पर्यटन सप्ताह भी आयोजित करती है। जिसमें केरल की सांस्कृतिक धरोहर देखते ही बनती है। ओणम के अवसर पर समूचा केरल नावस्पर्घा, नृत्य, संगीत, महाभोज आदि कार्यक्रमों से जीवंत हो उठता है। यह त्यौहार केरलवासियों के जीवन के सौंन्दर्य को सहर्ष अंगीकार करने का प्रतीक है। सब के सब एक ही रंग में रंगे होते हैं। केरल सरकार के अतिरिक्त नौसेना भी समय–समय पर बोट रेसिंग आयोजित करती है। आरन्मुला नामक स्थान पर नावों की स्पर्धा देखने के लिए हज़ारों लोगों की संख्या एकत्रित होती है। केरल में कई स्थानों पर 'कत्थक नृत्य' का आयोजन भी किया जाता है। इस महोत्सव को अपार जनसमूह आपसी भाईचारे के साथ मनाता है। यह पर्व अदभुत छटा बिखेरता है।


सम्बंधित लिंक

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