मोहिनी एकादशी

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व्रत और विधि

यह व्रत भी कृष्ण पक्ष की एकादशी की भाँति ही किया जाता है। पुराणों के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी मोहिनी है। इस व्रत को करने से निंदित कर्मों के पाप से छुटकारा मिल जाता है तथा मोह बंधन एवं पाप समूह नष्ट होते हैं। सीताजी की खोज करते समय भगवान श्री रामचन्द्र जी ने भी इस व्रत को किया था। उनके बाद मुनि कौण्डिन्य के कहने पर धृष्टबुद्धि ने और श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने इस व्रत को किया था।

इस दिन भगवान के पुरुषोत्तम रूप (राम) की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कर उत्तम वस्त्र पहनाना चाहिए, फिर उच्चासन पर बैठाकर धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए और मीठे फलों का भोग लगाना चाहिए। तत्पश्चात प्रसाद वितरित कर ब्राह्मणों को भोजन तथा दान दक्षिणा देनी चाहिए। रात्रि में भगवान का कीर्तन करते हुए मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

कथा

एक राजा का बड़ा पुत्र बहुत दुराचारी था। उसके दुर्गुणों से दुखी होकर राजा ने उसे घर से निकाल दिया। वह वन में रहकर लूटमार करता और जानवरों को मारकर खाता था। एक दिन वह एक ॠषि के आश्रम में पहुँचा। आश्रम के पवित्र वातावरण से उसका हृदय पाप कर्मों से विरत हो गया। ॠषि ने उसको पिछले पाप कर्मों से छुटकारा पाने के लिए मोहिनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने को कहा। उसने ॠषि के आदेशानुसार व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी बुद्धि निर्मल हो गई और उसके सब पाप कर्म नष्ट हो गए।

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