सोहराब मोदी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 04:49, 2 November 2017 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
सोहराब मोदी
पूरा नाम सोहराब मोदी
जन्म 2 नवम्बर, 1897
जन्म भूमि बम्बई
मृत्यु 28 जनवरी, 1984
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, निर्माता व निर्देशक
मुख्य फ़िल्में 'रज़िया सुल्तान', 'घर की लाज', 'कुंदन' आदि।
पुरस्कार-उपाधि दादा साहब फाल्के पुरस्कार
प्रसिद्धि अभिनेता और फ़िल्म निर्माता-निर्देशक

सोहराब मोदी (अंग्रेज़ी: Sohrab Modi, जन्म: 2 नवम्बर, 1897; मृत्यु: 28 जनवरी, 1984) प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता और फ़िल्म निर्माता-निर्देशक थे, जिन्होंने हिन्दी की प्रथम रंगीन फ़िल्म 'झाँसी की रानी' बनाई थी। इनको सन 1980 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।

जीवन परिचय

सोहराब मोदी का जन्म 2 नवम्बर, 1897 में बम्बई में हुआ था। सोहराब मोदी अपनी स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद वह अपने भाई केकी मोदी के साथ यात्रा प्रदर्शक का कार्य किया। सोहराब मोदी ने कुछ मूक फ़िल्मों के अनुभव के साथ एक पारसी रंगमंच से बतौर अभिनेता के रूप में शुरुआत की थी। सोहराब मोदी का बचपन रामपुर में बीता, जहां उनके पिता नवाब के यहां अधीक्षक थे। नवाब रामपुर का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था। रामपुर में ही सोहराब मोदी ने फर्राटेदार उर्दू सीखी। अभिनय की प्रारंभिक शिक्षा उन्हें अपने भाई रुस्तम की नाटक कंपनी सुबोध थिएट्रिकल कंपनी से मिली, जिसमें उन्होंने 1924 से काम करना शुरू कर दिया था। वहीं उन्होंने संवाद को गंभीर और सधी आवाज में बोलने की कला सीखी, जो बाद में उनकी विशेषता बन गयी। कुछ ही समय में वे नाटकों में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाने लगे। ‘हैमलेट’ और ‘द सोल ऑफ़ डाटर’ उनके लोकप्रिय नाटक थे जिनमें उन्होंने अभिनय किया। बाद में उनका परिवार रामपुर से बंबई चला आया। वहां उन्होंने परेल के न्यू हाईस्कूल से मैट्रिक पास किया। जब ये अपने प्रिंसिपल से यह पूछने गये कि भविष्य में क्या करें, तो उनके प्रिंसिपल ने कहा,-‘तुम्हारी आवाज सुन कर तो यही लगता है कि तुम्हे या तो नेता बनना चाहिए या अभिनेता।’ और सोहराब अभिनेता बन गये। उनकी आवाज की तरह बुलंद थी। अंधे तक उनकी फ़िल्मों के संवाद सुनने जाते थे।[1] 

आरम्भिक जीवन

16 वर्ष की उम्र में सोहराब मोदी ग्वालियर के टाउनहाल में फ़िल्मों का प्रदर्शन करते थे। बाद में अपने भाई रुस्तम की मदद से उन्होंने ट्रैवलिंग सिनेमा का व्यवसाय शुरू किया। फिर अपने भाई के साथ ही उन्होंने बंबई में स्टेज फ़िल्म कंपनी की स्थापना की। इस कंपनी की पहली फ़िल्म 1953 में बनी ‘खून का खून’ थी, जो उनके नाटक ‘हैमलेट’ का फ़िल्मी रूपांतर थी। इसमें सायरा बानो की माँ नसीम बानो पहली बार परदे पर आयीं। ‘सैद –ए-हवस’ (1936) भी नाटक ‘किंग जान’ पर आधारित थी। सोहराब मूलतः नाटक से आये थे, यही वजह है कि उनकी पहले की फ़िल्मों में पारसी थिएटर की झलक मिलती है। ऐतिहासिक फ़िल्में बनाने में वे सबसे आगे थे।[1]

स्टेज फ़िल्म कंपनी की स्थापना

बतौर अभिनेता प्रमुख फ़िल्में
सन फ़िल्म नाम
1983 रज़िया सुल्तान
1979 घर की लाज
1971 ज्वाला
1971 एक नारी एक ब्रह्मचारी
1958 जेलर
1958 यहूदी
1956 राज हठ
1955 कुंदन
1952 झांसी की रानी
1950 शीश महल
1943 पृथ्वी वल्लभ
1941 सिकन्दर
1939 पुकार
1938 जेलर
1935 ख़ून का ख़ून

सोहराब मोदी ने सन 1935 में स्टेज फ़िल्म कंपनी की स्थापना की थी। 1936 में स्टेज फ़िल्म कंपनी मिनर्वा मूवीटोन हो गयी और इसका प्रतीक चिह्न शेर हो गया। अपने इस बैनर में उन्होंने जो फ़िल्में बनायीं वे थीं-

  1. आत्म तरंग (1937)
  2. खान बहादुर (1937)
  3. डाइवोर्स (1938)
  4. जेलर (1938)
  5. मीठा जहर (1938)
  6. पुकार (1939)
  7. भरोसा (1940)
  8. सिकंदर (1941)
  9. फिर मिलेंगे (1942)
  10. पृथ्वी वल्लभ ((1943)
  11. एक दिन का सुलतान (1945)
  12. मंझधार (1947)
  13. दौलत (1949)
  14. शीशमहल (1950)
  15. झांसी की रानी (1953)
  16. मिर्जा गालिब (1954)
  17. कुंदन (1955)
  18. राजहठ (1956)
  19. नौशेरवा-ए-आदिल (1957)
  20. मेरा घर मेरे बच्चे (1960)
  21. समय बड़ा बलवान (1969)[1]

इनके अलावा उन्होंने सेंट्रल स्टूडियो के लिए ‘परख’ और शैली फ़िल्म्स के लिए ‘मीनाकुमारी की अमर कहानी’ बनायी। 

भारत की पहली रंगीन फ़िल्म

thumb|सोहराब मोदी भारत की पहली टेकनीकलर फ़िल्म ‘झांसी की रानी’ उन्होंने बनायी थी। इसके लिए वे हालीवुड से तकनीशियन और साज-सामान लाये थे। इसमें 'झांसी की रानी' बनी थीं उनकी पत्नी महताब। सोहराब मोदी राजगुरु बने थे। इस फ़िल्म को उन्होंने बड़ी लगन से बनाया था, लेकिन फ़िल्म फ़्लॉप हो गयी। इस विफलता से उबरने के लिए उन्होंने ‘मिर्जा गालिब’ (सुरैया-भारतभूषण) बनायी। यह फ़िल्म व्यावसायिक तौर पर तो सफल रही बल्कि इसे राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक भी मिला। उन्होंने सामाजिक समस्याओं पर भी कुछ यादगार फ़िल्में बनायीं। इनमें शराबखोरी की बुराई पर बनायी गयी फ़िल्म ‘मीठा जहर’ और तलाक की समस्या पर ‘डाईवोर्स’ उल्लेखनीय हैं। उनकी सर्वाधिक चर्चित और सफल ऐतिहासिक फ़िल्म थी ‘पुकार’। इसमें चंद्रमोहन (जहांगीर), नसीम बानो (नूरजहां), सोहराब मोदी (संग्राम सिंह) और सरदार अख्तर की प्रमुख भूमिकाएँ थीं। इस फ़िल्म को न सिर्फ प्रेस बल्कि दर्शकों से भी भरपूर प्रशंसा मिली। ‘सिकंदर’ में पोरस और ‘पुकार’ में संग्राम सिंह की भूमिका में सोहराब मोदी के अभिनय की बड़ी प्रशंसा हुई।[1]

पारिवारिक जीवन

महताब से उनकी शादी 21 अप्रैल 1946 को हुई, लेकिन मोदी का परिवार उन्हें बहू के रूप में स्वीकारने को तैयार नहीं था इसलिए कई साल उन्हें अलग रहना पड़ा। 1950 में उनके परिवार ने उनकी शादी को स्वीकार कर लिया।

पुरस्कार

सोहराब मोदी को सन 1980 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। भारत में ऐतिहासिक फ़िल्मों को प्रतिष्ठा दिलाने का श्रेय उन्हें ही जाता है।

निधन

1978 तक आते-आते 80 साल के मोदी साहब को चलने-फिरने में छड़ी का सहारा लेना पड़ गया था। उनकी बड़ी ख्वाहिश थी ‘पुकार’ को फिर से बनाने की। लेकिन बीमारी ने ऐसा नहीं करने दिया। 1984 में डॉक्टरों ने यह घोषित कर दिया कि उन्हें कैंसर है। तब तक उन्हें खाना निगलने में भी तकलीफ होने लगी थी। 1983 में उन्होंने अपनी आखिरी फ़िल्म ‘गुरुदक्षिणा’ का मुहूर्त किया था। उसे अधूरा छोड़ 28 जनवरी 1984 को मोदी हमेशा के लिए चिरनिद्रा में निमग्न हो गये। वे बड़े आला तबीयत के इंसान थे। उनका धैर्य भी अपार था। कई बार कलाकार कई रिटेक देते, पर मोदी साहब के चेहरे पर शिकन तक नहीं पड़ती।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3   सोहराब मोदी (हिन्दी) सिनेमा जगत। अभिगमन तिथि: 2 नवम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः