अमरीश पुरी: Difference between revisions

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[[रंगमंच]] तथा विज्ञापनों के रास्ते अपनी अदाकारी का लोहा मनवाकर हिंदी सिनेमा के सबसे मशहूर खलनायक के रूप में प्रसिद्धि बटोरने वाले अमरीश पुरी का जन्म [[22 जून]] [[1932]] को [[पंजाब]] में हुआ। अपने बड़े भाई मदन पुरी का अनुसरण करते हुए फ़िल्मों में काम करने मुंबई पहुंचे लेकिन पहले ही स्क्रीन टेस्ट में विफल रहे और उन्होंने भारतीय जीवन बीमा निगम में नौकरी कर ली। बीमा कंपनी की नौकरी के साथ ही वह नाटककार सत्यदेव दुबे के लिखे नाटकों पर पृथ्वी थियेटर में काम करने लगे। रंगमंचीय प्रस्तुतियों ने उन्हें टीवी विज्ञापनों तक पहुँचाया, जहाँ से वह फ़िल्मों में खलनायक के किरदार तक पहुँचे।
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==रंगमंच में अहम भूमिका==  
|चित्र का नाम=अमरीश पुरी
अमरीश पुरी को [[1960]] के दशक में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने दुबे और गिरीश कर्नार्ड के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियाँ दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें [[1979]] में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय कैरियर का पहला बड़ा पुरस्कार था। लंबा कद, मजबूत कद काठी, बेहद दमदार आवाज़ और ज़बर्दस्त संवाद अदायगी जैसी खूबियों के मालिक अमरीश पुरी को हिंदी सिने जगत के कुछ सबसे सफल खलनायकों में गिना जाता है, लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि अमरीश पुरी को [[मुंबई]] आने के बाद संघर्ष के दिनों में एक बीमा कंपनी में नौकरी करनी पड़ी थी।
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==फ़िल्मी जगत की शुरूआत==
|प्रसिद्ध नाम=
वर्ष [[1971]] में उन्होंने फ़िल्म रेशमा और शेरा से खलनायक के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत की लेकिन वह इस फ़िल्म से दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। मशहूर बैनर बाम्ब। टॉकीज में कदम रखने के बाद उन्हें बड़े बड़े बैनर की फ़िल्म मिलनी शुरू हो गई। अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपन। कैरियर का आधार बनाया। इन फ़िल्मों में श्याम बेनेगल की कलात्मक फ़िल्म जैसे निशांत, [[1975]], मंथन [[1976]], भूमिका [[1977]], कलयुग [[1980]], और मंडी [[1983]], जैसी सुपरहिट फ़िल्म भी शामिल है जिनमें उन्होंने नसीरूद्दीन शाह स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया और अपनी अदाकारी का जौहर दिखाकर अपना सिक्का जमाने में कामयाब हुए। इस दौरान उन्होंने अपना कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की [[1983]] में प्रदर्शित कलात्मक फ़िल्म अर्ध्दसत्य में निभाया। इस फ़िल्म में उनके सामने कला फ़िल्मों के दिग्गज अभिनेता ओमपुरी थे। बरहराल, धीरे धीरे उनके कैरियर की गाड़ी बढ़ती गई और उन्होंने कुर्बानी [[1980]] नसीब [[1981]] विधाता [[1982]], हीरो [[1983]], अंधाकानून [[1983]], कुली [[1983]], दुनिया [[1984]], मेरी जंग [[1985]], और सल्तनत [[1986]], और जंगबाज [[1986]] जैसी कई सफल फ़िल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। वर्ष [[1987]] में उनके कैरियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। वर्ष [[1987]] में अपनी पिछली फ़िल्म 'मासूम' की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फ़िल्म बनाना चाहते थे जो .इनविजबल मैन. पर आधारित थी। इस फ़िल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फ़िल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फ़िल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फ़िल्म में उनके किरदार का नाम था 'मौगेम्बो' और यही नाम इस फ़िल्म के बाद उनकी पहचान बन गया। इस फ़िल्म के बाद उनकी तुलना फ़िल्म शोले में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार गब्बर सिंह से की गई। इस फ़िल्म में उनका संवाद '''मौगेम्बो खुश हुआ''' इतना लोकप्रिय हुआ कि सिनेदर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाएं। भारतीय मूल के कलाकारों को विदेशी फ़िल्मों में काम करने का मौका नहीं मिल पाता है लेकिन अमरीश पुरी ने जुरैसिक पार्क जैसी ब्लाक बस्टर फ़िल्म के निर्माता स्टीवन स्पीलबर्ग की मशहूर फ़िल्म इंडियाना जोंस एंड द टेंपल ऑफ़ डूम में खलनायक के रूप में माँ काली के भक्त का किरदार निभाया। इस किरदार ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
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'''अमरीश पुरी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Amrish Puri'', जन्म: [[22 जून]], [[1932]], [[जालंधर]]; मृत्यु: [[12 जनवरी]], [[2005]], [[मुम्बई]]) [[रंगमंच]] तथा [[हिन्दी सिनेमा]] के सबसे मशहूर खलनायक के रूप में प्रसिद्धि बटोरने वाले [[अभिनेता]] थे। चरित्र अभिनेता [[मदन पुरी]] के छोटे भाई अमरीश पुरी हिन्दी फिल्मों की दुनिया का एक प्रमुख स्तंभ रहे हैं। अभिनेता के रूप 'निशांत', 'मंथन' और 'भूमिका' जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले अमरीश पुरी ने बाद में खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धि पाई। उन्होंने [[1984]] में बनी स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म 'इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम' में मोलाराम की भूमिका निभाई थी, जो काफ़ी चर्चित रही। इस भूमिका का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने हमेशा अपना सिर मुँडा कर रहने का फ़ैसला किया। इस कारण खलनायक की भूमिका भी उन्हें काफ़ी मिली। व्यवसायिक फिल्मों में प्रमुखता से काम करने के बावज़ूद समांतर या अलग हटकर बनने वाली फ़िल्मों के प्रति उनका प्रेम बना रहा और वे इस तरह की फ़िल्मों से भी जुड़े रहे। फिर आया खलनायक की भूमिकाओं से हटकर चरित्र अभिनेता की भूमिकाओं वाले अमरीश पुरी का दौर, और इस दौर में भी उन्होंने अपनी अभिनय कला का जादू कम नहीं होने दिया।
==परिचय==
अमरीश पुरी का जन्म [[22 जून]], [[1932]] को [[पंजाब]] में हुआ। अपने बड़े भाई मदन पुरी का अनुसरण करते हुए फ़िल्मों में काम करने मुंबई पहुंचे, लेकिन पहले ही स्क्रीन टेस्ट में विफल रहे और उन्होंने 'भारतीय जीवन बीमा निगम' में नौकरी कर ली। बीमा कंपनी की नौकरी के साथ ही वह नाटककार [[सत्यदेव दुबे]] के लिखे [[नाटक|नाटकों]] पर 'पृथ्वी थियेटर' में काम करने लगे। रंगमंचीय प्रस्तुतियों ने उन्हें टी.वी. विज्ञापनों तक पहुँचाया, जहाँ से वह फ़िल्मों में खलनायक के किरदार तक पहुँचे।
====आरम्भिक जीवन====  
अमरीश पुरी का आरम्भिक जीवन बहुत ही संघर्षमय रहा। अमरीश पुरी ने [[1960]] के दशक में [[रंगमंच]] को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने दुबे और [[गिरीश कर्नाड]] के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियाँ दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें [[1979]] में [[संगीत नाटक अकादमी]] की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय कैरियर का पहला बड़ा पुरस्कार था। लंबा कद, मज़बूत क़द काठी, बेहद दमदार आवाज़ और ज़बर्दस्त संवाद अदायगी जैसी खूबियों के मालिक अमरीश पुरी को [[हिन्दी सिनेमा]] जगत् के कुछ सबसे सफल खलनायकों में गिना जाता है, लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि अमरीश पुरी को [[मुंबई]] आने के बाद संघर्ष के दिनों में एक बीमा कंपनी में नौकरी करनी पड़ी थी।
==फ़िल्मी जगत् की शुरुआत==
वर्ष [[1971]] में उन्होंने फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' से खलनायक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की लेकिन वह इस फ़िल्म से दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। मशहूर बैनर बाम्बे टॉकीज में क़दम रखने के बाद उन्हें बड़े बड़े बैनर की फ़िल्म मिलनी शुरू हो गई। अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपना कैरियर का आधार बनाया। इन फ़िल्मों में [[श्याम बेनेगल]] की कलात्मक फ़िल्म जैसे निशांत, [[1975]], मंथन [[1976]], भूमिका [[1977]], कलयुग [[1980]], और मंडी [[1983]], जैसी सुपरहिट फ़िल्म भी शामिल है जिनमें उन्होंने [[नसीरुद्दीन शाह]], [[स्मिता पाटिल]] और [[शबाना आज़मी]] जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया और अपनी अदाकारी का जौहर दिखाकर अपना सिक्का जमाने में कामयाब हुए। इस दौरान उन्होंने अपना कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की [[1983]] में प्रदर्शित कलात्मक फ़िल्म 'अर्द्धसत्य' में निभाया। इस फ़िल्म में उनके सामने कला फ़िल्मों के दिग्गज अभिनेता [[ओम पुरी]] थे। बरहराल, धीरे धीरे उनके कैरियर की गाड़ी बढ़ती गई और उन्होंने कुर्बानी [[1980]] नसीब [[1981]] विधाता [[1982]], हीरो [[1983]], अंधाक़ानून  [[1983]], कुली [[1983]], दुनिया [[1984]], मेरी जंग [[1985]], और सल्तनत [[1986]], और जंगबाज [[1986]] जैसी कई सफल फ़िल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। [[वर्ष]] [[1987]] में उनके कैरियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ।
====मोगेम्बो का यादगार किरदार====
वर्ष [[1987]] में अपनी पिछली फ़िल्म 'मासूम' की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फ़िल्म बनाना चाहते थे जो 'इनविजबल मैन' पर आधारित थी। इस फ़िल्म में नायक के रूप में [[अनिल कपूर]] का चयन हो चुका था जबकि [[कहानी]] की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फ़िल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फ़िल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फ़िल्म में उनके किरदार का नाम था 'मोगेम्बो' और यही नाम इस फ़िल्म के बाद उनकी पहचान बन गया। इस फ़िल्म के बाद उनकी तुलना फ़िल्म [[शोले (फ़िल्म)|शोले]] में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार गब्बर सिंह से की गई। इस फ़िल्म में उनका संवाद '''मोगेम्बो खुश हुआ''' इतना लोकप्रिय हुआ कि सिनेदर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाएं। भारतीय मूल के कलाकारों को विदेशी फ़िल्मों में काम करने का मौक़ा नहीं मिल पाता है लेकिन अमरीश पुरी ने 'जुरैसिक पार्क' जैसी ब्लाकबस्टर फ़िल्म के निर्माता स्टीवन स्पीलबर्ग की मशहूर फ़िल्म 'इंडियाना जोंस एंड द टेंपल ऑफ़ डूम' में खलनायक के रूप में माँ काली के भक्त का किरदार निभाया। इस किरदार ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
==मशहूर फ़िल्में==
==मशहूर फ़िल्में==
प्रेम पुजारी से फ़िल्मों की दुनिया में प्रवेश करने वाले अमरीश पुरी के अभिनय से सजी कुछ मशहूर फ़िल्मों में निशांत, मंथन, गांधी, मंडी, हीरो, कुली, मेरी जंग, नगीना, लोहा, गंगा जमुना सरस्वती, राम लखन, दाता, त्रिदेव, जादूगर, घायल, फूल और कांटे, विश्वात्मा, दामिनी, करण अर्जुन, कोयला आदि हैं।  
'प्रेम पुजारी' से फ़िल्मों की दुनिया में प्रवेश करने वाले अमरीश पुरी के [[अभिनय]] से सजी कुछ मशहूर फ़िल्मों में निशांत, मंथन, गांधी, मंडी, हीरो, कुली, मेरी जंग, नगीना, लोहा, गंगा जमुना सरस्वती, राम लखन, दाता, त्रिदेव, जादूगर, घायल, फूल और कांटे, विश्वात्मा, दामिनी, करण अर्जुन, कोयला आदि हैं।  
==निधन==
==निधन==
73 वर्षीय अमरीश पुरी की [[12 जनवरी]] वर्ष [[2005]] को मुम्बई में मृत्यु हो गई थी। पुरी ने तकरीबन 220 से भी अधिक हिन्दी फ़िल्मों में काम किया है। वर्ष [[1971]] में आई उनकी पहली फ़िल्म रिलीज हुई थी। उन्‍होंने ज्यादातर फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी।  
73 वर्षीय अमरीश पुरी की [[12 जनवरी]] वर्ष [[2005]] को [[मुम्बई]] में मृत्यु हो गई थी। पुरी ने तक़रीबन 220 से भी अधिक [[हिन्दी]] फ़िल्मों में काम किया। वर्ष [[1971]] में उनकी पहली फ़िल्म रिलीज हुई थी। उन्‍होंने ज़्यादातर फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/2010/02/blog-post_11.html बहुत-कुछ कह देगी अमरीश पुरी की आत्मकथा]
*[http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8279.html खलनायकी के अमर नायक अमरीश पुरी]
*[http://himalayauk.org/2010/06/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B6-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%98%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B7-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8B/ अमरीश पुरी-संघर्ष के दिनों में बीमा कंपनी में नौकरी की]
*[http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/article1-Amrish-Puri-28-28-176967.html अमरीश पुरी [[हिन्दी सिनेमा]] के सबसे असरदार खलनायक]
*[http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B6-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95/%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B6-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95-%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B9-1090622028_1.htm अमरीश पुरी : नकारात्मक भूमिकाओं के शहंशाह]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
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Latest revision as of 09:29, 8 September 2018

अमरीश पुरी
पूरा नाम अमरीश पुरी
जन्म 22 जून, 1932
जन्म भूमि जालंधर, पंजाब
मृत्यु 12 जनवरी, 2005
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'निशांत', 'मंथन', 'गांधी', 'मंडी', 'हीरो', 'कुली', 'मि. इंडिया', 'नगीना', 'लोहा', 'घायल', 'विश्वात्मा', 'दामिनी', 'करण अर्जुन', 'कोयला' आदि।
पुरस्कार-उपाधि संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार एवं 3 बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी फ़िल्म 'मि. इंडिया' में अमरीश पुरी का संवाद 'मोगेम्बो खुश हुआ' इतना लोकप्रिय हुआ कि सिने दर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाएं।

अमरीश पुरी (अंग्रेज़ी: Amrish Puri, जन्म: 22 जून, 1932, जालंधर; मृत्यु: 12 जनवरी, 2005, मुम्बई) रंगमंच तथा हिन्दी सिनेमा के सबसे मशहूर खलनायक के रूप में प्रसिद्धि बटोरने वाले अभिनेता थे। चरित्र अभिनेता मदन पुरी के छोटे भाई अमरीश पुरी हिन्दी फिल्मों की दुनिया का एक प्रमुख स्तंभ रहे हैं। अभिनेता के रूप 'निशांत', 'मंथन' और 'भूमिका' जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले अमरीश पुरी ने बाद में खलनायक के रूप में काफी प्रसिद्धि पाई। उन्होंने 1984 में बनी स्टीवेन स्पीलबर्ग की फ़िल्म 'इंडियाना जोन्स एंड द टेम्पल ऑफ़ डूम' में मोलाराम की भूमिका निभाई थी, जो काफ़ी चर्चित रही। इस भूमिका का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने हमेशा अपना सिर मुँडा कर रहने का फ़ैसला किया। इस कारण खलनायक की भूमिका भी उन्हें काफ़ी मिली। व्यवसायिक फिल्मों में प्रमुखता से काम करने के बावज़ूद समांतर या अलग हटकर बनने वाली फ़िल्मों के प्रति उनका प्रेम बना रहा और वे इस तरह की फ़िल्मों से भी जुड़े रहे। फिर आया खलनायक की भूमिकाओं से हटकर चरित्र अभिनेता की भूमिकाओं वाले अमरीश पुरी का दौर, और इस दौर में भी उन्होंने अपनी अभिनय कला का जादू कम नहीं होने दिया।

परिचय

अमरीश पुरी का जन्म 22 जून, 1932 को पंजाब में हुआ। अपने बड़े भाई मदन पुरी का अनुसरण करते हुए फ़िल्मों में काम करने मुंबई पहुंचे, लेकिन पहले ही स्क्रीन टेस्ट में विफल रहे और उन्होंने 'भारतीय जीवन बीमा निगम' में नौकरी कर ली। बीमा कंपनी की नौकरी के साथ ही वह नाटककार सत्यदेव दुबे के लिखे नाटकों पर 'पृथ्वी थियेटर' में काम करने लगे। रंगमंचीय प्रस्तुतियों ने उन्हें टी.वी. विज्ञापनों तक पहुँचाया, जहाँ से वह फ़िल्मों में खलनायक के किरदार तक पहुँचे।

आरम्भिक जीवन

अमरीश पुरी का आरम्भिक जीवन बहुत ही संघर्षमय रहा। अमरीश पुरी ने 1960 के दशक में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने दुबे और गिरीश कर्नाड के लिखे नाटकों में प्रस्तुतियाँ दीं। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया, जो उनके अभिनय कैरियर का पहला बड़ा पुरस्कार था। लंबा कद, मज़बूत क़द काठी, बेहद दमदार आवाज़ और ज़बर्दस्त संवाद अदायगी जैसी खूबियों के मालिक अमरीश पुरी को हिन्दी सिनेमा जगत् के कुछ सबसे सफल खलनायकों में गिना जाता है, लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि अमरीश पुरी को मुंबई आने के बाद संघर्ष के दिनों में एक बीमा कंपनी में नौकरी करनी पड़ी थी।

फ़िल्मी जगत् की शुरुआत

वर्ष 1971 में उन्होंने फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' से खलनायक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की लेकिन वह इस फ़िल्म से दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके। मशहूर बैनर बाम्बे टॉकीज में क़दम रखने के बाद उन्हें बड़े बड़े बैनर की फ़िल्म मिलनी शुरू हो गई। अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपना कैरियर का आधार बनाया। इन फ़िल्मों में श्याम बेनेगल की कलात्मक फ़िल्म जैसे निशांत, 1975, मंथन 1976, भूमिका 1977, कलयुग 1980, और मंडी 1983, जैसी सुपरहिट फ़िल्म भी शामिल है जिनमें उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और शबाना आज़मी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया और अपनी अदाकारी का जौहर दिखाकर अपना सिक्का जमाने में कामयाब हुए। इस दौरान उन्होंने अपना कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की 1983 में प्रदर्शित कलात्मक फ़िल्म 'अर्द्धसत्य' में निभाया। इस फ़िल्म में उनके सामने कला फ़िल्मों के दिग्गज अभिनेता ओम पुरी थे। बरहराल, धीरे धीरे उनके कैरियर की गाड़ी बढ़ती गई और उन्होंने कुर्बानी 1980 नसीब 1981 विधाता 1982, हीरो 1983, अंधाक़ानून 1983, कुली 1983, दुनिया 1984, मेरी जंग 1985, और सल्तनत 1986, और जंगबाज 1986 जैसी कई सफल फ़िल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई। वर्ष 1987 में उनके कैरियर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ।

मोगेम्बो का यादगार किरदार

वर्ष 1987 में अपनी पिछली फ़िल्म 'मासूम' की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फ़िल्म बनाना चाहते थे जो 'इनविजबल मैन' पर आधारित थी। इस फ़िल्म में नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुए खलनायक के रूप में ऐसे कलाकार की मांग थी जो फ़िल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे इस किरदार के लिए निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फ़िल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फ़िल्म में उनके किरदार का नाम था 'मोगेम्बो' और यही नाम इस फ़िल्म के बाद उनकी पहचान बन गया। इस फ़िल्म के बाद उनकी तुलना फ़िल्म शोले में अमजद खान द्वारा निभाए गए किरदार गब्बर सिंह से की गई। इस फ़िल्म में उनका संवाद मोगेम्बो खुश हुआ इतना लोकप्रिय हुआ कि सिनेदर्शक उसे शायद ही कभी भूल पाएं। भारतीय मूल के कलाकारों को विदेशी फ़िल्मों में काम करने का मौक़ा नहीं मिल पाता है लेकिन अमरीश पुरी ने 'जुरैसिक पार्क' जैसी ब्लाकबस्टर फ़िल्म के निर्माता स्टीवन स्पीलबर्ग की मशहूर फ़िल्म 'इंडियाना जोंस एंड द टेंपल ऑफ़ डूम' में खलनायक के रूप में माँ काली के भक्त का किरदार निभाया। इस किरदार ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

मशहूर फ़िल्में

'प्रेम पुजारी' से फ़िल्मों की दुनिया में प्रवेश करने वाले अमरीश पुरी के अभिनय से सजी कुछ मशहूर फ़िल्मों में निशांत, मंथन, गांधी, मंडी, हीरो, कुली, मेरी जंग, नगीना, लोहा, गंगा जमुना सरस्वती, राम लखन, दाता, त्रिदेव, जादूगर, घायल, फूल और कांटे, विश्वात्मा, दामिनी, करण अर्जुन, कोयला आदि हैं।

निधन

73 वर्षीय अमरीश पुरी की 12 जनवरी वर्ष 2005 को मुम्बई में मृत्यु हो गई थी। पुरी ने तक़रीबन 220 से भी अधिक हिन्दी फ़िल्मों में काम किया। वर्ष 1971 में उनकी पहली फ़िल्म रिलीज हुई थी। उन्‍होंने ज़्यादातर फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख