वर्णाश्रम: Difference between revisions
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Latest revision as of 10:22, 29 April 2018
वर्ण एक अवस्था है। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र पैदा होता है और प्रयत्न और विकास से अन्य वर्ण अवस्थाओं में पहुंचता है। वास्तव में प्रत्येक में चारों वर्ण स्थापित हैं। इस व्यवस्था को ही 'वर्णाश्रम धर्म' कहते हैं।
अर्थ
वर्णाश्रम का अर्थ है- वर्ण + आश्रम अर्थात, वह वर्ण (रंग, व्यक्तित्व) जो स्वभाव द्वारा अपने आप (आश्रम या बिना श्रम के) बन जाये।
वर्ण = चातुर्वर्ण मया सृष्टिम, गुण कर्म विभागशः -भगवत गीता
गुण अर्थात मन में निहित शक्तियां, और कर्म अर्थात उन शक्तियों की प्रतिक्रिया, मनुष्य के स्वभाव के अध्ययन के लिए चार भाग में बांटे जा सकते हैं-
- शूद्र (छुद्र, अहंकारी, नियंत्रण या वैमनस्यता हेतु कर्म)
- वैश्य (अर्थ या गुण द्वारा आवश्यकता पूर्ति हेतु पेशेवर कर्म)
- क्षत्रिय (छय त्रि, धर्म के ज्ञान द्वारा, व्यक्ति के तीन गुणों के बंधन से मुक्त होने का दृढ़ निर्णय और मुक्ति का युद्ध
- ब्राह्मण (निर्गुण, अर्थात गुणों की पूर्ण समाप्ति, सत्य, शुद्ध, बुद्ध की अवस्था)
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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