नायर

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नायर एक हिन्दू जाति, जो भारत के केरल राज्य में पाई जाती है। वर्ष 1792 में ब्रिटिश विजय से पहले इस क्षेत्र में छोटे सामंती राज्य थे, जिनमें से प्रत्येक में राजसी व संभ्रांत वंश, सहायक सैनिक व अधिकांश भू-प्रबंधक जातियों के थे। ब्रिटिश शासन काल में 'नायर' राजनीति, सरकारी सेवा, चिकित्सा, शिक्षा और विधि क्षेत्र में प्रभावशाली हो गए थे।

पारिवारिक इकाई

अधिकांश हिन्दुओं के विपरीत नायर पारंपरिक रूप से मातृवंशज थे। उनकी पारिवारिक इकाई में भाई और बहनें, बहनों के बच्चे और उनकी बेटियों के बच्चे होते थे। परिवार में संपत्ति का संयुक्त स्वामित्व था। सबसे वृद्ध पुरुष इकाई का वैधानिक प्रमुख होता था। विवाह और निवास के नियम विभिन्न राज्यों में कुछ अलग-अलग थे।[1]

विवाह तथा रीतिरिवाज

16वीं और 18वीं शताब्दी के बीच कालीकट (वर्तमान कोझीकोड), वालुवनाड, पालघाट और 'कोचीन' (वर्तमान कोच्चि) के मध्य-राज्यों में नायरों के अत्यधिक असामान्य वैवाहिक रीति-रिवाज थे, जिनका काफ़ी अध्ययन किया गया है। यौवनारंभ से पूर्ण कन्या का धर्मविधि से 'नायर' या 'नंबूदिरी' ब्राह्मण के साथ विवाह किया जाता था। पति उसके पास जा सकता था।[2] कुछ मामलों में समारोह के तुरंत बाद धर्मविधि से तलाक़ हो जाता था। यौवनारंभ के पश्चात् कन्या अथवा महिला के पास अपनी अथवा किसी ऊंची जाति के कई पति आ सकते थे। नायर पुरुष अपनी इच्छानुसार समुचित वर्ग की कई महिलाओं के पास जा सकते थे। महिलाओं को उनके मातृवंश वर्ग के अनुरूप रखा जाता था और पिताओं को अपने बच्चों के बारे में कोई अधिकार अथवा दायित्व नहीं होते थे।

1930 में पारित क़ानून

ब्रिटिश काल के प्रारंभिक दौर में नायर सेनाओं को भंग कर दिया गया। अशंत: इसके परिणामस्वरूप संभवत: 19वीं शताब्दी में बहुवैवाहिक समूहों का धीरे-धीरे अंत हो गया। बच्चे का पालन-पोषण पिता द्वारा किया जाने लगा, ताकि वृद्धावस्था में वह उसकी देखभाल कर सके और उसकी मृत्यु पर 'अंतिम संस्कार' कर सके। 1930 के दशक में पारित क़ानूनों से एकल विवाह लागू हुआ। पुरुष तथा महिला सदस्यों के बीच मातृवंश की संपत्ति के विभाजन की अनुमति मिली और बच्चों को पिता से उत्तराधिकार तथा पालन-पोषण के पूर्ण अधिकार मिल गए। 20वीं शताब्दी के मध्य तक, विशेषकर शहरों में, एकल परिवारों का अलग रिहायशी और आर्थिक इकाइयां बनना एक सामान्य प्रचलन होता चला गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारत ज्ञानकोश, खण्ड-3 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 121 |
  2. परंतु इसके लिए बाध्य नहीं था

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